लड़के-लड़कियां घेरे में करते हैं ऐसा डांस कि लोग दूर से कुछ और ही समझ लेते हैं
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लड़के-लड़कियां घेरे में करते हैं ऐसा डांस कि लोग दूर से कुछ और ही समझ लेते हैं

आपको होली के इस खास मौके पर मेवाड़ व बाड़मेर क्षेत्र के एक प्रसिद्ध लोकनृत्य से रुबरू करा रहे हैं. यह प्रसिद्ध लोकनृत्य है 'गैर लोकनृत्य'. धुलंडी से महज 32 किमी. दूर सनावड़ा गांव में गैर का रंग जम चुका है. 

गोल घेरे में गैर लोकनृत्य करते हुए कलाकार.

बाड़मेर: होली के साथ राजस्थान समेत पूरे देश भर में रंग और गुलाल के संग आनंद परवान पर चढ़ रहा है. होली पर तो रंगो की बात अब आम हो चुकी है. पर इन रंगों को जमाने वाले लोकगीत और लोकनृत्य की चर्चा शायद ही होती है. हम होली के इस खास मौके पर आपको मेवाड़ व बाड़मेर क्षेत्र के एक प्रसिद्ध लोकनृत्य से रुबरू करा रहे हैं. यह प्रसिद्ध लोकनृत्य है 'गैर लोकनृत्य'. धुलंडी से महज 32 किमी. दूर सनावड़ा गांव में गैर का रंग जम चुका है. सदियों से आंगी-बांगी के साथ ढोल की थाप औैर थाली की खनक के साथ इस गैर लोकनृत्य को देखने हजारों लोग हर साल जुट जातें हैं. गोल घेरे में इस नृत्य की संरचना होने के कारण यह "घेर" व कालांतर में इसे "गैर" कहा जाने लगा.मेवाड़ के गैरिए नृत्यकार सफेद अंगरखी, धोती व सिर पर केसरिया पगड़ी धारण करते हैं, जबकि बाड़मेर के गैरिए सफेद ओंगी,(लंबी फ्रॉक) और तलवार के लिए चमड़े का पट्टा धारण करते हैं.

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मेवाड़ और बाड़मेर के गैर नृत्य की मूल रचना एक ही प्रकार की होती है, पर नृत्य की लय, चाल व मंडल में अंतर रहता है. गैर के अन्य रूप हैं. यह भील जाति की संस्कृति को प्रदर्शित करता है. "कणाना" भी बाड़मेर का प्रसिद्ध गैर नृत्य है. बालोतरा में फाग के साथ गैर का आयोजन अपने आप में अलग है. इसमें होली की गालियों के साथ गलियों में भजन गाते हुए चलते गेरियों को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है.दिन में ही बच्चों की ढूंढ में शामिल होकर ये मस्ती में रहते हैं.

गैर नृत्य से जुड़ी कुछ खास बातें

मेवाड़ व बाड़मेर क्षेत्र में गैर नृत्य करने वाले नृतक को "गैरिया" कहते हैं.
 गैर नृत्य होली के दूसरे दिन से शुरू होता है, फिर 15 दिनों तक चलता है.
ढोल, बांकिया, थाली व वाद्य यंत्रों के साथ डंडा लेकर किया जाता है.
इस नृत्य को देखने में ऐसा लगता है मानो तलवारों से युद्ध चल रहा हो.
इसे पुरुषों द्वारा सामूहिक रूप से गोल घेरा बनाकर किया जाता है. 

 

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