Chittorgarh: मोबाइल-इंटरनेट के जमाने में खो गई कठपुतली कला, कलाकार एक रोटी मजबूर
Advertisement

Chittorgarh: मोबाइल-इंटरनेट के जमाने में खो गई कठपुतली कला, कलाकार एक रोटी मजबूर

ऐसी ही एक अति प्राचीन लोक कला कठपुतली है, जिसने कई पीढ़ियों का मनोरंजन किया है, लेकिन यह कला भी अब सरंक्षण और आमजन की बेरुखी के चलते लुप्त होती जा रही है. 

 प्राचीन लोक कलाएं

Chittorgarh: देश में कई प्राचीन लोक कलाएं विलुप्त हो चुकी हैं और विलुप्त होने की कगार पर हैं, टीवी, मोबाइल, इंटरनेट के इस युग में आमजन विशेषकर युवाओं और बच्चों में इन लोक कलाओं के प्रति रुचि नहीं होना, सदियों से मनोरंजन का मुख्य साधन बनी इन लोक कलाओं के अस्तीत्व पर भारी पड़ रहा है. देश में हजारों वर्षों से लोगों का मनोरंजन करने वाली तुर्रा कलंगी, गवरी, गवई नृत्य जैसी कई लोक कलाएं आज अपने अस्तीत्व के लिए संघर्ष कर रही है.

यह भी पढ़ें- जिस अभियुक्त के नाम का मृत्यु प्रमाण पत्र, वहीं न्यायालय में पेश होकर जमानत मुचलका लगा रहा

ऐसी ही एक अति प्राचीन लोक कला कठपुतली है, जिसने कई पीढ़ियों का मनोरंजन किया है, लेकिन यह कला भी अब सरंक्षण और आमजन की बेरुखी के चलते लुप्त होती जा रही है. इसके कलाकार अब रोटी रोजी के अभाव में इस कला से दूरी बनाने को मजबूर हैं. देश और राज्य में लुप्त होते कठपुतली कलाकारों की तरह ही चित्तौड़गढ़ जिले में भी एक मात्र कठपुतली कलाकार रामेश्वर लाल गर्ग बचे हैं, जो शहर के निकट नगरी में निवास करते हैं और जो अभी भी कठपुतली कला से जुड़े हुए हैं और कभी-कभी विशेष अवसरों पर अपने खेल का प्रदर्शन करते हैं. 

गर्ग ने बताया कि यह कला सदियों पुरानी है, भगवान शिव की पत्नी पार्वती के पास भी यह कला मौजूद थी, लेकिन उन्होंने इस कला को भगवान शंकर से इसे छुपा कर रखा था. इसी तरह यह कला राजा विक्रमादित्य के समय में भी अपने उत्कृष्ट पर थी, उनके सिंहासन में भी 32 प्रकार की कठपुतलियां थी.

कलाकार रोजाना कठपुतलियों के माध्यम से राजा को एक कहानी सुनाया करते थे. गर्ग ने बताया कि राजस्थान में धागा पुतली कला का उदय हुआ था, यहीं से यह कला विश्व में फैली थी. गर्ग ने बताया कि वह जिस कठपुतली कला का प्रदर्शन करते हैं और वह दक्षिण भारत से सीखी गई है, जो गांव से लेकर शहरों तक प्रदर्शित की जाती थी, लेकिन कलाकारों को इससे पर्याप्त रोजगार नहीं मिलने से यह लुप्त होती जा रही है.

उन्होंने बताया कि आमदनी के अभाव में वह भी इस कला को लगभग छोड़ चुके हैं, उनके बाद इस जिले में कठपुतली कला से जुड़ा कोई कलाकार नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि इस कला को जीवित रखने के लिए यदि कोई इसे सीखना चाहे तो वह सहर्ष इसे सिखाने को तैयार है. इसके साथ ही गर्ग ने सरकार से इस कला को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त उपाय करने का भी आग्रह किया है.

Reporter: Deepak Vyas

Trending news