Fake Drug Market: बीमार होने के बाद जो दवा आप खरीदते हैं. उस दवा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है. हमारे देश में टैबलेट के नाम पर कैसे मरीजों की जान को जोखिम में डाला जा रहा है, इस खबर में हम आपको बताएंगे.
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Fake Drug Market: जो दवा आप स्वस्थ होने के लिए खा रहे हैं, वो उल्टा आपको बीमार कर रही है. लोगों की जान ले रही है. टैबलेट के नाम पर जहर खिलाने के खेल का नया खुलासा राजस्थान में हुआ है. औषधि नियंत्रण विभाग की जांच में पता चला है कि मार्केट में कई ऐसी दवाइयां बिक रही है जो जिसमें जरूरी सॉल्ट यानी रासायनिक तत्व तक नहीं है. यानी दवा पूरी तरह नकली है.
दवा नहीं जहर!
ऐसी सफेद गोली है, जो जान बचाने की बजाय जान ले सकती है. इनमें बुखार की दवा है. गैस्ट्रिक्ट और सर्दी की दवाएं हैं. एंटीबायोटिक है. एंटी एलर्जिक है. यहां तक कि कार्डियक अरेस्ट से बचने के लिए जो दवाइयां खरीद रहे हैं वो भी नकली है. जी न्यूज के पास जांच का वो दस्तावेज मौजूद है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि किस कंपनी की कौन-कौनी सी दवाइयां हैं, जो टेस्ट सेम्पल में फेल हो गई. पेट दर्द की दवा से लेकर नाक-कान तक की दवा से साल्ट गायब हैं. इंजेक्शन से लेकर फ़्लूइड तक में संक्रमण पाए गए हैं.
सैंपल टेस्ट में फेल हुई दवाएं
एंटीबायोटिक के कई दवाइयां सैंपल टेस्ट में फेल हो गई. इंजेक्शन के 6 बैच फेल हो गए. जांच से पहले एक लाख से अधिक दवाइयां बाजार में बिक भी गई. इसका अर्थ ये है कि हजारों लोगों ने नकली दवाइयां और इंजेक्शन ले लिया. थेराविन फार्माल्यूसेशन कंपनी की लिवोसिट्रोजिन और मोंटेलुकास्ट जैसी दवाइयां टेस्ट में फेल हो गई. जांच होने तक ये 35 हजार दवाएं बिक चुकी थीं. दर्द कम करने वाली एक विशेष कंपनी की दवा ग्लिमिप्राइड और पायोग्लीटाजोन के भी तीन बैच टेस्ट में फेल हो गए. इसकी भी 20 हजार से अधिक दवाएं बिक चुकी थी. कार्डियक अरेस्ट में काम आने वाली दवा लोसरटान के 2 बैच फेल हो गए. इसकी दवा बनाने वाली एमेक्स फार्मा के 10 हजार से अधिक टेबलेट बिक चुके हैं.
जेनरिक दवाएं क्या होती हैं?
टेस्ट में फेल हुई दवाएं, सभी जेनरिक दवाएं थी. वो दवाएं जेनरिक होती हैं जिसे पहले ब्रांडेड कंपनी बनाती थी. मगर एक निश्चित समय के बाद सामान रासायनिक तत्वों के साथ दूसरी छोटी कंपनियां भी इसे बनाती हैं. पिछले कुछ सालों में जेनरिक दवाओं की खरीद पर जोर दिया गया है. सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ केंद्रों में जेनरिक दवाएं सप्लाई की जाती है. पूरे भारत में जनऔषधि केंद्र हैं, जहां जेनरिक दवाएं मिलती हैं. सरकार भी चाहती है कि आप जेनरिक दवाएं खरीदें. ताकि आपको सस्ती दवाएं मिले. लोगों को कुछ दवाओं की खरीद पर 80 प्रतिशत तक बचत होती है. मगर कुछ मुनाफखोरों ने इसे अवसर समझ लिया. और उसने दवाओं से जरूरी रसायन तक गायब कर दिया.
नहीं हुआ कोई एक्शन!
ये जांच रिपोर्ट पिछले साल दिसंबर की है. लेकिन दवा कंपियों को फायदा पहुंचाने के लिए औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा उसे छिपा कर बैठ गया. राजस्थान विधानसभा के पिछले सत्र में जब नकली दवाओं को लेकर सवाल जवाब हुआ तो तब जाकर इसका खुलासा हुआ. बड़ी बात ये है कि उसके बाद भी औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा पर एक्शन नहीं हुआ. पिछले दिनों जब कप सिरप से बच्चों की मौत की खबर ने तूल पकड़ी तब जाकर चार दिन पहले राजाराम शर्मा को निलंबित किया गया है.
नकली दवा खाने से क्या हुआ होगा?
सोचिए एक राजाराम शर्मा के कारण हजारों लोगों ने नकली दवाइयां खाई होंगी. वो इन दवाओं को खाकर ठीक नहीं हुए होंगे. बल्कि और ज्यादा बीमार हो गए होंगे. होना ये चाहिए था कि दवाओं के सैंपल फेल होने पर कोर्ट केस होता.
कंपनियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए थी
दवा के नाम पर जहर बेचने वाली कंपनियों पर सख्त कार्रवाई होती. दो साल से आजीवन कारवास तक की सजा मिलती. राष्ट्रीय स्तर पर इन दवाओं को बैन लगाने के लिए पहल होने चाहिए थी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्योंकि एक आदमी पूरी रिपोर्ट को दबाकर बैठ गया. अब राजस्थान के औषधि नियंत्रक कह रहे हैं कि अगले दो दिनों में राज्य की 65 दवा निर्माण कंपनियों की सघन जांच की जाएगी.