आदिवासी कुंभ में पंहुचे 5 लाख से भी ज्यादा लोग, 450 साल पुराना है इतिहास
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आदिवासी कुंभ में पंहुचे 5 लाख से भी ज्यादा लोग, 450 साल पुराना है इतिहास

आदिवासी मेले में रात के वक्त बाकी मेलों की तरह सन्नाटा नहीं पसरा रहता, बल्कि 24 घंटे रौनक नजर आती है.

आदिवासी कुंभ में पंहुचे 5 लाख से भी ज्यादा लोग (फोटो: डूंगरपुर मेला)

जयपुर: राजस्थान के डूंगरपुर में इन दिनों आदिवासी महाकुंभ की छटा बिखरी हुई है. इस मेले में हर साल लाखों की तादात में लोग पंहुचते हैं. मेले का मुख्य आकर्षण आदिवासी जीवन और उनके समाज को प्रतिबिंबित करती हुई झलकियां होती हैं. आदिवासी मेले में अब तक करीब 5 लाख लोगों के पंहुचने की बात कही जा रही है.

ये आदिवासी महाकुंभ हर साल डूंगरपुर जिले के बेणेश्वरधाम में माही, सोम और जाखम नदियों के संगम (वागड़ प्रयाग) पर आयोजित होता है. इसी मेले के दौरान बुधवार को माघ पूर्णिमा के मौके पर संगम पर एक लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान किया. इसमें गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान समेत 10 राज्यों के लोग शामिल होने पहुंचे हैं.

उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला
बता दें कि आदिवासी महाकुंभ मेला करीब एक महीने तक चलता है. हालांकि मुख्य मेला सिर्फ 8 दिनों तक ही चलता है, जब सबसे ज्यादा लोग यहां पंहुचते हैं. इस बार यह मेला 27 जनवरी को शुरू हुआ है. 3 फरवरी को इस मेले का समापन होगा. अब तक मेले में करीब 5 लाख लोग पहुंच चुके हैं. उत्तर भारत में यह आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला भी है. 

24 घंटे लगा रहता है मेला 
आदिवासी मेले में रात के वक्त बाकी मेलों की तरह सन्नाटा नहीं पसरा रहता, बल्कि 24 घंटे रौनक नजर आती है. यही वजह हे कि इस दौरान टूरिस्ट भी बड़ी संख्या में यहां पंहुचते हैं. खास बात है कि मुख्य मेले के 8 दिन दुकानें 24 घंटे खुली रहती हैं. 

450 साल से हो रहा मेले का आयोजन
जानकारों की मानें तो आदिवासी समाज का यह मेला पिछले करीब 450 सालों से लग रहा है. इस मेले में धनुष-बाण, महंत के शाही स्नान और पालकी यात्रा मुख्य आकर्षण का केंद्र होते हैं. 

धनुष-बाण की हो रही बिक्री
दुकानदारों का कहना है कि महाकुंभ मेले में धनुष-बाण की जमकर बिक्री हो रही है. इसके अलावा आदिवासी समाज के परिधान भी बिक रहे हैं. बुधवार को मेले का मुख्य आकर्षण निष्कलंक अवतार की पालकी यात्रा और संगम पर महंत अच्युतानंद का शाही स्नान रहा था. पालकी मावजी महाराज की जन्मस्थली साबला के हरि मंदिर से स्नान के लिए निकाली गईण् इस दौरान पालकी यात्रा में सैकडों धर्मध्वजाओं, भजन-कीर्तन, गाजे-बाजे एवं रासलीला के साथ कई भक्तों ने शिरकत की. यहां लोग हर साल पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैं.माघ पूर्णिमा स्नान के मौके पर श्रद्धालुओं ने आबूदर्रा स्थित संगम घाट पर मृत परिजनों की अस्थियों को पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ विसर्जित किया.

चाक-चौबंद है व्यवस्था
मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन की तैयारियां भी काफी पहले ही पूरी हो गई थी. सुरक्षा वयवस्था के लिहाज से मेले में चारों ओर राजस्थान पुलिस के जवान नजर आ रहे हैं. आखिरी दिन के लिए भी प्रशासन ने अपनी व्यवस्थाएं चाक चौंबद कर ली हैं.

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