Jaipur: स्कूल में बच्चों को मारपीट से नहीं, अनुशासन से डरा कर समझाया जाए- अध्यक्ष
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Jaipur: स्कूल में बच्चों को मारपीट से नहीं, अनुशासन से डरा कर समझाया जाए- अध्यक्ष

स्कूलों में बच्चों को मारपीट के बजाय अनुशासन से डराधमका कर समझाया जाए. बच्चे देश का आने वाला भविष्य हैं, ऐसे में नियम उनकी बेहतरी को ध्यान में रखकर ही बनाए जाएं. स्कूलों में बच्चों की पिटाई और लैंगिग अपराध को लेकर जयपुर में आयोजित की गई राज्य स्तरीय कार्यशाला में इस तरह के सुझाव सामने आए.  

Jaipur: स्कूल में बच्चों को मारपीट से नहीं, अनुशासन से डरा कर समझाया जाए- अध्यक्ष

Jaipur: बच्चे कच्चे घड़े की तरह हैं, उन्हें जैसा ढालेंगे, वैसा ही आकार लेंगे. स्कूलों में बच्चों को मारपीट के बजाय अनुशासन से डराधमका कर समझाया जाए. बच्चे देश का आने वाला भविष्य हैं, ऐसे में नियम उनकी बेहतरी को ध्यान में रखकर ही बनाए जाएं. स्कूलों में बच्चों की पिटाई और लैंगिग अपराध को लेकर जयपुर में आयोजित की गई राज्य स्तरीय कार्यशाला में इस तरह के सुझाव सामने आए.  

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जयपुर के दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से  राज्य स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों के साथ ही आयोग पदाधिकारियों ने अपनी बात रखी. कार्यशाला में माैजूद जिला शिक्षाधिकारी, स्कूल शिक्षकों और बच्चों ने भी अपने सुझाव रखे. बाल आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने  कहा कि शिक्षको और बच्चों के मानसिक पटल पर एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास है.

स्कूलों में पहले शारीरिक दंड जैसे मामले सामने नहीं आते थे, लेकिन ये सोचने का और चिंतन का विषय है कि अब एसे मामले सामने क्यों आ रहे हैं. बेनीवाल ने कहा कि  गुरु के सम्मान के लिए बच्चों को स्कूल में वैसा वातावरण दिया जाना शिक्षक की ज़िम्मेदारी है . वहीं बच्चों को भी गुरु के प्रति सम्मान करना अतिआवश्यक है.  बच्चों को दिशा दिखाना सबसे पहले शिक्षक का काम है . शिक्षक, अभिभावक और हम सब के संयुक्त प्रयास से बच्चों को सुरक्षित बचपन दे सकेंगे.

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विषय विशेषज्ञ राजेंद्र गौरव ने शारीरिक दंड से बच्चों में होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी दी. उन्होंने शिक्षक और बच्चों को के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के स्टेप्स बताए उन्होंने कहा कि शिक्षकों को भी बच्चों को दंड देने की जगह काउन्सलिंग के माध्यम से बच्चों को समझाया जाना चाहिए. डॉ. चंद्रानी सेन ने प्रकाश डाला कि शारीरिक दंड के विकल्प के रूप में क्या प्रक्रिया अपनायी जा सकती है, उन्होंने स्कूल में शिक्षकों द्वारा बनाए गए अनुशासन के नियमों में बदलाव की जरूरत बताई. उन्होंने कहा कि जब आप सही नियम तय करेंगे और उसकी पालना करवाएँगे तो शारीरिक दंड की नौबत नहीं आएगी.  

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पुलिस निरीक्षक धीरज वर्मा ने लैंगिक अपराध को लेकर अपना सत्र लिया. उन्होंने POCSO act कि धाराओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक्ट कि जानकारी उसकी जागरूकता बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि शिक्षक या अन्य कोई भी भी व्यक्ति जिसके संज्ञान  में बच्चों के साथ लैंगिक हिंसा का मामला आए उसकी रिपोर्ट करना अनिवार्य है. ऐसा नहीं करना दंडनीय अपराध है. 

ऑनलाइन क्लासेस से पड़ा दुष्प्रभाव

कार्यशाला में एक शिक्षक ने सवाल उठाया कि ऑन लाइन क्लासेज के कारण बच्चे और शिक्षक दोनों अवसाद का शिकार हो गए हैं. इस पर वहां मौजूद मनोचिकित्सक ने कहा कि कारोनोकाल में स्क्रीन टाइम बढ़ा तो बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन आता रहा. धीरे धीरे इसका असर व्यापक रूप से हो गया, पहले घरवालों ने भी नजरअंदाज किया, लेकिन अब इनके लक्षणों का असर दिखाई दे रहा है. बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए. बाल आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने भी कहा कि ऑन लाइन पढ़ाई के बजाय ऑफ लाइन पढ़ाई ज्यादा अच्छी है. ऑन लाइन स्क्रीन के दुष्प्रभाव बताते हुए कहा कि इसे तत्काल बंद कर देना चाहिए. 

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