शिवरात्रि के अवसर पर मातृकुंडिया तीर्थ जानें का क्या है लाभ, जानें मेवाड़ के हरिद्वार का रहस्य
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शिवरात्रि के अवसर पर मातृकुंडिया तीर्थ जानें का क्या है लाभ, जानें मेवाड़ के हरिद्वार का रहस्य

मेवाड़ क्षेत्र यह स्थान एक और जहां धार्मिक मान्यताओं से परिपूर्ण है और वहीं दूसरी ओर अपार संभावनाएं पर्यटन क्षेत्र की भी इसमें दिखाई देती है.

शिवरात्रि के अवसर पर मातृकुंडिया तीर्थ जानें का लाभ

Kapasan: महाशिवरात्रि (Mahashivratri Breaking News) भगवान शिव की आराधना और मनोवांछित फल प्राप्त करने का एक पवित्र त्योहार है. ऐसे में विभिन्न शिवालयों में आराधना और अनुष्ठान का अपना विशेष महत्व है लेकिन चित्तौड़गढ़ के राशमी में स्थित मेवाड़ के हरिद्वार कहे जाने वाले मातृकुंडिया तीर्थ का अपना विशेष महत्व है जहां मंगलेश्वर महादेव के रूप में विराजित भगवान शिव को पूजा जाता है और यहां के लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए यहां आते हैं. आपको बता दें कि मेवाड़ का हरिद्वार और महादेव का धाम मातृकुंडिया तीर्थ जो कि शिव का एक अवतार है और भगवान परशुराम को उनकी मां के वध के पाप से मुक्त करने के लिए जाना जाता है.

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चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत समिति की ग्राम पंचायत हरनाथपुरा में मंगलेश्वर महादेव के शिवलिंग के रूप में स्थापित बनास नदी के संगम स्थल को धार्मिक रूप में मातृकुंडिया के नाम से जाना जाता है. यहां के बारे में यह मान्यता है कि ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र भगवान परशुराम ने जब अपने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का सर काट दिया तो मां की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने धरती के तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया लेकिन उन्हें इस पाप से मुक्ति नहीं मिल पाई. 

जब उन्होंने मातृकुंडिया में आकर स्नान किया तो उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली तब से लोगों में मान्यता है कि इस कुंड को मात्र कुंडिया के नाम से जाना जाता है. यहां विराजित भगवान महादेव स्वरूप को मंगलेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है. शिवलिंग को प्रतिदिन सुबह गायन के साथ-साथ शाम को भी जलाया जाता है.

क्षेत्र में मान्यता है कि यहां मेवाड़ के आसपास के जो भी लोग चार धाम तीर्थ यात्रा पर जाते हैं और किसी भी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं उनकी यात्रा को पूर्ण तब माना जाता है जब मातृकुंडिया पहुंचकर कुंड में स्नान कर मंगलेश्वर महादेव के दर्शन कर लेते हैं. इसी के साथ अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां लोग और खासतौर से चित्तौड़गढ़ आसपास के क्षेत्रों से अपने पितरों का तर्पण करने के लिए हरिद्वार से पहले यहां आते हैं. पित्र तर्पण के लिए यहां सीढ़ियां बनी हुई है जहां लोग अपने पितरों का तर्पण कर महादेव की आराधना कर मुक्ति की प्रार्थना करते हैं.

एक ओर जहां धार्मिक मान्यताओं से इस क्षेत्र को विशेष महत्व मिलता है वहीं बनास नदी के क्षेत्र में संगम पर स्थित होने के कारण यह पर्यटन की संभावनाओं से बड़ा क्षेत्र है यहां पर्यटन के लिए अपार संभावना है कोरोना काल से पूर्व यहां मातृकुंडिया का मेला आयोजित होता था. इसे देवस्थान विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में आसपास के क्षेत्रों सहित अन्य जिलों से भी लोग आते हैं. हालांकि यहां अलग-अलग समाज की धर्मशाला में बनी हुई है लेकिन लोगों का मानना है कि यह पर्यटन विभाग और राज्य सरकार सुविधाओं की दृष्टि से प्रयास करें तो यह अच्छा बन सकता है.

मेवाड़ क्षेत्र यह स्थान एक और जहां धार्मिक मान्यताओं से परिपूर्ण है. वहीं दूसरी ओर अपार संभावनाएं पर्यटन क्षेत्र की भी इसमें दिखाई देती है. यहां परशुराम पैनोरमा बनाया गया है इसी के साथ लोगों के ठहराव की विशेष व्यवस्था होने पर पर्यटकों की संख्या बढ़ने से स्थानीय लोगों के रोजगार में वृद्धि होगी. वहीं धार्मिक मान्यताओं के लिए आने वाले लोगों को विशेषता अनुभव होगी.

Reporter: Deepak Vyas

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