राजस्थान में टीबी के 1.59 लाख पंजीकृत रोगी, एक साल में 45 प्रतिशत मामले बढ़े
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राजस्थान में टीबी के 1.59 लाख पंजीकृत रोगी, एक साल में 45 प्रतिशत मामले बढ़े

राज्य के टीबी अधिकारी डॉ पुरुषोत्तम सोनी के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सरकारी और निजी क्षेत्र के चिकित्सकों द्वारा टीबी रोगियों की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया है. 

राजस्थान देश के उन राज्यों में से एक है जिन पर टी.बी. की बीमारी का सबसे अधिक बोझ है

जयपुर: स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा टी.बी. (क्षय) रोगियों की सूचना देना अनिवार्य किए जाने के बाद राजस्थान में इस रोग के मामलों की संख्या एक साल में लगभग 45 प्रतिशत बढ़ गई. पिछले साल राज्य में कुल 1,59,762 टीबी रोगियों की सूचना मिली जो साल 2017 में 1,10,044 थी.

राज्य के टीबी अधिकारी डॉ पुरुषोत्तम सोनी के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सरकारी और निजी क्षेत्र के चिकित्सकों द्वारा टीबी रोगियों की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया है. यही कारण है कि पिछले दो साल में राज्य में टीबी रोगियों की अधिसूचना (नोटिफिकेशन) में यह बढोतरी दर्ज की गयी है. उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने टी.बी. के आंकड़ों को दर्ज करने के लिए एक 'रीयल टाइम' पोर्टल 'निक्षय' बनाया है. सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टरों को उनके पास इलाज के लिए आने वाले टी.बी. रोगियों की सूचना इस पर दर्ज करानी अनिवार्य है. 

इस पोर्टल के अनुसार, वर्ष 2017 और 2018 के बीच एक साल की अवधि में राजस्थान में टी.बी. के मामलों की अधिसूचना में 45 प्रतिशत वृद्धि हुई है. 2018 में राजस्थान में टीबी के 1,59,762 मामले सामने आए जबकि 2017 में यह आंकड़ा 1,10,044 लाख टी.बी. रोगियों का था. इस साल अब तक 67,247 मामले सामने आए हैं जो कि लक्ष्य का 67 प्रतिशत है. हालांकि पिछले साल की तुलना में यह 20 प्रतिशत कम है. 

चिकित्सा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि राजस्थान देश के उन राज्यों में से एक है जिन पर टी.बी. की बीमारी का सबसे अधिक बोझ है. ऐसे में प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टरों से मिलने वाली अधिसूचना में लगभग 100 प्रतिशत से भी ज्यादा का इजाफा होना एक बड़ी उपलब्धि है. 2018 में प्राइवेट सेक्टर से 47,125 मामले अधिसूचित हुए जबकि 2017 में यह आंकड़ा 23,438 था. हालांकि राज्य में टीबी रोगियों के ये आंकड़े केवल पंजीयन कराने वाले रोगियों के हैं जबकि वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है. डॉ सोनी के अनुसार, टीबी के मामलों की अधिसूचना में वृद्धि का मतलब इसके रोगियों की संख्या बढ़ना नहीं है बल्कि इन लोगों की सूचना पहले दर्ज नहीं हो पाती थी. 

टी.बी. पर लैन्सेट कमीशन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 9,53,000 टी.बी. रोगी खो जाते हैं. यानी या तो रोगी डायग्नोसिस के लिए नहीं आते या फिर वे रोगी जिन्हें टी.बी. होने का पता तो चला है लेकिन उनकी सूचना दर्ज नहीं कराई गई. लैन्सेट रिपोर्ट के मुताबिक यदि प्राइवेट सेक्टर को पूरी तरह इस मुहिम में अपने साथ शामिल कर लिया जाए तो अगले 30 साल में भारत में 80 लाख जिंदगियों को बचाया जा सकता है.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय 2018 में टी.बी. की अधिसूचना नहीं देने को अपराध घोषित कर दिया. यानी न केवल सरकारी बल्कि निजी चिकित्सकों को भी अपने पास आने वाले टीबी रोगियों की सूचना अनिवार्य रूप से देनी होगी अन्यथा उन्हें जेल जाना पड़ सकता है. केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय और ग्लोबल फंड ने मई 2018 में ‘जॉइंट ऐफर्ट फॉर ऐलिमिनेशन ऑफ टी.बी.’ (जीत) शुरू किया था. जीत को राजस्थान के 24 जिलों में दो भिन्न मॉडलों के तहत अमल में लाया गया है.

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