चंबल के बीहड़ों में स्थापित है रैना वाली माता का मंदिर, महिमा जान दर्शन को करेगा मन
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चंबल के बीहड़ों में स्थापित है रैना वाली माता का मंदिर, महिमा जान दर्शन को करेगा मन

धौलपुर की इस जगह पर मां रैना वाली की एक आकर्षक प्रतिमा आज भी विद्यमान है. पांडवों की मां कुंती की यह अराध्य देवी थीं.

नारायण गिरी महाराज ने कुंतलपुर के घने जंगलों में देवी की अराधना कर उनसे साक्षात्कार किया.

Dholpur: धौलपुर जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर उत्तर की दिशा में राजाखेड़ा तहसील (Rajakheda) के गांव मरैना के पास चंबल नदी (Chambal River) के घने और वीरान बीहड़ों के बीच रैना वाली माता का मंदिर स्थित है.

अब यहां तीन किलोमीटर दूर आबादी बस गयी है. इस स्थल से 15 किलोमीटर पूरब दिशा में चंबल नदी के उस पार अम्बाह कस्बा जिला मुरैना में कुतबवार नामक गांव है. यह स्थान महाभारत काल में राजा कुंत भोज की कुंतलपुर राजधानी हुआ करती थी. 

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कुंत भोज की पुत्री का नाम कुंती था, जो कृष्ण की बुआ थी. दुर्वासा ऋषि के प्रसाद स्वरूप कुंती किसी भी देवता का आव्हान कर उसे बुला सकती थी. इसी के चलते उन्होंने अपनी कोख में बच्चे को बिना शादी जन्म दिया था. समाज के डर से इसी स्थल पर आसन नदी में कुंती ने स्वर्ण मंजूषा में दानवीर कर्ण को बहा दिया था और इस स्थान को देखने से पांच हजार वर्ष पूर्व महाभारत कालीन युग की कथायें एवं घटनाए साकार नजर आती हैं. आसन नदी के किनारे बसा यह साम्राज्य आज भी सुरक्षित है.

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इसी स्थान पर मां रैना वाली की एक आकर्षक प्रतिमा आज भी विद्यमान है. पांडवों की मां कुंती की यह अराध्य देवी थीं और महर्षि दुर्वासा ने यहां तपस्या की और कुंती की सेवा भावना से उसे आर्शीवाद एवं वरदान प्रदान किये.

क्या कहती हैं पुरानी किवदंतियां
पुरानी किवदंतियों के अनुसार, इस क्षेत्र में श्री-श्री 1008 नारायण गिरी महाराज की कीर्ति फैली हुयी थी. नारायण गिरी महाराज ने कुंतलपुर के घने जंगलों में देवी की अराधना कर उनसे साक्षात्कार किया. रामकृष्ण परमहंस ने जिस प्रकार मां काली से साक्षात्कार प्राप्त किया, वही स्थिति नारायण गिरी महाराज की थी. महाराज ने इस क्षेत्र में 80 यज्ञों का आयोजन कर प्रत्येक स्थल पर देवी के मंदिरों की स्थापना की थी. उन यज्ञों के चमत्कार आज भी लोगों से सुनने को मिलते हैं. महाराज की आराधना से यह देवी बाबा के साथ-साथ बालिका रूप में चलने लगी, जहां भी बाबा होते यह देवी वही पहुंच जाती. बाबा देवी को रैना वाली नाम से बुलाते थे, जिस स्थान पर आज मंदिर स्थित है. यहां पर घना जंगल एवं बीहड़ का क्षेत्र था.

बाबा ने इस स्थान पर कुटिया बनाकर तपस्या की और कुटिया के बाहर सदैव शेर पर सवारी किए. यहां देवी अठखेलियां किया करती थी और बाबा देवी को पुत्री के रूप मानते थे. आज देवी के प्रसाद के पास बाबा की मूर्ति विराजमान है और निर्वाण के बाद बाबा को कुंतलपुर में ही समाधि किया गया था, जहां विशाल आश्रम स्थित है.

मां को पसंद है खुले आसमान के नीचे रहना
यहां माता के दो स्थान हैं. एक घने बीहड़ों में दूसरा स्थान रैना गांव में है और दोनों स्थानों पर मां पीलू के पेड़ के नीचे विराजमान हैं. पुरानी किवदंतियों के अनुसार, भक्तों ने माता के लिए भव्य मंदिर बनवाये हैं लेकिन मंदिर में माता को स्थापित कराने वाले को माता स्वप्न में ही सचेत कर देती हैं. मां के स्वभाव के मुताबिक़, उन्हें केवल खुले आसमान के नीचे पीलू का पेड़ ही पसंद है.

Reporter- Bhanu Sharma

 

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