क्या Congress से गठबंधन की तैयारी में है Hanuman Beniwal ?
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क्या Congress से गठबंधन की तैयारी में है Hanuman Beniwal ?

राजस्थान के सियासी गलियारों में कुछ सियासी संभावनाओं पर चर्चाएं शुरू हो गई है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Jaipur : राजस्थान में इन दिनों पॉलिटिकल पार्टियां जो भी रणनीति रही है... वो राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 को ध्यान में रखते हुए बन रही है. क्योंकि पंचायती राज के चुनाव हो गए. नगर निकायों के हो गए. ऐसे में अब 2023 से पहले कोई बड़ा चुनाव है नहीं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से राजस्थान के सियासी गलियारों में कुछ सियासी संभावनाओं पर चर्चाएं शुरू हो गई है. एक चर्चा ये है कि क्या कांग्रेस (Congress) और हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) की पार्टी आरएलपी (RLP) के बीच कोई गठबंधन हो सकता है.

2018 में बनी पार्टी कैसे हो रही ताकतवर
आरएलपी (Rashtriya Loktantrik Party) के बारे में आप जानते हैं. 2018 के चुनावों से ठीक पहले पार्टी बनी.  60 के करीब सीटों पर कैंडिडेट उतारे. तीन सीटेंखींवसर, मेड़ता और भोपालगढ़ जीती. फिर लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) आए तो बीजेपी और आरएलपी के बीच गठबंधन हुआ. लोकसभा चुनावों में ही कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चा भी हुई थी. बेनीवाल (MP Hanuman Beniwal) कहते है कि उन्होंने खुद कांग्रेस से गठबंधन ठुकरा दिया था. तो कुछ लोग कहते हैं कि नागौर से लोकसभा चुनावों में मिर्धा परिवार की दावेदारी थी. ऐसे में मिर्धा परिवार (Mirdha Family) को किनारे कर बेनीवाल के खाते में ये सीट देना कांग्रेस के लिए भी मुश्किल भरा था. ज्योति मिर्धा (Jyoti Mirdha) को टिकट देना मजबूरी हो गया था. इसलिए कांग्रेस ने खुद ही आरएलपी के साथ गठबंधन किया. सच्चाई जो भी हो बाद में बेनीवाल ने बीजेपी से गठबंधन किया. नागौर (Nagaur) से सांसद बने. फिर हालात बदले और गठबंधन टूटा. तो अब ये चर्चा है कि बेनीवाल कांग्रेस से गठबंधन कर सकते हैं.

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कांग्रेस के प्रति नरम हुए बेनीवाल
अगर आप पिछले पांच 6 महीने देखें. तो हनुमान बेनीवाल कांग्रेस पर, राज्य सरकार पर या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर ज्यादा बयान नहीं देते हैं, लेकिन जब बीजेपी के साथ गठबंधन में थे. तो हमेशा राज्य सरकार पर और मुखिया अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) पर हमलावर नजर आते थे.

कांग्रेस के लिए बेनीवाल कितने जरूरी ?
कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनावों से राजस्थान (Rajasthan) में लोकसभा की कोई भी सीट नहीं जीत पा रही है. जाट समाज में बेनीवाल का ठीक ठाक क्रेज है और बेनीवाल जिस बाड़मेर से लेकर जोधपुर नागौर और शेखावाटी के बेल्ट में विस्तार कर रहे हैं. बीजेपी गठबंधन में रहते हुए वो कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे थे. अब बेनीवाल के उसी प्रभाव का इस्तेमाल कांग्रेस दो वजहों से ले सकती है. पहला, कांग्रेस का अपना वोटबैंक जो बेनीवाल की वजह से कांग्रेस से दूर हो रहा था. उसे बचाना चाहती है. दूसरा, बीजेपी के साथ रहते हुए लोकसभा चुनाव या बाद में बेनीवाल ने जिन इलाकों में विस्तार किया था. अब उसका भी कांग्रेस फायदा उठाना चाहती है.

शेखावत के खिलाफ मिलेगी मदद
बेनीवाल की जोधपुर जिले में अच्छी खासी पकड़ है. और जोधपुर में ही गहलोत वर्सेज शेखावत की लड़ाई में शेखावत (Gajendra Singh Shekhawat) को दबाने के लिए गहलोत को बेनीवाल का सहारा मिल सकता है. लेकिन एक सवाल ये भी है कि अगर बेनीवाल कांग्रेस से 2023 के चुनावों से पहले गठबंधन करते है. तो विधानसभा और लोकसभा में सीट शेयरिंग का फार्मूला क्या होगा. क्या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 15 के लगभग सीटें बेनीवाल को देगी. मेवाड़, मारवाड़ और शेखावाटी बेल्ट में बेनीवाल  के लिए कौनसी 15 सीटें छोड़ी जाएगी. ये कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल होगा. क्योंकि राजस्थान में हर सीट पर कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक है. एक और खास बात, 2018 में आरएलपी ने जिन सीटों पर अच्छे खासे वोट बटोरे थे. उनमें ज्यादातर सीटें कांग्रेस की पकड़ वाली ही थी. जैसे, बाड़मेर (Barmer) में बायतू और शिव सीटों पर आरएलपी को अच्छे खासे वोट मिले थे. बायतू से हरीश चौधरी और शिव से अमीन खान जैसे सीनियर नेता विधायक है. तो ऐसी मजबूत सीटें बनीवाल को मिलेगी नहीं. तो क्या बेनीवाल वो सीटें लेने के लिए तैयार होंगे. जहां कांग्रेस कमजोर है. जहां बीजेपी मजबूत है.

लोकसभा में कैसे होगी सीट शेयरिंग ?
एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि लोकसभा में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला क्या रहेगा. नागौर सीट अगर कांग्रेस बेनीवाल को देती है. तो मिर्धा परिवार को कैसे मनाया जाएगा. दूसरी बात, जोधपुर में भी जाट समाज का नेता बनने की होड़ में बेनीवाल और मदेरणा परिवार आमने सामने है. अभी पंचायती राज चुनाव में ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा और बेनीवाल के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी. क्या कांग्रेस नेतृत्व विशेष तौर से खुद अशोक गहलोत इन दोनों परिवारों को साथ बिठा पाएंगे और क्या मदेरणा परिवार इस बात के लिए राजी होगा कि उसके प्रभाव क्षेत्र में बेनीवाल को भी एंट्री दी जाए.

क्या बेनीवाल को होगा कांग्रेस गठबंधन का फायदा ?

एक तरफ कांग्रेस आरएलपी गठबंधन के पक्ष में कई तर्क है लेकिन इसके खिलाफ भी कई तर्क है. एक और नेरेटिव है. बेनीवाल जाट और मेघवाल वोटबैंक में सबसे ज्यादा सैंधमारी कर रहे है. ये वोटर मूल रूप से कांग्रेस का ही वोटर रहा है. ऐसे में कहीं ये सियासत के जादूगर की जादूगरी ही तो नहीं है. कि बेनीवाल को अपने साथ मिलाकर ही उसे कमजोर किया जाए. जैसे 2008 और 2018 का चुनाव देखेंगे तो पूर्वी राजस्थान में बसपा मजबूत बनकर उभरी. 6-6 सीटें जीती, लेकिन जादूगर ने बसपा विधायकों को अपने साथ मिलाया. और अपने साथ मिलाकर ही उसके वजूद को खत्म किया. तो क्या ये भी एक रणनीति हो सकती है. कि बेनीवाल को पहले कांग्रेस के साथ ही मिलाया जाए. और फिर धीरे धीरे उनकी जड़ों को काटा जाए. ये सारी बातें संभावित समीकरणों पर आधारित बातें है. सच्च में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा. ये तो आने वाला वक्त बताएगा. क्योंकि विधानसभा चुनावों में अभी करीब ढ़ाई साल का वक्त है. बेनीवाल हो या कांग्रेस हो. सब अपने नफे नुकसान का गुणा भाग करेंगे. और उसके बाद उन्हैं जो सही लगेगा वो फैसला लेंगे. फिलहाल ये सारी बातें संभावनाओं और सियासी चर्चाओं पर आधारित कयास मात्र है.

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