Sixteen Sanskars : 7वें महीने के गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए गोद भराई की रस्म बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन आधुनिक होते भारत में ये रस्म महज बेबी शावर पार्टी बन कर रही गयी है. सनानत धर्म में बताये गए सोलह संस्कारों में से एक और तीसरा सीमान्तोन्नयन संस्कार यानि की गोदी भराई की रस्म की प्रक्रिया हम आपको बताते हैं.


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गर्भवती महिला का 7वां महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है. ये गर्भावस्था की तीसरी तिमाही होती है. ऐसे में सनातम धर्म में बताये गये सोलह संस्कारों में से एक सीमान्तोन्नयन संस्कार किया जाना जरूरी है.


7वें महीनें में बच्चे का दिन दूना रात चौगुना विकास हो रहा होता है. इस संस्कार के दौरान पूरा परिवार एक साथ होता है और मां और आने वाली संतान के स्वास्थ्य की भगवान से प्रार्थना करता है.


कैसे होता है संस्कार
गोद भराई या सीमान्तोन्नयन संस्कार या फिर नक्षत्रम् संस्कार के दौरान सबसे पहले "विशिष्ट आहूति विधि" का प्रयोग होता है. जिसमें चावल, मूंग, और तिल की खिचड़ी बनाकर इसमें गाय के दूध का शुद्ध घी डालकर यज्ञ के समय पर मंत्रों के दौरान यज्ञ में आहूति दी जाती है.
 
सामवेद के मंत्र 
यज्ञ के बाद "सीमन्तोन्नयन" होता है. जिसमें पिता अपनी गर्भवती पत्नी को आसन पर बैठाते हैं और फिर बेटी के सिर पर सुगन्धित तेल लगाते हैं और उसके बालों को कंघी से संवारते हैं. इसके बाद बालों को फूलों से सजाकर जूड़ा बनाया जाता है. इस पूरी विधि के दौरान सामवेद के मंत्र पढ़े जाते हैं.


प्रतिबिम्ब को देखना
अब यज्ञ के आहूति के बाद बची खिचड़ी के बीच में गाय के दूध से बना गरम गरम घी डाला जाता है. फिर खिचड़ी के बर्तन को होने वाले पिता के हाथ में दिया जाता है और गर्भवती स्त्री उस घी में झांक कर प्रतिबिम्ब देखती है. पति संस्कृत भाषा में गर्भवती पत्नी से पूछते हैं - क्या देखा ?  और माँ संस्कृत में ही जवाब देती है कि- हमारी होने वाली संतान को देखा है. 
 
शुभ मंगल विधि
अब गर्भवती स्त्री को आसम पर बैठाया जाता है. गर्भवती स्त्री को कोई बुजुर्ग महिला बची खिचड़ी को प्रसाद के रुप में खाने को देती है. सीमन्तोन्नयन संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ को शुद्ध करना होता है.  


सनातन धर्म में ये माना जाता है कि 7वें महीने में गर्भ में पल रहे शिशु की चेतना और इच्छाओं का विकास शुरु हो जाता है. शिशु की इच्छाएं उसकी मां की इच्छाओं के रुप में प्रकट होती है.


इसलिए कहा जाता है कि गर्भवती स्त्री की हर इच्छा को पूरा करना चाहिए. जब गर्भ में मन और बुद्धि का विकास हो रहा होता है, तो गर्भ शिक्षण योग्य हो जाता है. जिसमें की बाहर से माता-पिता और परिवार के संस्कार रोपित होते हैं और ये बच्चे पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं. संस्कार के दौरान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा होती है. मां को प्रसव पीड़ा कम होने में मदद मिलती है.


इस संस्कार के दौरान सीमन्तोन्नयन संस्कार में पूजन में शंख, चक्र और गदा धारण किए हुए भगवान विष्णु की मूर्ति को माता के कंठ, ह्दय, माथे और उदर पर लगाया जाता है.  ऐसा करने से मां भगवान विष्णु स्तन में दूध देते है. उदर में पीड़ा को समाप्त करते हैं और कंठ में किसी तरह की परेशानी को दूर करते है. जिससे आने वाले शिशु के अंदर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं.