उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) दोनों चचेरे भाई अगर एक साथ आते हैं तो सबसे बड़ा सवाल है कि नेता कौन होगा? क्या राज ठाकरे उद्धव के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. और इसके विपरीत क्या उद्धव राज के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे?
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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray) के पॉडकास्ट के ऑनलाइन वायरल होने के कुछ घंटों बाद ही शिवसेना (UBT) के ऑफिशियल एक्स हैंडल ने एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने कहा कि वह महाराष्ट्र के हित में छोटे-मोटे विवादों को दरकिनार करने को तैयार हैं. वीडियो में स्प्लिट-स्क्रीन फ्रेम में उद्धव ठाकरे अपने आवास मातोश्री के बाहर राज ठाकरे से हाथ मिलाते हुए दिखाई दे रहे हैं. यह वीडियो उद्धव की सेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) दोनों के मूड को दर्शाता है.
अब तक धुर विरोधी रहे हैं दोनों भाई
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) दोनों चचेरे भाई हैं, जो कभी शिवसेना के प्रमुख नेता थे. लेकिन, पिछले तीन दशकों से दोनों कट्टर प्रतिद्वंद्वी और धुर विरोधी रहे हैं. हालांकि, अब अगर वे राजनीतिक रूप से फिर से एक हो जाते हैं तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक और उथल-पुथल मचा सकता है, क्योंकि राज्य में पहले से ही 2022 शिवसेना और 2023 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) दोनों में विभाजन के कारण उथल-पुथल हो चुका है.
मराठी मुद्दे को लेकर आ सकते हैं साथ
जब से दोनों चचेरे भाई अलग हुए हैं, निश्चित रूप से यह राजनीतिक सुलह की सबसे गंभीर बातचीत है. बता दें कि पार्टी में दरकिनार किए जाने के बाद राज ठाकरे ने साल 2005-06 में शिवसेना छोड़कर मनसे की शुरुआत की थी. हालांकि, अब दोनों के बीच सुलह के संकेत की पृष्ठभूमि एक महत्वपूर्ण कहानी बयां करती है. पिछले कुछ समय से राज्य में महायुति सरकार के महाराष्ट्र के सभी प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी अनिवार्य करने के फैसले पर जोरदार बहस चल रही है. एमएनएस सहित विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध किया है. इसके अलावा इस साल के अंत तक बीएमसी चुनाव होने की भी उम्मीद है, ऐसे में ठाकरे ब्रदर्स का एकजुट होना मराठी गौरव के मुद्दे को उजागर कर सकता है.
बीएमसी चुनाव ठाकरे परिवार के राजनीतिक अस्तित्व की कुंजी साबित हो सकते हैं. भाजपा मुंबई नगर निगम जीतने के लिए दृढ़ संकल्प है, जो दशकों से शिवसेना के लिए बड़ी ताकत का स्रोत रही है. दूसरी तरफ शिवसेना प्रमुख और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) को नष्ट करने के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने अब तक ठाकरे गुट के 50 से अधिक पूर्व पार्षदों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है.
ठाकरे ब्रदर्स बदल सकते हैं पूरा खेल
शिवसेना (UBT) और एमएनएस गठबंधन खेल को बदल सकता है. दोनों चचेरे भाइयों के साथ मिलकर चुनाव प्रचार करने की मात्र दृश्यात्मक और भावनात्मक अपील ही मराठी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है. यह न केवल मुंबई में, बल्कि मृद्ध मुंबई महानगर क्षेत्र में, साथ ही नासिक और पुणे जैसे गढ़ों में भी नगर निगम चुनावों को प्रभावित कर सकती है. इसका मतलब महाराष्ट्र में त्रिकोणीय चुनाव भी हो सकता है, क्योंकि शिवसेना (यूबीटी) और मनसे दोनों के विपक्षी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन में शामिल होने की संभावना नहीं है. वोटों के इतने ज्यादा बंट जाने से भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति ज्यादा मुश्किल स्थिति पहुंच सकती है, जितना उसने अनुमान लगाया था.
ठाकरे ब्रदर्स का मिलन कितना मुश्किल?
हालांकि, शिवसेना (UBT) और एमएनएस के कई नेता मानते हैं कि इस पुनर्मिलन को कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है. दोनों भाइयों के साथ आने के लिए कई बाधाओं को पार करना होगा. इसके साथ ही सवाल यह है कि यह एकजुटता अगर होती है तो बिना टूटे कितने समय तक टिक सकती है. इसके साथ ही सबसे बड़ा मुद्दा दोनों लोगों के बीच विश्वास की कमी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एमएनएस नेता संदीप देशपांडे ने कहा, 'अतीत में हमने दो बार एक बार 2014 में और फिर 2017 में उद्धव ठाकरे की पार्टी के साथ गठबंधन करने का प्रयास किया था. दोनों ही मौकों पर उन्होंने पहले तो इच्छा दिखाई, लेकिन बाद में उन्होंने जवाब देना बंद कर दिया. हाथ मिलाना भी बिना शर्त होना चाहिए. आप हमें यह नहीं बता सकते कि हम किसे अपने घर में आमंत्रित कर सकते हैं और किसे नहीं.'
दोनों भाई साथ आते हैं तो किसके हाथ होगी कमान
शिवसेना (UBT) के एक वरिष्ठ नेता ने सबसे बड़ी व्यावहारिक बाधा की ओर इशारा करते हुए सवाल किया, 'नेता कौन होगा.' उन्होंने पूछा, 'क्या राज ठाकरे उद्धव के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. और इसके विपरीत क्या उद्धव राज के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे?' इस बीच इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि राज ठाकरे, भाजपा और एकनाथ शिंदे के साथ आगामी निकाय चुनावों में गठबंधन के रूप में लड़ने के लिए बातचीत कर रहे हैं.
महाराष्ट्र विकास अघाड़ी का क्या होगा?
राजनीतिक विश्लेषक पद्मभूषण देशपांडे ने कहा, 'महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) का मुद्दा भी है, क्योंकि अभी वर्तमान में शिवसेना (UBT) गठबंधन का हिस्सा है. सवाल है कि क्या उद्धव एमवीए छोड़ेंगे या राज ठाकरे इसमें शामिल होंगे? इसकी संभावना बेहद ही कम है कि दोनों चचेरे भाई एक साथ एमवीए का हिस्सा होंगे. लेकिन, त्रिकोणीय चुनाव की स्थिति में क्या दोनों चचेरे भाई केवल मराठी वोट के आधार पर मुंबई निकाय चुनाव जीत पाएंगे?'
विश्वास की कमी कितनी गहरी है?
एमएनएस के एक पूर्व विधायक ने कहा, '2017 के निकाय चुनावों से पहले राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने की पेशकश की थी. लेकिन, तब उद्धव राज्य में भाजपा के साथ सत्ता में थे और उन्होंने निकाय चुनावों को राज ठाकरे की पार्टी को खत्म करने के अवसर के रूप में देखा. उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. शिवसेना को केवल 84 सीटें मिलीं, जो बहुमत से 20 कम थीं. जबकि, भाजपा ने 82 सीटें जीतीं. उद्धव ने भाजपा की मदद से सत्ता हासिल की और बाद में मनसे के सात विजेताओं में से छह को भी अपने पाले में कर लिया. तब से राज ने उद्धव पर और भी कम भरोसा किया है.'
वहीं दूसरी तरफ, एक शिवसेना (यूबीटी) सांसद ने बताया कि एकनाथ शिंदे ने तीन दिन पहले राज ठाकरे के साथ उनके आवास पर डिनर किया था. उन्होंने कहा, 'हम इस डिनर के एक या दो दिन बाद रिकॉर्ड किए गए पॉडकास्ट में उनके शब्दों पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?'
कई बार व्यक्तिगत भी हो जाती है कड़वाहट
दोनों चचेरे भाइयों के बीच कड़वाहट कई बार व्यक्तिगत भी हो जाती है. साल 2017 के निकाय चुनावों से पहले राज ठाकरे ने एक सार्वजनिक रैली में आरोप लगाया था कि शिवसेना के संस्थापक और प्रमुख बाल ठाकरे अपने अंतिम दिनों में दुखी थे. उन्होंने तब कहा था, 'मैं एक बार उनसे मिलने गया था और देखा कि उन्हें तेल से भरे बटाटा वड़े दिए जा रहे थे. मैं घर गया और उनके लिए उनका पसंदीदा खाना तैयार करवाया.'
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे को उम्मीद थी कि माहिम निर्वाचन क्षेत्र में उनके बेटे अमित ठाकरे के सामने उद्धव ठाकरे उम्मीदवार नहीं उतारेंगे. क्योंकि, जब उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने 2019 में पहली बार चुनाव लड़ा था, तब राज ने उनके सामने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. हालांकि, उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) ने माहिम में महेश सावंत को उम्मीदवार बना दिया और त्रिकोणीय मुकाबले में सावंत ने जीत हासिल की. इस सीट पर शिंदे गुट दूसरे स्थान पर रहा, जबकि राज के बेटे अमित तीसरे स्थान पर रहे.