सरकार की सुस्ती से सुलग रहे जंगल, सैकड़ों हेक्टेयर जंगल हो रहे खाक फिर भी ठोस इंतजाम नहीं
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सरकार की सुस्ती से सुलग रहे जंगल, सैकड़ों हेक्टेयर जंगल हो रहे खाक फिर भी ठोस इंतजाम नहीं

हर वर्ष गर्मियों के सीजन के शुरुआत में ही उदयपुर, माउंट आबू, सिरोही सहीत कई इलाकों के वन क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो जाती हैं. यह सिलसिला शुरू हो गया है.

सरकार की सुस्ती से सुलग रहे जंगल, सैकड़ों हेक्टेयर जंगल हो रहे खाक फिर भी ठोस इंतजाम नहीं

Jaipur: सरकार की सुस्ती वन एवं वन्यजीव दोनों के लिए खतरा साबित हो रही है. प्रदेश के जंगल हर वर्ष सुलग रहे हैं. यहां 3 हजार से ज्यादा घटनाएं हो रही हैं. अधूरे संसाधन और इंतजामों के चलते समय रहते काबू नहीं पाया जा रहा है. जिससे सैकड़ों हेक्टेयर जंगल के नष्ट होने के साथ ही वन्यजीवों पर खतरा बना हुआ है.

गर्मियां शुरू होते ही प्रदेश के जंगल में आगजनी की घटनाएं

हर वर्ष गर्मियों के सीजन के शुरुआत में ही उदयपुर, माउंट आबू, सिरोही सहीत कई इलाकों के वन क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो जाती हैं. यह सिलसिला शुरू हो गया है. गत दिनों सरिस्का के जंगल में आगजनी की घटना हुई. जिसे बुझाने में वन विभाग के अफसरों के पसीने छूट गए. उसके बाद उदयपुर में सज्जनगढ़ की पहाड़ियां सुलग उठी हैं. यहां भी आग इतनी भयाभय हो गई कि उस पर भी काबू पाने के लिए यहां भी हेलीकॉप्टर का सहारा लिया जा रहा है.

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माउंट आबू में इस वर्ष अब तक 13 छोटी-मोटी घटनाएं हो चुकी हैं. आश्चर्य है कि प्रदेश के जंगलों में सालाना 3 हजार से ज्यादा आगजनी की घटनाएं हो रही हैं. सेटेलाइट से आग लगने की सूचना मिलते ही आज भी वन विभाग इसे बुझाने के लिए हरे पत्तों की टहनियां और बांस की झाड़ू का इस्तेमाल कर रहा है. अभी तक इसको लेकर सरकार और वन विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए.

आखिर क्यों जंगल क्यों नहीं सुरक्षित

ऐसा क्या कारण है कि जंगलों में लगी आग पर काबू पाने में पसीने छूट रहे हैं? आखिर सरकार इस मामले में गंभीरता क्यों नहीं दिखा रही है? जंगल में सालाना सैकड़ों हेक्टेयर में फैली वनस्पतियां भी नष्ट हो रही हैं. इन्हें बचाने के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं?पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को भी भारी नुकसान हो रहा है.

तीन गुना तक बढ़ी आगजनी की घटनाएं

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कई राज्यों में आगजनी की घटनाएं तीन गुना तक बढ़ी हैं. हालांकि राजस्थान में हल्की राहत है. नवंबर 2020 से जून 2021 के बीच 3402 घटनाएं सामने आई है जबकि इससे गत वर्ष 3461 घटनाएं हुई थी.

गत वर्षों यहां हुईं आगजनी की सर्वाधिक घटनाएं

जिला आग वनक्षेत्र (हेक्टेयर)

उदयपुर 433 2753

प्रतापगढ़ 3394 1033

डूंगरपुर 737 304

बारां 691 1010

(वन अधिकारियों के अनुसार आंकड़े वर्ष 2018 से मार्च 2022 तक)

यह हुई बड़ी घटनाएं 

माउंट आबू में वर्ष 2017 में यहां जंगल में भयानक आग लगी. यह जंगल से स्थानीय लोगों के घरों तक पहुंची थी. इससे सैंकड़ों हेक्टेयर में जंगल नष्ट हो गया था.

गत महीने सरिस्का के जंगल में आग लगी. जिससे लगभग 700 हेक्टेयर का जंगल तबाह हो गया था. इस पर 90 घंटे बाद काबू पाया जा सका.

फंड-संसाधन पूरे मिले, प्रशिक्षिण भी जरूरी

विशेषज्ञ पूर्व वन अधिकारी सतीश शर्मा का कहना है कि जंगल में आग लगना एक सतत प्रकिया हैं लेकिन इस पर समय रहते काबू पाना जरूरी है. इसके लिए पूरा खाका तैयार किया जाना चाहिए. सबसे पहले फायर लाइन दुरुस्त की जाए. पुराने परम्परागत तरीकों के भरोसे ही नहीं रहें. वर्तमान स्थितियों को देखते हुए संसाधन जुटाए उपलब्ध कराए जाएं. कर्मचारियों को प्रशिक्षण दें. इन प्रभावित जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को जागरूक करें. उन्हें भी साथ जोड़े, प्रोत्साहित करें. उन्हें समझाएं कि जंगल खत्म होने से उनकी आजीविका छिन जाएगी. इससे आग की घटनाएं रुकेंगी.

एक वन अधिकारी ने बताया कि फायर फाइटिंग सिस्टम उपलब्ध कराए जाएं. वाटर टैंक माउंटेड व्हीकल दिए जाएं. साथ ही वन क्षेत्रों में फायरलाइन की सीमा बढ़ाई जाए. उनके लिए फंड ज्यादा दें. स्थानीय लोगों को आग बुझाने में मदद करने पर प्रोत्साहित राशि दी जाए. जिससे उनका मनोबल बढ़ेगा.वन और वन,वनस्पतियां और वन्यजीवों को बचाया जा सके.

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