मिशन 2024 के लिए Congress आलाकमान ने बनाई ये रणनीति
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मिशन 2024 के लिए Congress आलाकमान ने बनाई ये रणनीति

2014 के बाद अक्सर कांग्रेस अनिर्णय की स्थिति में, दिशाहीन, नेतृत्वहीन और हताश नजर आती थी. लेकिन पिछले एक महीने में कांग्रेस आलाकमान जिस तरीके से पंजाब से लेकर मणिपुर, असम, उत्तराखंड, तेलंगाना और राजस्थान के मामलों में सक्रिय हुआ है.

फाइल फोटो

Jaipur : 2014 के बाद अक्सर कांग्रेस अनिर्णय की स्थिति में, दिशाहीन, नेतृत्वहीन और हताश नजर आती थी. लेकिन पिछले एक महीने में कांग्रेस आलाकमान जिस तरीके से पंजाब से लेकर मणिपुर, असम, उत्तराखंड, तेलंगाना और राजस्थान के मामलों में सक्रिय हुआ है. ऐसा लगता है कि पहली बार कांग्रेस तीन साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में अभी से जुट गई है. पहली बार ऐसा लग रहा है कि कोई नेतृत्व है. जो फैसले ले रहा है. जो स्टेट लीडरशिप को अपने होने का अहसास दिला रहा है. पहली बार कांग्रेस एक दिशा में जाती हुई नजर आ रही है. फाइटिंग मोड में नजर आ रही है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस ने 2024 के मिशन की अभी से तैयारी शुरू कर दी है.

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राजस्थान से तय होगी दिशा
कांग्रेस आलाकमान (Congress high command) कितना मजबूत है. इसके लिए सियासी दिग्गजों की नजरें पंजाब के बाद अब राजस्थान पर हैं. क्योंकि बाकी राज्यों में कांग्रेस की स्टेट लीडरशिप उतनी मजबूत नहीं है. जितनी पंजाब और राजस्थान में है. पंजाब और राजस्थान इसलिए भी अलग है क्योंकि बाकी जिन राज्यों में आलाकमान फैसले ले रहा है. वहां कांग्रेस सत्ता में नहीं है. ऐसे में बदलावों का असर सिर्फ संगठन के स्तर पर पड़ना है, लेकिन राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस की सरकारें है. कैप्टन अमरिंदर सिंह और अशोक गहलोत जैसे दिग्गज नेता मुख्यमंत्री है. जो सूबे की सरकारों को अपने हिसाब से चलाते रहे है. जिन्हें सियासी दांव पेच का सामना करना भी आता है. और दांव चलने भी आते हैं. लेकिन जिस तरह से पंजाब में कांग्रेस आलाकमान ने अपने फैसले को लागू किया है. उससे आलाकमान ने ये संदेश दिया है कि प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे वो झुकेगा नहीं

इस तरह की सख्ती कांग्रेस आलाकमान (Congress) के लिए जरूरी भी है क्योंकि कांग्रेस का मुकाबला एक ऐसी बीजेपी जैसी पार्टी से है जिसने अभी से 2022 में होने वाले 5 राज्यों के चुनाव से लेकर 2023 के सेमीफाइनल और 2024 के चुनावों में लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी. कौन किन इलाकों में दौरे करेगा. किस तरह से संगठन को मजबूत किया जाएगा. कौन से महत्वपूर्ण फैसले उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात और राजस्थान जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में लिए जाएंगे. जिससे 2024 का ग्राउंड तैयार किया जाएगा. ऐसी बीजेपी से मुकाबला करने के लिए जरूरी है. कि कांग्रेस भी अभी से तैयारी शुरू करे. राज्यों में ऐसे लोगों को नेतृत्व दिया जाए. जो 24*7 की पॉलिटिक्स कर सके. जो सड़क पर संघर्ष कर सके. जिसकी पब्लिक में पैठ हो.

प्रदेश नेतृत्व से सख्ती और कार्यकारी अध्यक्ष का फॉर्मूला
पंजाब (Punjab) में अमरिंदर सिंह की लाख नाराजगी के बावजूद, यहां तक कि आखिरी वक्त में सांसद और विधायक अमरिंदर सिंह के पक्ष में लामबंद भी हुए. लेकिन आलाकमान अपने फैसले पर अड़ा रहा और जैसे ही सिद्धू के पीसीसी चीफ बनने की घोषणा हुई. सारे विधायक सिद्धू के साथ हो लिए. जिस दिन पंजाब में ताजपोशी हुई. उसी दिन उत्तराखंड में भी आलाकमान ने बड़े फैसले लिए. गणेश गोदियाल को उत्तराखंड का पीसीसी अध्यक्ष बनाया. कांग्रेस एक बड़ा प्रयोग भी कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों के साथ कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त कर रही है. पंजाब में सिद्धू को अध्यक्ष बनाया तो कैप्टन गुट के चार लोगों संगत सिंह गिलजियन, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत सिंह नागरा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया. यही फॉर्मूला उत्तराखंड में लागू किया. गणेश गोदियाल को अध्यक्ष बनाया तो जीत राम, भुवन कापड़ी, तिलक राज बेहड और रंजीत रावत को उत्तराखंड का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया. तेलंगाना में रेवंत रेड्डी को अध्यक्ष बनाया. रेवंत रेड्डी की टीम में पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन, वरिष्ठ नेता जी गीता रेड्डी, एम अंजन कुमार यादव, टी. जगा रेड्डी और महेश कुमार गौड़ को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी. महाराष्ट्र में नाना पटोले को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी. और नाना पटोले के साथ 6 कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए.  शिवाजी मोघे (यवतमाल), बस्वराज पाटिल (उस्मानाबाद), नसीम खान (मुंबई), कुणाल पाटील (धुले ), चंद्रकांत हंडोरे (मुंबई ), प्रणिती शिंदे (सोलापुर) को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया

मोदी विरोधी आक्रामक युवा नेताओं को तवज्जो
गांधी परिवार (Gandhi Family) इन दिनों बड़े स्तर पर उन नेताओं पर भी भरोसा जता रहा है. जो किसी दौर में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए. और विशेष तौर से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी के खिलाफ आक्रामक रहते हैं. पंजाब में सिद्धू को पार्टी की कमान दी. एबीवीपी की पृष्ठभूमि से आए तेज तर्रार वक्ता रेवंत रेड्डी को तेलगांना कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. और उनके साथ भी पांच कार्यकारी अध्यक्ष बनाए. ताकि सभी गुटों को मनाया भी जाए. और जातीय संतुलन भी बिठाया जाए. तेलंगाना में रेवंत रेड्डी की टीम में पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन, वरिष्ठ नेता जी गीता रेड्डी, एम अंजन कुमार यादव, टी. जगा रेड्डी और महेश कुमार गौड़ को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी. 

इधर महाराष्ट्र में नाना पटोले को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाया. नाना पटोले 2014 में एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल को हराकर बीजेपी के टिकट पर सांसद बने थे, लेकिन 2018 में सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ी थी. प्रधानमंत्री पर सीधे अटैकिव होने की वजह से ही राहुल गांधी की फेवरेट लिस्ट में आए. और राहुल गांधी को शायद ऐसा लगा कि इस वक्त जरूरत ऐसे नेताओं की है. जो अग्रेसिव होकर लड़ाई लड़ सके. इस पैमाने पर अगर बीजेपी से आया कोई नेता भी खरा उतरता है. तो उसे जिम्मेदारी दी जाए. इसी वजह से नाना पटोले को जिम्मेदारी दी. यानि कुल मिलाकर कांग्रेस अब बड़े फैसले लेने लगी है. और  आलाकमान को जो ठीक लगता है. उस फैसले को वो लागू करता है. और फैसले भी किसी एक राज्य या क्षेत्र में नहीं, पूरे देश में लिए जा रहे है. मणिपुर कांग्रेस में थोड़ा माहौल खराब हुआ. तो सोनिया गांधी ने एक सप्ताह के भीतर नए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लोकेन सिंह को दी. असम में भूपेन बोरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. और उनके  साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए. वहां तो चुनाव भी अभी-अभी हुए हैं.

अब राजस्थान में दिखेगी आलाकमान की असली ताकत
आलाकमान की अब नजरें पूरी तरह से राजस्थान पर है और आलाकमान पूरी तरह से इस मूड में है. कि 2023 और 2024 की लड़ाई के लिए कौनसा नेता कितना मजबूत है. बीजेपी के खिलाफ कौन कितनी मजबूती से लड़ाई लड़ सकता है. इसी आधार पर फैसले लिए जाएंगे. इसी आधार पर प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां दी जाएगी. एक सवाल ये भी है कि अगर तेलंगाना में रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में नाना पटोले और पंजाब में सिद्धू जैसे नेता जो कुछ वक्त पहले ही कांग्रेस में आए. उनको कमान दी जा सकती है. तो पायलट के एक बार बागी तेवर दिखाना अब भी मुद्दा है या अलाकमान उसे भुलाकर आगे बढ़ चुका है. 

ज्यादा संभावना इस बात की है कि राजस्थान में आलाकमान फैसला केवल इस रणनीति को ध्यान में रखते हुए लेगा. कि 2024 की लड़ाई कौन कितना मजबूती से लड़ सकता है. सभी गुटों को कैसे खुश रखा जाए. आलाकमान ऐसी कोशिश करेगा कि 2024 में कांग्रेस के सभी धड़े मिलकर लड़ाई लड़ें. इसीलिए प्रदेश प्रभारी अजय माकन इस बार एक एक विधायक से पर्सनल मुलाकात कर रहे है. उनकी राय ले रहे है. ग्राउंड लेवल का फीडबैक लेकर मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियां और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी. ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश आए. जब पार्टी कार्यकर्ता मजबूत होगा. तभी पार्टी मजबूती से लड़ाई लड़ पाएगी. लिहाजा नजर सबकी राजस्थान में होने वाले फैसले पर है. कांग्रेस के लिए पंजाब से भी बड़ा संदेश राजस्थान से जाएगा कि आलाकमान अब एक्शन मोड में है.

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