लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की जीवाश्म वैज्ञानिकों की टीम यहां तीन-चार दिन से पड़ाव डाले हैं. बोजूंदा के पास इस जगह 160 करोड़ साल पहले समुद्र और जीव उत्पति के साक्ष्य सामने आए थे.
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Chittorgarh News: बोजूंदा में हजारों साल पहले का जीवाश्म पार्क की भले ही शासन- प्रशासन, स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों के लिए कोई कीमत न हो, लेकिन इसने एक बार फिर देश के जीवाश्म वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है. वे अब इसकी उत्पत्ति का सटीक आंकलन करने के लिए रि-सर्वे में जुट गए.
1984 में प्रकाश में आने के बाद ये पहला मौका होगा जब ठोस वैज्ञानिक आधार पर इसकी प्राचीनता का निष्कर्ष सामने आएगा. लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की जीवाश्म वैज्ञानिकों की टीम यहां तीन-चार दिन से पड़ाव डाले हैं. बोजूंदा के पास इस जगह 160 करोड़ साल पहले समुद्र और जीव उत्पति के साक्ष्य सामने आए थे. यह 32 राष्ट्रीय जियोलॉजिकल स्मारक यानी स्ट्रेमटोलाइट जीवाश्म पार्क के रूप में दर्ज है.
सबसे पहले 1984 में भू वैज्ञानिक वाल्मीकि प्रसाद के प्रयास से इसकी भू खोज हुई थी. यहां के जीवाश्म वास्तव में कितने करोड़ साल पहले के हैं, अब वैज्ञानिक इसका पूरा ठोस आकलन करना चाह रहे हैं, क्योंकि इसी आकलन से जीव उत्पति के कई रहस्य और नए शोध के रास्ते खुलेंगे. उपकरणों सहित मौजूद रिकार्ड और सेटेलाइट आदि से जानकारी जुटाते हुए सैंपल ले रहे हैं. लेबोरेट्री जांच से कालखंड का सटीक पता चलेगा. जीवाश्म वैज्ञानिक डॉ. वीरूकांत सिंह, डॉ. संतोषकुमार पांडे, डॉ. अरविंद सिंह का कहना है कि यहां विध्यांचल की पहाड़ियां समाप्ति पर हैं, जो चंबल वैली के नाम से जानी जाती हैं. ऐसे में ये जीवाश्म क्या वाकई में 160 करोड़ साल पुराने है या इससे कम या ज्यादा. यह जानना जरूरी है.
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इससे पता चलेगा कि चंबल वैली और सोन वैली में कौन सी सभ्यता ज्यादा पुरानी है. विनोता क्षेत्र के आसपास क्षेत्र में भी जीवाश्म का पता चला है. वैज्ञानिक डॉ. संतोष पांडे बताते है कि वह 15 साल बाद फिर इस पार्क में पहुंचे हैं. हैरानी हो रही है कि अब जीवाश्म ढूंढने में समय लगा. तब अच्छी संख्या में चट्टानें अथवा जीवाश्म दिख रहे थे. अब एकाएक कमी आ गई है. इस क्षेत्र में अवैध खनन सहित अवांछित गतिविधियों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा. जिसमें जीवाश्म बड़ी अच्छी तरह से संरक्षित होते हैं. टीम इनके सैंपल की लेबोरेट्री में जांच करेगी. इनकी संरचना, उस समय के वातावरण, आयु का आकलन हो सकेगा. अब संरक्षित करने की जरुरत है. साकं वे, आस्ट्रेलिया, येलो स्टोन नेशनल पार्क यूएसए और अटाटिका में आज स्ट्रोमेटोलाइट पार्क बन रहे हैं. भारत में इस तरह की प्राचीन जीवाश्म मिलना अहम है.
Reporter-Deepak Vyas