पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर भी लगे थे जासूसी और फोन टैपिंग के आरोप!
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पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर भी लगे थे जासूसी और फोन टैपिंग के आरोप!

जून 2020 में राजस्थान (Rajasthan) में कांग्रेस सरकार (Congress Government) के सियासी संकट के दौर में भी ऐसे आरोप लगे थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अनबन के दौर में पायलट ग्रुप ने भी कई विधायकों के फोन टैप होने के आरोप लगाए थे.

जवाहर लाल नेहरू. (फाइल फोटो)

Jaipur: पेगासस जासूसी मामला (Pegasus spy case) सामने आने के बाद जासूसी और फोन टैपिंग (Phone Tapping) पर देश में एक बार फिर से बहस छिड़ गई है लेकिन सच्चाई ये है कि देश में अब तक कई सरकारों पर जासूसी के आरोप लग चुके है, लेकिन कभी कोई ऐसी कार्रवाई नहीं हुई, जो ठोस परिणाम तक पहुंची हो.

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शुरूआत 1962 से करते हैं, जब देश में कांग्रेस (Congress) की सरकार थी और पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. उनकी सरकार में टीटी कृष्णामाचारी पावरफुल मंत्रियों में से एक थे. कृष्णमचारी पहले 1956 से लेकर 1958 तक और बाद में 1964 से लेकर 1966 तक भारत के वित्त मंत्री रहे. उन्होंने फोन टैप होने का आरोप लगाया था और बकायदा उस समय के इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर बीएन मलिक का नाम भी लिया था लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. 

जासूसी हुई या नहीं हुई...न तो जांच हुई और न ही सच्चाई सामने आई. नेहरू सरकार में ही मंत्री रहे रफी अहमद किदवई ने भी अपनी सरकार पर फोन टेप करने का आरोप लगाया था. उन्होंने ये भी कहा था कि गृहमंत्री सरदार पटेल के कहने पर फोन टेप किया जा रहा है लेकिन उन्होंने इसकी औपचारिक शिकायत किसी से नहीं की. एहतियात के तौर पर कांग्रेस मुख्यालय का टेलिफोन अपने पास ट्रांसफर करवा दिया और उसी का इस्तेमाल किया. किदवई ने अपने परिवार के लोगों को भी सलाह दी कि उनके आधिकारिक फोन को डिनर के दौरान पारिवारिक मामलों पर चर्चा के समय बिजी रखें.

थल सेना प्रमुख की हुई थी जासूसी
साल 1959 में उस समय के थल सेना प्रमुख जनरल केएस थिमय्या ने भी अपनी जासूसी के आरोप लगाए थे. केएस थिमय्या साल 1956 से लेकर 1961 तक सेना प्रमुख रहे थे. थिमय्या का उस वक्त के रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन के साथ आर्मी में कुछ नियुक्तियों को लेकर भी विवाद हुआ था और उसके बाद उन्होंने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी. उन्होने इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया था कि उनके ऑफिस और घर दोनों जगह कुछ ऐसे बग हैं, जिससे जासूसी का शक होता है.

इंदिरा गांधी पर भी लगे थे जासूसी के आरोप
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता ज्ञानी जैल सिंह 1880 से 1982 तक इंदिरा गांधी सरकार में गृहमंत्री रहे थे. आरोप लगते हैं कि इंदिरा गांधी ने उस वक्त जैल सिंह की फोन टैपिंग करवाई थी. उस समय IB के डायरेक्टर एमके धर थे. उन्होंने अपनी किताब ओपन सीक्रेट में इस बात का जिक्र भी किया है.

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र करते हुए कहा है कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने अपने ही होम मिनिस्टर के खिलाफ जासूसी के लिए IB को कहा था. गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और जरनैल सिंह भिंडरांवाले के बीच में जो भी बातचीत हुई थी उसे आईबी ने रिकॉर्ड किया था.

मेनका गांधी की भी हुई थी जासूसी
संजय गांधी के निधन के बाद पत्नी मेनका गांधी के सोनिया गांधी और इंदिरा गांधी के बीच टकराव होने लगा था. ये टकराव अमेठी और रायबरेली के चुनावों में भी देखने को मिलता था. उस वक्त के आईबी चीफ एमके धर ने ये भी माना है कि उन्होंने मेनका गांधी की मां की भी जासूसी हुई थी. मेनका गांधी की मां अमतेश्वर आनंद के जोर बाग में उनके घर में फोन-टैपिंग डिवाइस इंस्टॉल किया गया था. बाद में मनेका गांधी की मैगजीन के ऑफिस में भी छापे पड़े थे. मेनका गांधी के दोस्तों की भी कॉल रिकॉर्डिंग की गई थी.

राजीव गांधी पर भी लगे थे जासूसी के आरोप
पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके और इंदिरा सरकार में देश के गृहमंत्री बने ज्ञानी जैल सिंह को बाद में देश का राष्ट्रपति बनाया गया था लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद जैल सिंह के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ संबंध खराब हो गए थे. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राष्ट्रपति की भी जासूसी करवाई थी. इस बात का जिक्र उस वक्त के आईबी चीफ एमके धर ने अपनी किताब ओपन सीक्रेट में किया है. देश में किसी भी राष्ट्रपति की जासूसी का ये पहला मामला था. जैल सिंह भी इस बात को जानते थे कि उनकी जासूसी हो रही है. यही वजह है कि जैल सिंह अपने मेहमानों से राष्ट्रपति गार्डन में मिलते थे.

जब जासूसी के आरोप में प्रधानमंत्री को छोड़ना पड़ा पद
ये 1990 की बात है. 23 अक्टूबर 1990 को राम रथ यात्रा निकाल रहे बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की बिहार में गिरफ्तारी होती है. तो बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापिस ले लिया. वीपी सिंह सरकार गिरने में यशवंत सिन्हा और चंद्रशेखर का भी हाथ था. चंद्रशेखर ने अपनी किताब 'जिंदगी का कारवां' में इस बात का जिक्र किया है. कि वीपी सिंह सरकार गिरने के बाद किस तरह से राजीव गांधी ने आरके धवन के जरिए उन तक संदेश पहुंचाया. और कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. लेकिन सरकार बनने के बाद ये आरोप लगे कि चंद्रशेखर सरकार राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है. 2 मार्च 1991 को हरियाणा पुलिस के सिपाही प्रेम सिंह और राज सिंह, राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए. दोनों सादे कपड़ों में थे और गिरफ्तारी के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि वो कुछ सूचना जुटाने वहां भेजे गए थे.

जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ी
साल 1990 में चंद्रशेखर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उनकी नेशनल फ्रंट की सरकार पर आरोप लगाया कि उनका फोन टैप किया गया. हालांकि ये आरोप आरोप ही रह गए. वीपी सिंह के इस्तीफ़े के बाद जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ दी. समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया. 1990 में चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. 2 मार्च 1991 को हरियाणा पुलिस के सिपाही प्रेम सिंह और राज सिंह, राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए. दोनों सादे कपड़ों में थे और गिरफ्तारी के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि वो कुछ सूचना जुटाने वहां भेजे गए थे.

इससे गुस्साई कांग्रेस पार्टी ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापिस लेने की धमकी दे दी. चंद्रशेखर ने संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की पेशकश की भी लेकिन कांग्रेस ने समर्थन वापिस ले लिया. ऐसे में संसद में बहुमत साबित करने की नौबत आ गई. बहुमत के आंकड़े की संभावना कम देखते हुए चंद्रशेखर ने 7 मार्च 1991 को खुद ही इस्तीफा दे दिया. इस तरह जासूसी के आरोपों की वजह से चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.

जासूसी के आरोप में मुख्यमंत्री ने गंवाई कुर्सी
ये 1988 की बात है जब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी और कर्नाटक में जनता पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री थे. वो इतने लोकप्रिय थे कि गैर कांग्रेसी उन्हैं प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखने लगे थे. उनकी ये लोकप्रियता कर्नाटक में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन रही थी. इसी बीच मीडिया में फोन टैपिंग पर एक रिपोर्ट आई जिसमें ये दावा किया गया कि कर्नाटक सरकार ने 50 से ज्यादा नेताओं और मंत्रियों के फोन टेप करने के आदेश दिए है. ये मुद्दा गर्माने लगा. उस वक्त बोफोर्स घोटाले की वजह से राजीव गांधी सरकार दबाव में थी लेकिन इस मामले ने पलटवार का मौका दिया. कर्नाटक सरकार पर जांच के आदेश दिए गए. और आखिरकार रामकृष्ण हेगड़े को इस्तीफा देना पड़ा.

फोन टैपिंग के चर्चित मामले
भारतीय राजनीति में टाटा टेप्स का काफी जिक्र होता है, जिसमें भारत के 3 बड़े कारोबारी नुस्ली वाडिया, रतन टाटा और केशव महिंद्रा की बातचीत थी इस मामले में गुजराल सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे लेकिन सबूतों के अभाव में जांच बंद कर दी थी. 2008 में नीरा राडिया टेप कांड सबसे ज्यादा चर्चित रहा था. इसे आयकर विभाग ने टेप किया था. नीरा राडिया और कुछ राजनेताओं व कॉरपोरेट घरानों के बीच वार्ता को टेप किया था. नीरा राडिया पर पॉलिटिकल लॉबिंग का भी आरोप लगा था. इसमें कुछ पत्रकार भी शामिल थे. टेप कांड के बाद खुलासा हुआ कि राडिया किस नेता को कौनसा मंत्री पद दिया जाएगा, ऐसी लॉबिंग करती थीं. जिसमें उस वक्त के दूर संचार मंत्री ए राजा का नाम भी आया था लेकिन ये मामला भी नतीजे तक नहीं पहुंच पाया था.

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी जाहिर किया शक
2011 में उस वक्त के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी शक जाहिर किया था कि उनके दफ्तर की सुरक्षा में भी सेंध लगी है. इसकी जांच के लिए उन्होंने पीएम मनमोहन सिंह को पत्र भी लिखा था. 2013 में अरुण जेटलवी ने राज्यसभा में फोन टेप कराने का आरोप लगाया था. इसकी जांच की गई, जिसमें 4 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया.

राजस्थान में भी उठा फोन टैपिंग का मुद्दा
जून 2020 में राजस्थान (Rajasthan) में कांग्रेस सरकार (Congress Government) के सियासी संकट के दौर में भी ऐसे आरोप लगे थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अनबन के दौर में पायलट ग्रुप ने भी कई विधायकों के फोन टैप होने के आरोप लगाए थे.

अब तक देश में जासूसी और फोन टैपिंग के कई मामले सामने आए है लेकिन कभी किसी मामले में किसी बड़े नेता को सजा नहीं हुई है. न ही सीधे तौर पर किसी नेता का नाम जासूसी में साबित हो पाया है. केवल नैतिकता के आधार पर ऐसे मामलों में आलोचना होती है लेकिन अपने अपने दौर में हर कोई जासूसी में शामिल रहा है और फोन टैपिंग जैसे मामलों में कई नेताओं के नाम आते रहते हैं.

 

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