Jaipur News: राजस्थान के 309 स्थानीय निकायों में 2026 में वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत चुनाव कराने जा रही है. इन चुनावों में सरकार प्रत्याशियों की शिक्षा, संतान आदि पर कुछ बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है.
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Jaipur News: राजस्थान के 309 स्थानीय निकायों में 2026 में वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत चुनाव कराने जा रही है. इन चुनावों में सरकार प्रत्याशियों की शिक्षा, संतान आदि पर कुछ बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है. जानकारी के अनुसार, स्थानीय निकाय विभाग मेयर-सभापति की शैक्षणिक योग्यता 12वीं या ग्रेज्युएट तथा पार्षदों की 10वीं करने की तैयारी कर रहा है.
हालांकि इसे प्रारंभिक रूप से विचारणीय विषय बताया जा रहा है. स्वायत्त शासन विभाग इसके लिए रायशुमारी कर रहा है. कहा जा रहा है कि विधायक, मंत्रियों से रायशुमारी के बाद अंतिम फैसला मुख्यमंत्री का होगा. जानकार सूत्रों के अनुसार वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने राजस्थान पालिका विधयेक 2019 पारित कर पार्षद पद पर चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता की बाधा समाप्त की थी.
इसके चलते निरक्षर और सिर्फ साक्षर ज्ञान लोग भी चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर रहे हैं. इनमें कुछ तो जीत कर निगमों में भी पहुंच रहे हैं. वर्ष 2020 निगम चुनाव में जयपुर के दोनों निगमों 3 निरक्षर लोग भी चुनाव लड़े, जबकि 126 केवल साक्षर थे. यदि मुख्यमंत्री विभाग के इस प्रस्ताव पर सहमति देते हैं, तो पार्षद, मेयर-सभापति अब निरक्षर या साक्षर नहीं बल्कि इंटरमीडियट या ग्रेज्युट ही बन पाएंगे.
प्रदेश में 10245 पार्षद पद के लिए लगभग 2 लाख चालीस हजार लोग चुनाव लड़ते हैं. इनमें कई निरक्षर होते हैं, जिनको निकाय की बोर्ड या अन्य प्रक्रियागत फाइलों की जानकारी भी दूसरों से लेनी पड़ती है या फिर अफसरों, कर्मचारियों के भरोसे रहना पड़ता है. इधर मेयर सभापति का सीधे चुनाव कराने पर भी कसरत की जा रही है.
नेताओं का मानना है कि सीधे चुनाव में मेयर या सभापति दूसरी पार्टी और निकाय का बोर्ड अलग-अलग पार्टी के चुने गए तो शहर का विकास ठप होने की संभावना रहती है. इस मसले का हल ढूंढा जा रहा है कि टकराव भी नहीं हो विकास भी बाधित नहीं हो. इसके साथ ही तीन संतान वाले भी चुनाव लड़ सकेंगे. इसको लेकर नियम बदला जा सकता है.
वहीं पंचायतों में शैक्षणिक योग्यता पर निर्णय नहीं हो रहा है. अभी प्रदेश की 11 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में सरपंच व अन्य पदों पर चुनाव की शैक्षणिक योग्यता नहीं है. इधर सरकार के इन प्रस्तावित फैसलों को लेकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ का कहना है कि मेयर सभापति को कई निर्णय करने पड़ते हैं. हम उसके लिए विचार कर रहे हैं, अभी चर्चा का विषय है.
मैं ऐसे नहीं कह रहा हूं कि कोई पढ़ा-लिखा नहीं है, तो विद्वान नहीं है, होशियार नहीं है, लेकिन विचार चल रहा है कि कोई शिक्षा का आधार रहेगा, तो पढ़ लिखकर सोच समझ करके हस्ताक्षर करेंगे. वरना अधिकारी कर्मचारी फाइल पर नहीं चाहते हो तो भी हस्ताक्षर करवा सकते हैं.
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के शहर अध्यक्ष आरआर तिवाड़ी ने कहा कि सरकार और यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा नया तुर्रा छोड़ रहे हैं. पार्षदों के लिए योग्यता मिनिमम 10वीं की होना चाहिए. जन प्रतिनिधि हैं कोई नौकरी करा रहे हो क्या.
गहलोत सरकार ने जनता की भागीदारी के लिए शिक्षा का प्रावधान हटाया था, उनका मानना है कि आम आदमी बुद्धि से चलते हैं, डिग्री से थोड़ी चलता है. लोकतंत्र में शिक्षा की बातें करते हैं, तो लोकसभा विधानसभा में भी इस तरह का प्रावधान किया जाना चाहिए. हम इसे सही मानते हैं या विरोध करते हैं. ऐसा नहीं है, हम इसे जनता के बीच में छोड़ देते हैं कि वह क्या सोचती है.
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