जिला मुख्यालय के आसपास में वर्तमान में जल स्तर 20 से 25 मीटर है. वहीं, बनास नदी के आसपास के इलाकों में 6 से 7 मीटर की गहराई पर पानी उपलब्ध है. वहीं, कई जगहों पर जलस्तर 40 मीटर से भी नीचे चला गया है.
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सवाईमाधोपुर: जिले में दो बड़ी नदियां बनास और चंबल के बहाव के बावजूद पेयजल का संकट बना रहता है. जिले का आधा क्षेत्र डार्क जोन घोषित है. इसके साथ ही आधे क्षेत्र में भी पेयजल पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है. इसके साथ ही कई जगहों पर जल स्तर काफी नीचे चला गया है.
जिले के कई क्षेत्रो में जल स्तर में काफी विभिन्नता पाई जाती है. जिला मुख्यालय के आसपास में वर्तमान में जल स्तर 20 से 25 मीटर है. वहीं, बनास नदी के आसपास के इलाकों में 6 से 7 मीटर की गहराई पर पानी उपलब्ध है. वहीं, कई जगहों पर जलस्तर 40 मीटर से भी नीचे चला गया है.
शहरी क्षेत्रों में खपत ज्यादा
शहरी क्षेत्र में पेयजल की ज्यादा खपत होने के कारण मांग भी ज्यादा रहती है. जिसके कारण शहरी क्षेत्र में गर्मियों में पानी की भारी किल्लत हमेशा बनी रहती है. इस बार बनास नदी में बने इंटेक लेबल से पानी मिल जाने के कारण ज्यादा परेशानी नहीं आई. वहीं, पिछले साल अच्छी बरसात के कारण जल स्तर में ज्यादा गिरावट नहीं आई. इसलिए जलदाय विभाग के टयूबवेलो में पर्याप्त पानी मिलता. अन्यथा गर्मी में बड़ी संख्या में टैंकर पेयजल की सप्लाई में लगा दिये जाते है. लेकिन इस बार बनास का पानी इंटकवेल की माध्यम से मिला, जिससे पेयजल की पूर्ति होती रही है.
प्रदेश सरकार ने चलाई जल स्वावलंबन योजना
प्रदेश सरकार ने पानी की समस्या को हल करने के लिए जल स्वावलंबन जैसी योजना जिले में चलाई. लेकिन अधिकारियों की मनमानी एवं लापरवाही के चलते योजना को लाभ नहीं मिला पाया. कई जगहों पर बनाये गये एनीकट डेमेज होने से पानी का ठहराव नही हो पाया तो कई एनीकट घटिया निर्माण के चलते पानी के साथ ही बह गए.
पानी का जलस्तर बढ़ाने में मिलेगी मदद
जलदाय विभाग के अधिकारियों की माने तो जलस्वावलंबन के अप्रत्यक्ष रुप से पानी का जलस्तर बढ़ने में मदद मिलती है. वर्तमान में जलदाय विभाग नकारा एवं ड्राई हैंडपम्प एवं बोरवेल को रिर्चाज करने की योजना को मुर्तरुप देने में लगे हुए हैं. यदि योजना को सही तरीके से संचालित किया गया तो जलस्तर में काफी इजाफा हो जाता है.
जल संरक्षण का कार्य है जारी
वहीं, केंद्र सरकार जलशक्ति अभियान के माध्यम से जिले में जल संरक्षण का कार्य कर रही है. इसका सकारात्मक असर आने वाले एक दो साल में देखने को मिल सकता है.