Ajmer: जिले का सबसे पुरातन तीर्थ पुष्कर सरोवर (Pushkar Lake) सदियों से हिंदुओं की अटूट आस्था का केंद्र है. कहते हैं कि इसी सरोवर से सृष्टि की उत्पत्ति हुई, इसी तीर्थ में भगवान राम सीता की चरण रज भी पड़ी. यहीं सप्तऋषियों ने तप किया. यही गजेंद्र का मोक्ष हुआ लेकिन आज इस पावन सरोवर की दुर्दशा देखकर देशभर के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था आहत हो रही है.
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जिस तीर्थ से करोड़ों जनमानस की आस्था जुड़ी है. उस तीर्थ की ऐसी दुर्दशा देखकर देश-विदेश से आने वाले यात्रियों की आस्थाएं धूमिल हो रही हैं. कभी पुष्कर सरोवर का कल-कल बहता स्वच्छ और पानी श्रद्धालुओं के लिए अमृत के समान होता था. लोग सरोवर में डुबकी लगाकर तरोताजा हो जाते थे. तन और मन की सारी गंदगी धूल जाती थी, लेकिन आज इस सरोवर की दुर्दशा देखकर श्रद्धालुओं का मन पीड़ा से भर जाता है.
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गंदगी से अटे कुंड, सरोवर का घटता जलस्तर, और प्रदूषित जल (Polluted water) की वजह से पुष्कर सरोवर में जलीय जीव मर रहे हैं. सरोवर में जलीय वनस्पति लगातार अपना दायरा बढ़ा रहा हैं. सरोवर की सफाई नहीं होने से हर तरफ गंदगी ही गंदगी नजर आती है. सरोवर का लगातार घटता जलस्तर और खाद्य सामग्रियों के सरोवर में प्रवाहित करने से सरोवर का जल लगातार प्रदूषित हो रहा है. प्रशासन और आम लोगों की लापरवाही से आस्था पर सबसे बड़ा दाग लग गया है.
हालत तो इतने बिगड़ चुके हैं कि अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए हजारों कलोमीटर की दूरी तय कर तीर्थयात्री और श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन सरोवर की हालत देखकर बहुत पीड़ा का अनुभव होता है. इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन न तो सरोवर के जीर्णाद्धार के लिए संकल्प हैं और न ही सरोवर के निर्मल बनाने के प्रति संजीदा है. पुष्कर में कोरोना काल के बाद एक बार फिर श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो गया है. हजारों श्रद्धालु पवित्र सरोवर में आस्था की डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं लेकिन प्रशासन की घोर लापरवाही और बेरूखी से श्रद्धालुओं की आस्था आहत हो रही है.
अवैध बोरिंग से जलस्तर में कमी
एक लंबे अरसे से सरोवर के संरक्षण की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता (Social activist) अरुण पाराशर बताते हैं, कि केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पुष्कर में अति जलदोहन को देखते हुए 30 सितंबर 2003 को पुष्कर सहित सम्पूर्ण विधानसभा क्षेत्र को टायफाइड एरिया घोषित किया था. इसके बावजूद सरोवर के आस पास धड़ल्ले से अवैध बोरिंग का सिलसिला जोरों पर है, जिससे सरोवर का जलस्तर लगातार घट रहा है. डार्क जोन के नोटिफाइड एरिया के तहत इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के नए कुए, ट्यूबवैल की खुदाई पर प्रतिबंध लगाया गया था. नियम के अनुसार, केवल विशेष परिस्थितियों में जिला कलेक्टर ही बोरिंग की अनुमति दे सकते हैं. कानूनी शिथिलता और प्राशासनिक मिलीभगत से बोरिंग के जरिए लगातार जल का दोहन किया जा रहा हैं, जिससे सरोवर का जलस्तर पाताल लोक पहुंचने की कगार पर हैं.
तीर्थ पुरोहितों ने भी उठाई थी आवाज, नतीजा सिफर रहा
सरोवर के संरक्षण (Protection of lake) की बात तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय जागरूक लोगों ने भी जोर-शोर से उठाई. इसको लेकर एक बड़ा आंदोलन भी खड़ा हुआ. आंदोलन के बाद आनन-फानन में तत्कालीन जिला कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा (Vishwamohan Sharma) ने सरोवर में पानी की आवक के लिए पांच ट्यूबवेलों के लिए तुरंत प्रभाव से पचास हजार रुपये स्वीकृत कर दिए. 7 दिन में खराब और बन्द पड़े ट्यूब वेलों को चालू करवाने के आदेश दे दिए, लेकिन कलेक्टर का आदेश धरातल पर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया. तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव जगदीश चंद मोहंती ने 2016 में नीतिगत निर्णय लेते हुए सरोवर में बीसलपुर परियोजना का जल डालने का आदेश भी दिया. इस आदेश का असर भी सिफ़र ही रहा.
बहरहाल करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र पुष्कर सरोवर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है. देखना है कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र पुष्कर सरोवर की तस्वीर कब बदलती है?
Reporter- Manuveer Singh Chudaat
Copy- Sujit kumar Niranjan