मनवीर सिंह, अजमेर: मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को इंतकाल के बाद भले ही हिंदुस्तान की मिट्टी नसीब न हुई हो लेकिन इस साल उनके उर्स पर उनकी मजार पर जो चादर पेश की जाएगी, वो हजारों किलोमीटर का सफर तय कर हिंदुस्तान से म्यांमार पहुंचेगी.
इस ख़ास चादर को बनाने का जिम्मा अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की व्यवस्थाएं संभालने वाली दरगाह कमेटी को सौंपा गया था. आज अजमेर कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा ने इसे भेजने से पहले खबरनवीसो के सामने नुमाया (दिखाना) किया.
दिन ज़िंदगी खत्म हुए, शाम हो गई,
फैला के पांव सोएंगे कुंज-ए-मज़ार में,
कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में.
इन पंक्तियों का दर्द यदि महसूस किया जाए तो पता चलता है कि मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान की इस मिट्टी से कितनी मोहब्बत थी. अंग्रेजों ने भले ही उन्हें यहां से कैद कर रंगून भिजवा दिया हो लेकिन उनकी हर सांस में हिंदुस्तान की महक थी. जफर की शायरी में भी उनके वतन की मिट्टी से महरूम हो कर एक गैर मुल्क में दफन होने का दर्द साफ़ सुनाई देता है लेकिन कहते हैं कि वतन पर मरने वालों का रिश्ता कभी अपने वतन से टूटता नहीं है. मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मौत के बाद अब उनके और हिंदुस्तान के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत हुई है. इस नये रिश्ते में सूफिज्म की रूहानी महक भी है और राजस्थान की मिट्टी के रंग भी.
भारत सरकार की पहल पर भेजी जाएगी चादर
यह नया रिश्ता भारत सरकार की पहल पर शुरू हुआ और तय किया गया कि हर साल बहादुर शाह जफर के सालाना उर्स पर उनकी मजार पर पेश की जाने वाली चादर सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से तैयार हो कर जाएगी. यह लगातार दूसरी बार है, जब अजमेर शरीफ से तैयार चादर को रंगून भेजा जा रहा है. आज अजमेर कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा ने दरगाह कमेटी की और से तैयार ख़ास चादर को खबरनवीसों के सामने नुमाया किया.
भगवा रंग की होगा खास चादर
बहादुर शाह जफ़र की मजार पर पेश की जाने वाली यह चादर ख़ास तौर पर हिंदुस्तान की सरजमीं की खुशबू को समेटे हुए है. बनारसी कपड़े पर राजस्थान बंधेज की कारीगरी से इस चादर को सजाया गया है. ख़ास तौर पर मंगवाए गए मोतियों से इसकी सजावट की गयी है. हिंदुस्तान की भावनाओं के मद्देनजर यह चादर भगवा रंग में तैयार की गई है, जिसमें शांति के प्रतीक सफेद गुलाब के फूलो को कशीदाकारी से उकेरा गया है. खानदानी तौर पर दरगाह शरीफ के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी चादर बनाने का काम करने वाले लियाकत अली ने लगभग एक सप्ताह की कड़ी मेहनत से इस चादर को तैयार किया है.
यह चादर आगामी 23 नवंबर को मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की मजार पर पेश की जाएगी. यह तोहफा उस बादशाह के लिए होगा, जिसके जहन में मरते दम तक हिंदुस्तान ज़िंदा रहा और सदियां गुजर जाने के बाद भी जो बादशाह आज तक हिंदुस्तान के जहन में ज़िंदा है.