Dausa News: राजस्थान के दौसा से दर्दनाक कहानी सामने आई है, जहां एक परिवार की चार बहनें अपने माता-पिता की मौत के बाद बेसहारा हो गई हैं. उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, और वे दर-दर भटककर अपना पेट भरने की कोशिश करती हैं. कभी-कभी उन्हें खाना मिलता है, लेकिन अधिकांश समय वे भूखी रहती हैं.

 

इस परिवार की स्थिति और भी दयनीय है क्योंकि उनकी पुस्तैनी जमीन पर दबंगों का कब्जा है. उनके माता-पिता की मौत टीबी की बीमारी से हुई थी. अब उनके बुजुर्ग नाना-नानी मेहनत-मजदूरी करके उनका पेट भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन कई बार वे भी असफल रहते हैं. इस परिवार की बड़ी बेटी पायल भी छह माह से टीबी की बीमारी से ग्रसित है, जो उनकी स्थिति को और भी चुनौतीपूर्ण बनाती है. यह परिवार सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं उठा पा रहा है, जो उनकी स्थिति को और भी दयनीय बनाता है.

 

सरकार जनहित के लिए एक से एक बेहतर योजनाएं बना रही हो लेकिन क्या उन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को मिल रहा है यह हम नहीं बल्कि उन चार बिन मां-बाप की मासूम बहनों की हालत बयां कर रही है जो दो जून की रोटी के लिए दर-दर भटक रही है लेकिन किसी भी सरकारी करिंदे ने उनकी सुध नहीं ली जनवरी 2021 में पिता का देहांत हो गया तो वहीं अगस्त 2022 में मां भी दुनिया को अलविदा कह गई ऐसे में चारों बहन बेसहारा हो गई बताया जा रहा है उनकी पुस्तेनी जमीन भी दबंगो के कब्जे में है अब चारों बहनों को बूढ़े नाना नानी मेहनत मजदूरी कर कैसे तैसे रोटी खिला रहे हैं

 

दरअसल बांदीकुई विधानसभा क्षेत्र के ढिगारिया टप्पा कालेश्वर गांव निवासी प्रेमलाल बैरवा की टीबी की बीमारी के चलते 28 जनवरी 2021 को मौत हो गई तो वहीं पत्नी राजंती देवी का भी 9 अगस्त 2022 को निधन हो गया दोनों के चार बेटियां है जो माता-पिता की मौत के बाद अनाथ हो गई उम्मीद थी बेटियों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा लेकिन वह भी नसीब नहीं हुआ बड़ी बेटी पायल नवी कक्षा में पढ़ती है तो वही दूसरी बेटी मंजू कक्षा 6 में पढ़ती है तीसरी बेटी उर्मिला कक्षा 3 और चौथी बेटी दीपिका प्रथम में सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रही है .

 

माता-पिता की मौत के बाद कुछ समय के लिए तो ग्रामीण और पड़ोसियों ने चारों बहनों की मदद की लेकिन वह भी ज्यादा दिन तक नहीं मिली उसके बाद बुजुर्ग नाना नानी अपनी नवासियों का सहारा बने जो कैसे तैसे करके उनका पेट पालन करने में लगे हुए हैं पूर्व में परिवार का अंत्योदय राशन कार्ड बना हुआ था लेकिन सरकारी तंत्र में बैठे जिम्मेदारों ने राशन कार्ड भी बंद कर दिया जिसके चलते हर माह मिलने वाला 35 किलो गेहूं भी बंद हो गया ना ही इन चारों बहनों को पालनहार योजना का लाभ मिल रहा .

 

बड़ी बेटी पायल भी 6 माह से टीबी की बीमारी से ग्रसित है ऐसे में बड़ी बहन को खुद की बीमारी से ज्यादा छोटी बहनों के पालन पोषण की चिंता सता रही है चारों बहनें पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती हैं लेकिन सवाल यह है कि उनका सहरा कौन बने सरकारी तंत्र में बैठे जिम्मेदारों ने अपनी आंखें मूंद रखी है सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा भी देती है लेकिन क्या इस नारे के मुताबिक सरकार ऐसी बेटियों की भी सुध लेगी जिनके आगे पीछे कोई नहीं है ऐसी बेटियां खुले आसमान के नीचे अपना जीवन बमुश्किल गुजर बसर कर रही है लेकिन सरकारी कारिंदों का दिल नहीं पसीज रहा की इन बेटियों को सरकारी योजनाओं का लाभ देकर उनकी मदद की जा सके .

 

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