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चंडीगढ़ः अमरिंदर सिंह पंजाब विधान सभा चुनाव में बुरी तरह रूप से नाकाम रहे. उनकी नयी पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई, उनकी सहयोगी भाजपा भी परास्त हो गई और वह अपने स्वयं के निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल करने में भी असफल रहे. हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री के लिए कुछ सांत्वना हो सकती है. कांग्रेस, जिससे कुछ महीने पहले ही उनका नाता खत्म हो गया था, ने आम आदमी पार्टी की लहर में राज्य में बहुत खराब प्रदर्शन किया है.
इस बार के पंजाब विधान सभा चुनाव दो बार के मुख्यमंत्री सिंह के लिए एक नयी चुनौती के रूप में आए, जिन्हें पिछले साल प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के साथ सत्ता संघर्ष के बाद पद छोड़ना पड़ा था. सिंह (79) ने उस वक्त कहा कि उन्हें ‘अपमानित’ किया गया और तब उन्होंने नतीजों की चेतावनी दी थी. जल्द ही, उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस का गठन कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने की घोषणा की जिसका राज्य में विस्तार लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद रुका हुआ था.
कभी गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ते समय कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा को ‘अनुभवहीन’ कहा. एक चुनावी रैली में प्रियंका गांधी ने पलटवार करते हुए कहा कि जब अमरिंदर मुख्यमंत्री थे तो भाजपा के साथ उनकी साठगांठ थी. पिछले विधान सभा चुनाव में अमरिंदर सिंह ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को हराकर सत्ता हासिल की थी. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली से बाहर विस्तार करने के सपने को तोड़ दिया. कांग्रेस को विधान सभा चुनावों में शानदार जीत दिलाते हुए वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन सिद्धू से टकराव के बाद अमरिंदर अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. पिछले सितंबर में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
1.कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी का गठन करना.
2.लगातार चार बार जीतने और दो बार सीएम बनने के बाद भी अपने वोटरों से दूरी बनाए रखना.
3.अपनी व पार्टी की जीत के बजाय कांग्रेस को हराने पर ध्यान फोकस करना.
4.भाजपा के साथ जाने से भी ग्रामीण अंचल में रोष दिखा.
5.आम कार्यकर्ताओं के बीच पैठ न होना.
एक समय अकाली दल में रहे और पटियाला के दिवंगत महाराजा यादवेंद्र सिंह के पुत्र, अमरिंदर सिंह लॉरेंस स्कूल, सनावर और दून स्कूल देहरादून में पढ़ाई के बाद 1959 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए. वह 1963 में भारतीय सेना में भर्ती हुए और सिख रेजिमेंट की दूसरी बटालियन में शामिल हुए. सिंह के पिता और दादा ने भी बटालियन में सेवा दी थी. राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले सिंह का राजनीतिक करियर जनवरी 1980 में शुरू हुआ जब वह सांसद चुने गए. लेकिन 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश के विरोध में उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया.
अमरिंदर सिंह 1995 में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर पंजाब विधान सभा के लिए चुने गए थे. मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, 2004 में उनकी सरकार ने पड़ोसी राज्यों के साथ पंजाब के जल बंटवारे समझौते को समाप्त करने वाला कानून पारित किया. पिछले साल, राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान, राज्य विधान सभा में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया था. उनकी सरकार ने किसानों और भूमिहीन कृषक समुदाय के लिए कृषि ऋण माफी योजना की भी घोषणा की.
अमरिंदर सिंह ने 2014 का लोक सभा चुनाव अमृतसर से लड़ा था और भाजपा के अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था. उच्चतम न्यायालय द्वारा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद उन्होंने नवंबर में सांसद पद से इस्तीफा दे दिया. कुछ दिनों बाद, चुनावों के लिए उन्हें कांग्रेस की पंजाब इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. कई जगहों की यात्रा कर चुके सिंह ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के अपने संस्मरणों सहित कई किताबें भी लिखी हैं.
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