'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है...' सड़क पर लिखने वाला लड़का कैसे बना शायरी की दुनिया का राहत इंदौरी?
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'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है...' सड़क पर लिखने वाला लड़का कैसे बना शायरी की दुनिया का राहत इंदौरी?

Rahat indori Death Anniversary: जाने- माने शायर और कवि राहत इंदौर की आज पुण्यतिथि है.1 जनवरी 1950 को इंदौर में जन्मे राहत कुरैशी का राहत इंदौरी बनने का सफर बहुत ही रोचक रहा है. आइए राहत इंदौरी की डेथ एनिवर्सरी पर जानें उनके जिंदगी से जुड़े रोचक किस्‍से.

'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है...' सड़क पर लिखने वाला लड़का कैसे बना शायरी की दुनिया का राहत इंदौरी?

Rahat Indori: जुदा अंदाज और ख्याली उड़ान के साथ ही रियल जिंदगी को अपनी शायरी का हिस्सा बनाने वाली अलहदा शख्सियत राहत इंदौरी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी और जिंदगी के किस्से सैकड़ों सालों तक लोगों के जहन में ताजा रहेंगे. उर्दू शायर राहत इंदौरी अपने शब्दों से जादू बिखेरने के लिए जाने जाते थे. मुशायरों की आत्मा कहे जाते थे. राहत ने ऊर्दू को बहुत सहज अंदाज में जन-जन तक नज्मों के जरिए अपनी बात पहुंचाई. शायरी में तरन्नुम भी था और आंदोलित करने की कुव्वत भी. आज इसी शब्दवीर की पुण्यतिथि है. इस मौके पर कुछ रोचक बातें जानते हैं.

राहत इंदौरी का जन्म
इंदौरी का जन्म जनवरी 1950 को इंदौर में रिफअत उल्लाह साहब के घर हुआ था. उनके पिता रिफअत उल्लाह 1942 में देवास के सोनकच्छ से इंदौर आकर बस गए थे. इंदौरी ने इंदौर के नूतन स्कूल में पढ़ाई की और इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से स्नातक किया. उन्होंने 1975 में भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एमए पास किया और 1985 में भोज विश्वविद्यालय से उर्दू में मुशायरा नामक थीसिस के लिए उन्हें पीएचडी से सम्मानित किया गया. शायर होने के साथ-साथ राहत इंदौरी एक कुशल खिलाड़ी भी थे. वे हाईस्कूल और कॉलेज की फुटबॉल और हॉकी टीमों के कप्तान भी थे.

राहत कुरैशी कैसे बन गए राहत इंदौरी
राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने का सफर बेहद दिलचस्प रहा. अपने स्कूली दिनों में सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने और डिजाइन का काम करते थे. अपनी खूबसूरत लिखावट से राहत लोगों को दिल जीत लेते थे. लेकिन उनकी किस्मत में तो एक मशहूर शायर बनना लिखा था. उर्दू शायरी पढ़ने के शौकीन राहत अपने शहर इंदौर और उसके आसपास होने वाले मुशायरों में जरूर शामिल होते थे. एक बार एक मुशायरे में उनकी मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख्तर से हो गई. तब राहत इंदौरी ने उनके सामने अपनी दिली इच्छा जाहिर की कि, वे भी शायर बनना चाहते हैं.

5 हजार शेर मुंह जुबानी याद करो
राहत की बात सुनकर जां निसार अख्तर ने उन्हें कहा कि सबसे पहले 5 हजार शेर मुंह जुबानी याद करो. देखना तुम शायरी अपने आप करने लगोगे. लेकिन तब राहत इंदौरी ने जां निसार अख्तर को ये जवाब देकर हैरान कर दिया था कि 5 हजार शेर तो उन्हें पहले से ही याद हैं. इस पर अख्तर साहब ने कहा कि फिर तो तुम पहले से ही शायर हो. मुशायरे में स्टेज संभालना शुरू करो. यही वो दिन था जो मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले राहत कुरैशी को राहत इंदौरी की राह पर ले चला. राहत से बने राहत इंदौरी

19 साल पर सुनाई पहली शायरी
उन्होंने कॉलेज के दिनों में ही शेरों शायरी शुरू कर दी थी. पहला शेर 19 साल की उम्र में सुनाया था. घर की आर्थिक तंगी के कारण राहत इंदौरी को कम उम्र में ही साइन पेंटर का काम करना पड़ा. उन्होंने फिल्मों के पोस्टर पर भी काम किया. कुछ समय तक इंदौरी ने मुंबई में गीतकार के तौर पर भी काम किया. हालांकि उनके काम को काफी सराहना मिली, लेकिन 90 के दशक में वे अपने गृहनगर इंदौर लौट आए.

उनकी लिखी लाइनें कुछ बहुत फेमस रही
इंदौरी ने त्रैमासिक पत्रिका 'शाखें' (शाखाएं) का दस सालों तक संपादन किया. उन्होंने अपनी सात काव्य पुस्तकों को प्रकाशित और संपादित किया और चार दशकों से अधिक समय तक देश में काव्य संगोष्ठियों में एक लोकप्रिय चेहरा रहे. इंदौरी की 'नज़्म' 'सरहदों पर बहुत तनाव है क्या' और 'किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है' सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) विरोधी लोगों के बोल रहे.

​बॉलीवुड फिल्मों के लिए लिखे गीत
बॉलीवुड फिल्मों के लिए कई गीत लिखकर भी ख्याति अर्जित की. शायरी के क्षेत्र में 50 साल लंबे करियर के साथ इंदौरी ने सबसे पहले साल 1993 में आई फिल्म 'सर' के लिए गाना लिखा था. इसमें उनका लिखा गीत 'आज हमने दिल का हर किस्सा' काफी पॉपुलर हुआ था. इसके बाद उन्होंने खुद्दार, मर्डर, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, करीब, इश्क, घातक और बेगम जान जैसी फिल्मों में गानों के बोल लिखे.

11 अगस्त 2020 को दुनिया को कहा अलविदा 
इंदौरी साहब अक्सर कहा करते थे कि उन्हें अभी भी वह शायरी लिखनी है जो उन्हें अमर बनाएगी. वह कहा करते थे कि मेरे मरने के बाद मेरी जेब में देखना, तुम्हें वह वहां मिल जाएगी. अपने ऑन-स्टेज प्रदर्शनों के अलावा राहत इंदौरी ने कई लोकप्रिय हिंदी फिल्मों जैसे करीब, मर्डर और मुन्ना भाई एमबीबीएस के लिए गीत भी लिखे. अपना जीवन उर्दू साहित्य के प्रति समर्पित करने वाले राहत इंदौरी, कोविड महामारी (COVID-19) के चलते 11 अगस्त 2020 को इंदौर में इस जग से हमेशा के लिए रुखसत हो गए. राहत इंदौरी को वर्ष 2005 में पद्मश्री, वर्ष 2016 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2019 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया. 

यहां पढ़ें राहत इंदौरी के कुछ खूबसूरत शेर:-
“लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है'
'सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.”

“तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो”

“दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए…”

“न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा…”

“शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे…”

“हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते…”

“रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है…”

“बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ…”

“घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है…”

“ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो…”

“बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए…”

“बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ…”

मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना 

लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना 

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