डिफेंस परिवारों के नाम किया अपना जीवन, मुलाकात कर भेंट कर रहा है तिरंगा
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डिफेंस परिवारों के नाम किया अपना जीवन, मुलाकात कर भेंट कर रहा है तिरंगा

राजस्थान के जयपुर का रहने वाला 21 साल का युवा राजसिंह चौहान साइकिल यात्रा कर रहा है. 

राजसिंह चौहान ने किया शहीद परिवारों का सम्मान.

Khetri: राजस्थान के जयपुर का रहने वाला 21 साल का युवा राजसिंह चौहान साइकिल यात्रा कर रहा है. दरअसल राजसिंह का सपना था कि वह डिफेंस में जाकर देश सेवा करें लेकिन वह डिफेंस में शामिल नहीं हो पाया. जिसके बाद राजसिंह ने अपने जीवन का मकसद बना लिया कि वह शहीद परिवारों का सम्मान के लिए ही जिएगा. इसके लिए वह समय-समय पर जहां पर भी शहीद होते हैं. वहां पर साइकिल द्वारा पहुंचता है और उन्हें नमन करता है लेकिन अब राजसिंह चौहान पहली शहीद यात्रा पर निकला है.

जिसके तहत वह सीकर, झुंझुनूं, चूरू और नागौर जिले के शहीद परिवारों से मिल रहा है. इसी क्रम में राजसिंह पहुंचा है झुंझुनूं जिले के खेतड़ी में. जहां पर बाढ़ा की ढाणी में राजसिंह ने 1965 भारत-पाक युद्ध के शहीद अलबादसिंह शेखावत, इसी युद्ध के शहीद फूलसिंह, 1987 ऑपरेशन पवन के शहीद गंगासिंह, इसी ऑपरेशन में शहीद हुए मुंशीसिंह तथा शहीद रामावतारसिंह के परिवारों से मिला और उन्हें तिरंगा भेंट किया. राजसिंह ने बताया कि अब तक वह सीकर और झुंझुनूं के 65 शहीद परिवारों से मिल चुका है. वहीं वह झुंझुनूं और चूरू के बाद नागौर जाएगा और वापिस जयपुर अपने घर लौट जाएगा. इसके बाद आगे का कार्यक्रम बनाएगा.

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हर दिन बनाता है आगे के दिन का कार्यक्रम
राजसिंह चौहान ने बताया कि वह केवल अब यह सोचकर निकलता है कि उसे शेखावाटी के साथ-साथ नागौर जिले के शहीद परिवारों से मिलता है. इसके लिए पहले से कोई रूट चार्ट तैयार नहीं होता. पहले दिन ही अगले दिन का तय होता है. इसके बाद वह आगे बढ़ता जाता है.

धनूरी की मिट्टी को चूमना एक सपना जैसा
राजसिंह ने बताया कि उसके काफी मन में है कि वह झुंझुनूं के धनूरी गांव जाए. क्योंकि वहां पर 18 शहीद है. जो सभी मुस्लिम है. यहां के शहीदों और सैनिक परिवारों में वतन के लिए जो जज्बा है. वो काफी सुना है. इसलिए इस मिट्टी को चूमना उसके लिए एक सपने जैसा है.

बाघा बॉर्डर तक जा चुका है राजसिंह
राजसिंह ने बताया कि वह पिछले दो सालों से साइकिल राइडिंग के जरिए सैनिकों और शहीदों से मिल रहा है. वह 700 किलोमीटर की यात्रा करके बाघा बॉर्डर पर भी जा चुका है. सैनिकों से मिल चुका है. यही नहीं कहीं पर भी कोई शहीद होने की सूचना मिलती है. तो वह जयपुर से साइकिल लेकर निकल पड़ता है. घरड़ाना खुर्द के शहीद कुलदीपसिंह राव की शहादत पर भी वह झुंझुनूं आया था. वह सुबह पांच बजे सर्द रात में साइकिल लेकर जयपुर से निकला और शहीद को नमन करके वापिस रात को साढ़े 12 बजे जयपुर लौट गया.

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पिता मोटर पाट्र्स का काम करते है, मां गृहिणी
राजसिंह चौहान खुद डिफेंस में जाने का जुनून रखते थे लेकिन कामयाब नहीं हुए. फिर उन्होंने अपना जीवन शहीदों के नाम कर दिया और कहते है कि कभी कुछ कर पाया तो शहीदों के लिए ही करूंगा. राजसिंह का परिवार वैसे तो सीकर के खंडेला के गढ़भोपजी गांव का रहने वाला है लेकिन काफी समय से जयपुर रहा है. उनके पिता गिरधारीसिंह वीकेआई 14 जयपुर में मोटर पाट्र्स की दुकान चलाते है. वहीं मां मगन कंवर गृहिणी है. एक बड़ा भाई है जो कंपटीशन की तैयारी कर रहा है.

आज भी अभावों में जी रहे है शहीद परिवार
राजसिंह ने बताया कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद आज भी शहीद परिवार अभावों में जी रहे है. कई शहीद परिवारों के शहीदों की स्टैच्यू तक नहीं है. वहीं किसी को पैकेज नहीं मिला. किसी को आधा अधूरा पैकेज मिला है. कोई पेंशन के लिए परेशान है. तो कोई किसी कारण परेशान है.

Reporter: Sandeep Kedia

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