एतिहासिक छावनी नसीराबाद को स्वादिष्ट 'कचौरा' ने दी देश-विदेश में अलग पहचान
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एतिहासिक छावनी नसीराबाद को स्वादिष्ट 'कचौरा' ने दी देश-विदेश में अलग पहचान

नसीराबाद में मुख्य कचौरा व्यवसायियों की दुकान के आस-पास वाहनों की लंबी कतार लग जाती है और अंकल पहले मुझे दो की आवाजें इन कचौरे की दुकान पर गूंजती रहती है. हालात यह रहते हैं कि कढ़ाई में से कचौरा उतरने के बाद काउंटर पर पहुंचते ही चंद मिनट में ग्राहक ले लेते हैं.

एतिहासिक छावनी नसीराबाद को स्वादिष्ट 'कचौरा' ने दी देश-विदेश में अलग पहचान

Ajmer: सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक छावनी नसीराबाद की स्थापना सन 1818 में नसीरुद्दौला ने की थी और उसी के नाम पर इस छावनी का नाम नसीराबाद पड़ा. मारवाड़ में अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की क्रांति में शंखनाद नसीराबाद से ही बजाया गया था, जिसके कारण इतिहास में नसीराबाद देश की महत्वपूर्ण छावनी में अहम स्थान रखता है.

इसके बाद आवश्यकता को देखते हुए देश में जहां ट्रक चलते हैं, वहीं नसीराबाद में ट्रेलर यानि लंबी बॉडी के ट्रक चलना आरंभ हुए जोकि देश में दूर-दराज तक भारी भरकम बड़े उपकरण पहुंचाने में उपयोगी साबित हो रहे हैं. नसीराबाद का नाम अंग्रेजों के विरुद्ध शंखनाद और देश की सड़कों पर ट्रेलर चलाने तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि देश और विश्व में यहां की खाद्य सामग्री कचौरा ने विशेष पहचान दी है.

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यहां हर रोज दोपहर से पूर्व अधिकांश बाहरी व्यक्ति इसलिए पहुंचते हैं कि यहां के कचौरे का लुफ्त उठा सके. दोपहर 12 बजे तक ही बाजार में कचौरा बनाया जाता है. नसीराबाद में मुख्य कचौरा व्यवसायियों की दुकान के आस-पास वाहनों की लंबी कतार लग जाती है और अंकल पहले मुझे दो की आवाजें इन कचौरे की दुकान पर गूंजती रहती है. हालात यह रहते हैं कि कढ़ाई में से कचौरा उतरने के बाद काउंटर पर पहुंचते ही चंद मिनट में ग्राहक ले लेते हैं.

नसीराबाद के लोगों का सुबह का नाश्ता कचौरा और जलेबी ही है. मेहमानों की आवभगत कचौरे के साथ की जाती है और जो भी व्यक्ति एक बार कचौरा जुबान पर रख लेता है. वह तब तक नहीं रुकता जब तक उसका पेट पूरी तरह भर नहीं जाता. विशेष लजीज स्वाद के कारण यह कचौरा ग्राहकों को पर्यटकों के रूप में आकर्षित करता है. इस कचौरे में कच्चे मसाले के बजाय गरम मसाला डालने के कारण कई दिनों तक रखा जा सकता है.

कचौरा दो स्वाद में बनाया जाता है जोकि आलू और दाल का बनता है. एक कचौरे का वजन लगभग 600 ग्राम है. वैसे तो नसीराबाद में कचौरे की कई दुकानें और ठेले हैं लेकिन चवन्नीलाल का कचौरा विशेष पहचान रखता है. देश में कचौरे की विशेष पहचान रखने वाली इस दुकान की खासियत यह है कि दुकान मालिक स्वयं कचौरे बनाने का कार्य करता है. हलवाई अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस दुकान पर कचौरा नहीं बनाया जाता बल्कि दुकान मालिक स्वयं कचौरा बनाता है. लोगों का यह मानना है कि चवन्नीलाल कचौरे वाले की दुकान पर मालिक जो कचौरा बनाता है, उसमें मसाला मिलाने की उसकी रॉयल्टी उसी के पास है. इसी कारण यह दुकान देश में विख्यात है.

अब तो हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि कचौरे को ऑनलाइन मंगवाने लगे हैं. कई अन्य शहरों में भी कई व्यक्तियों ने कचौरा बनाने का प्रयास किया लेकिन नसीराबाद के चवन्नीलाल एवं अन्य दुकानदारों जैसा कचौरा स्वाद नहीं बना सके. जिसके चलते यह कचौरा अन्य किसी शहर में नहीं बनाया जा सका और नसीराबाद की पहचान बन गया. इतना ही नहीं बल्कि नसीराबाद का नाम लेने पर अधिकांश व्यक्ति यह पूछते है कि क्या यह वही नसीराबाद है जहां का कचौरा प्रसिद्ध है.

ट्रेन अथवा बस में नसीराबाद होकर जाने पर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर कचोरा बेचने वालों की और खरीदने वालों की आवाजे सुनाई देती है. नसीराबाद में चवन्नीलाल के अतिरिक्त ओमप्रकाश प्रजापत, राधेश्याम प्रजापत, मोहन हलवाई आदि का नाम भी कचोरा बनाने वालों में पहचान रखता है लेकिन चवन्नीलाल ने नसीराबाद को विशेष पहचान दी है. चवन्नीलाल ने 1973 से स्वादिष्ट कचौरा बनाकर देश में नसीराबाद को विशेष पहचान दी.

26 फरवरी 1914 को जन्में चवन्नीलाल का असली नाम रामलाल गुर्जर है लेकिन उनके दोस्त उन्हें चवन्नी के लाल के नाम से पुकारने लगे और चवन्नीलाल उनका नाम पड़ गया. नसीराबाद में अब हनुमान चौक स्थित ओमप्रकाश प्रजापत का कचौरा भी लजीज स्वाद के कारण प्रसिद्ध होता जा रहा है  वैसे सर्दी में गरमागर्म कचौरा स्वाद में अधिक लजीज लगता है जिसके इन दिनों सर्दियों में कचौरा की दुकानों पर विशेष भीड़ देखने को मिल रही है.

Reporter- Manveer

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