सरकारी दफ्तरों में कई वर्षों से नियमों को ताक पर रखकर प्रतिनियुक्ति का अवैध खेल खेला जा रहा है. दरअसल प्रतिनियुक्ति पर अधिकांश वही कर्मी जाना चाहते हैं. जिनका काम की संस्कृति से कोई खास लेना देना नहीं होता या फिर मलाईदार सीट मिल जाये या घर से दूर नहीं रहना चाहते है.
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Jaipur: राजस्थान में जयपुर संभागीय आयुक्त का दफ्तर इन दिनों प्रतिनियुक्ति पर लगे रीडर के फर्जी हस्ताक्षर कर जजमेंट सुनाने के लिए चर्चाओं में है. इस दफ्तर में संभागीय आयुक्त, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त बैठकर काम निपटाते है. लेकिन इनकी बगल वाली कुर्सी पर बैठकर डेपुटेशन पर लगे कार्मिक उन्ही के फर्जी हस्ताक्षर से जजमेंट सुना देते है और महीनों तक इसकी खबर तक अफसरों को नहीं लगती.
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फर्जीवाड़े के बाद हमने इसी दफ्तर में डेपुटेशन पर लगे कार्मिकों की पड़ताल की तो सच निकल कर सामने आया. इस दफ्तर में जहां पोस्ट के विपरित अधिकारी-कर्मचारी अपने रसूकात के दम पर दूसरे विभाग ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों से आकर यहां सालों से जमे बैठे है. ड्राइवर से लेकर पटवारी, वरिष्ठ सहायक, सहायक राजस्व लेखाधिकारी दूसरे जिलों और दूसरे विभागों से आकर खूब चांदी कूट रहे है. संभागीय आयुक्त कार्यालय में जिसकी पोस्ट स्वीकृति ही नहीं है. वहां भी सालों से दूसरे विभागों से आए कार्मिक डेपुटेशन पर लगे है. यहां 16 कर्मचारी-अधिकारी ऐसे है जो पद नहीं होने के बावजूद भी यहां सालों से बैठे है. यही नहीं जिनकी जरूरत दूसरे जिलों में है. वे भी अपना जिला छोड़कर यहां विभाग पर भार बनकर बैठे हुए है. दरअसल हाल ही में जी मीडिया ने सरकारी महकमों में डेपुटेशन और संविदा पर लगे कार्मिकों की करतूत को उगाजर किया और बताया किस तरह ये कार्मिक अफसरों की बगल वाली सीट पर बैठकर फर्जी हस्ताक्षर करके घोटाले पर घोटाले कर रहे हैं.
जानिए कौन अधिकारी-कर्मचारी डेपुटेशन पर लगा है
सरकारी दफ्तरों में कई वर्षों से नियमों को ताक पर रखकर प्रतिनियुक्ति का अवैध खेल खेला जा रहा है. दरअसल प्रतिनियुक्ति पर अधिकांश वही कर्मी जाना चाहते हैं. जिनका काम की संस्कृति से कोई खास लेना देना नहीं होता या फिर मलाईदार सीट मिल जाये या घर से दूर नहीं रहना चाहते है. ऐसे में डेपूटेशन वाले कार्मिक अपने रसूख के दम पर घर के पास और मलाईदार जगहों पर अपनी प्रतिनियुक्ति करा लेते हैं. डेपुटेशन वाले अधिकारी-कर्मचारी मनमर्जी के ट्रांसफर ना मिलने पर जैक लगाकर डेपुटेशन का खेल खेलते है. कुछ तो साम, दाम, दंड, भेद की रणनीति अपनाकर उल्लू सीधा करते हैं. इनमें कुछ यूनियनों के पदाधिकारी है तो कुछ बड़े अफसरों के रिश्तेदारी के रसूख का फायदा उठा रहे हैं. कई तो सियासी गलियारों तक का सहारा ले रहे है.
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हालांकि सरकारी विभागों में डेपुटेशन के मसले पर चिकित्सा मंत्री भी आपत्ति जता चुके हैं. चिकित्सा मंत्री ने अपने विभाग में डेपुटेशन को लेकर विधानसभा में विडंबना जाहिर की थी और कहा था कि भले मैं मंत्री रहूं या नहीं रहूं, लेकिन ये डेपुटेशन खत्म करके रहूंगा. लेकिन सवाल ये है कि मंत्रीजी अपने विभाग में तो डेपुटेशन खत्म कर देंगे. लेकिन दूसरे सरकारी महकमों में सालों से डेपुटेशन पर लगे कार्मिकों का डेपुटेशन खत्म कब होगा ?
बहरहाल, सवाल ये है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी सालों से प्रतिनियुक्ति के बहाने संभागीय आयुक्त कार्यालय में जमे इन अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके मूल विभाग क्या भेजा जाएगा ? और क्या अफसर इनके मकड़जाल से बाहर निकलकर रिलीव करने की प्रकिया को अंजाम देगे या फिर कागजों में इन्हें भी दफन कर दिया जाएगा.