किशन करेरी में पाई जाती है विभिन्न प्रजातियों के सांप, जानें जहरीले इंडियन कोबरा का राज
Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ जिले का किशन करेरी गांव मेवाड में एक अलग ही पहचान रखता है. इस गांव पर प्रकृती का अच्छा आशीर्वाद रहा है...
Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ जिले का किशन करेरी गांव मेवाड में एक अलग ही पहचान रखता है. इस गांव पर प्रकृती का अच्छा आशीर्वाद रहा है. यह गांव जैव विविधता की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है. यहा सैकड़ों प्रजातितीयो के पक्षी, पेड़-पौधे, वन्य जीव, किट पतंग, सरीसृप और जलिय जीव आसानी से देखे जा सकते हैं.
क्षेत्र मे 'नेचर कंजर्वेशन' पर कार्यरत ग्रीन अर्थ नेचुरल सोसायटी किशन करेरी के अनुसार किशन करेरी गांव मे 20 से अधिक प्रजातियों के सांप देखे गए हैं. इन सांपों में कुछ प्रजातियां जहरिली हैं और अधिक सांपों की प्रजातियां बिना जहर की है. जहरीले सांपों में भारत का सबसे अधिक जहरिला साप कॉमन करैत सहित इंडियन कोबरा और रैसेल वाईपर सम्मिलित है.
भारत में सांपों की करीब 275 प्रजातियों का निवास है, जो धरती पर किसी अन्य देश की तुलना में अधिक है, सांप खाध्य शृंखला का प्रमुख अंग है. सांप मेढ़क, छिपकली, पक्षी, चूहे और दूसरे सांपों को भी खाता है. यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है. सरीसृप वर्ग के अन्य सभी सदस्यों की तरह ही सर्प शीतरक्त का प्राणी है और यह अपने शरीर का तापमान स्वंय नियंत्रित नहीं कर सकता है. इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है.
सांपों की औसत आयु 10 से 25 साल के बीच होती है, लेकिन यह अलग-अलग प्रजातियों पर निर्भर करता है. छोटे सांप प्राय दस पंद्रह साल जीते हैं, जबकि अजगर आसानी से 25 से लेकर 40 साल तक जी सकता, सांप का बच्चा अंडे से जहर के साथ बाहर आता है. उसके विष की ग्रंथी में जहर भरा होता है और दांत डसने के लिए तैयार होते हैं. इसका कारण है कि अंडे से बाहर आते ही सांप के बच्चे को अपने दम पर ही शिकार करना और अपनी रक्षा करनी होती है. दूसरे जानवरों की तरह उसे माता-पिता की सुरक्षा नहीं मिलती. सांपों का पर्यावरण संतुलन कायम करने में एक अहम योगदान है ही और साथ ही इनसे जुडे वैज्ञानिक और धार्मिक महत्वों के कारण भी इनका संरक्षण किया जाना चाहिए. इसके साथ ही एक कृषि प्रधान समाज में सांपों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है, ये फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों की संख्या को नियन्त्रित रखते हैं.
सांप अक्सर शिकार हेतू आबादी क्षेत्रो व घरो मे घुस जाते है इन्हें शिकार की तलाश में पेड़ों पर या कच्चे घरों मे ऊंचाई पर भी देखा गया है, लोग अपने पास सांपों को देखकर घबरा जाते हैं और इन्हें अपना शत्रु समझ कर मारने की चेष्टा करते हैं. ऐसी स्थिति मे स्थानिय सोसाइटी के सदस्यों द्वारा रेस्क्यू अभियान चलाकर इन्हे सुरक्षित जंगल मे छोड़ दिया जाता है. इस दौरान सर्प पहचान वार्ता कर लोगों को जागरुक किया जाता है. पिछले 3 वर्षों से लगातार सांपों को बचाने का कार्य संघठन द्वारा किया जा रहा है, जिसमें लगभग 300 से अधिक सांपों को बचाया गया है, जिनमें अजगर और गोह भी शामिल है. इस कार्य मे संघठन के स्वयंसेवक भेरू लाल पुरोहित श्याम लाल गुर्जर मदन दास वैष्णव शौकीन गुर्जर हिम्मत पुरोहित मोहन सिंह शक्तावत सहित स्नेक रेस्क्यू टीम के सदस्य पृथ्वीराज गुर्जर केरपुरा सहयोग कर रहे हैं. सांप की यह प्रजातिया पाई गई-कॉमन करैत, इंडियन कोबरा, रसैल वाईपर, केट स्नेक, ट्रिकेट स्नेक, इंडियन रेट स्नेक,कॉमन सेंडबोआ, रेड सैंड बोआ, कॉमन बैंडेड कुकरी स्नेक, ग्रीन कीलबेक, चेकर्ड़ किलबैक, स्ट्रिपेड कीलबैक, वॉर्म स्नेक, बैंडेड रेसर, वोल्फ स्नेक सहित प्रजातियो के सांप देखे गए.
जब कोई सांप किसी को काट देता है तो इसे सर्पदंश या 'सांप का काटना' (snakebite) कहते हैं. सांप के काटने से घाव हो सकता है और कभी-कभी विषाक्तता (envenomation) फैलने से मृत्यु तक हो जती है. अब यह ज्ञात है कि अधिकांश सर्प विषहीन होते हैं पर हर क्षेत्र मे जहरीले सांप पाए जाते हैं. सांप प्राय: अपने शिकार को मारने के लिये काटते हैं पर इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिये भी करते हैं. सांपों के दांतों मे विष नही होता, लेकिन इन छेदक दांतों के उपर एक विषग्रंथि होती है, जिससे विष निकलकर आक्रांत स्थान पर पहुचता है. दंश स्थान पर तीव्र जलन, तंद्रालुता, अवसाद, मिचली, वमन, अनैच्छिक मल-मूत्र-त्याग, अंगघात, पलकों का गिरना, किसी वस्तु का एक स्थान पर दो दिखलाई देना और पुतलियों का विस्फारित होना प्रधान लक्षण हैं. अंतिम अवस्था में चेतनाहीनता और मांसपेशियों में ऐंठन शुरु हो जाती है और श्वसन क्रिया रुक जाने से मृत्यु हो जाती है. विष का प्रभाव तंत्रिकातंत्र और श्वासकेंद्र पर विशेष रूप से पड़ता है. (ड्राई बाइट) आंशिक दंश या दंश के पश्चात् तुरंत उपचार होने से व्यक्ति मृत्यु से बच सकता है.
सर्पदंश का प्राथमिक उपचार शीघ्र से शीध्र करना चाहिए. कीसी जहरीले सांप के काटे जाने पर संयम रखना चाहिये ताकि ह्रदय गति तेज न हो सांप के काटे जाने पर जहर सीधे खून में पहुंच कर रक्त कणिकाओं को नष्ट करना प्रारम्भ कर देते है, ह्रदय गति तेज हाेने पर जहर तुरन्त ही रक्त के माध्यम से ह्रदय में पहुंच कर उसे नुक़सान पहुंचा सकता है. काटे जाने के बाद तुरन्त बाद काटे गए स्थान को पानी से धोते रहना चाहिए. यदि घाव में सांप के दांत रह गए हों, तो उन्हें चिमटी से पकड़कर निकाल लेना चाहिए. प्रथम उपचार के बाद व्यक्ति को शीघ्र निकटतम अस्पताल या चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए. वहां प्रतिदंश विष (antivenom) की सूई देनी चाहिए. दंशस्थान को पूरा विश्राम देना चाहिए.
किसी दशा में भी गरम सेंक नहीं करना चाहिए. बर्फ का उपयोग कर सकते हैं. ठंडे पदार्थों का सेवन किया जा सकता है. घबराहट दूर करने के लिए रोगी को अवसादक औषधियां दी जा सकती हैं. श्वासावरोध में कृत्रिम श्वसन का सहारा लिया जा सकता है. अतः सांप के काटे जाने पर बिना घबराये तुरन्त ही नजदीकी प्रतिविष केंद्र में जाना चाहिए. रोचक जानकारी: सांप के कान नहीं होते हैं, वह सुनता नहीं है। केवल ध्वनि तरंगें महसूस करता है. इसलिए बीन की आवाज भी नहीं सुनता है, बीन को हिलाने पर ही वह अपने फन को इधर-उधर घुमाता है, बीन की धुन पर नहीं. क्या सांप दुध पिता है-यह एक भ्रांति है. विज्ञान के अनुसार सांप एक मांसाहारी जीव है जो दूध नहीं पीता है.
रसैल वायपर प्रजाति के सांप अंडे नहीं देते, बल्कि ये सीधे ही बच्चों को जन्म देते हैं
सांप को मारने या काटने के बाद भी उसका फन जीवित रहता है. कैरोलिना यूनिवर्सिटी के सर्प विशेषज्ञ सेन पुश के अनुसार, सांप का फन कट जाने के बाद भी करीब 90 मिनट तक जीवित रहता है. यानी वो इस दौरान तक किसी को डंस सकता है. सर्पदंश के तुरंत पश्चात प्राथमिक उपचार कर नजदीकी प्रति विषकेंद्र मे पहुचकर चिकित्सक परामर्श से antivenom का टिका लगवाकर उपचार करवाना चाहिए. सांप खाध्य शृंखला का प्रमुख हिस्सा है, इसलिए हमारे जीवन मे भी सांपों बहुत महत्व इसलिए सांपों का संरक्षण करना चाहिए.
सांपों के आबादि या घरों में घुसने जैसे आपात स्थिति में नजदीकी वन विभाग कार्यालय, स्नके रेस्क्यू टीम या हमारे संगठन से संपर्क किया जा सकता है. प्रस्तावित योजना के अनुसार आगामी दिनो मे क्षेत्र मे सांपों को बचाने के उधेश्य से ग्रीन अर्थ नेचुरल सोसायटी किशन करेरी द्वारा जागरुकता अभियान चलाकर 'सांपों की पहचान और संरक्षणट कार्यशाला आयोजित की जाएगी.
Reporter: Deepak Vyas
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