जो थी कभी गौवंश की कब्रगाह, आज है जन्नत
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जो थी कभी गौवंश की कब्रगाह, आज है जन्नत

कीचड़ में फंसकर भूख-प्यास से तिल-तिल कर मरने वाले गोवंश के लिए अब न केवल चारे-पानी की 24 घंटे व्यवस्था है. 

जो थी कभी गौवंश की कब्रगाह, आज है जन्नत

Jaipur: साल 2016 को हिंगोनिया गौशाला, गौवंश की मौत को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चाओं में रही. लालफीताशाही के चलते से सैकड़ों गौवंशो ने दलदल में फंसकर दम तोड़ दिया. गौ पुनर्वास केन्द्र की पहचान पूरे देश में गोवंश के कब्रगाह के रूप में थी. लेकिन अब उसकी तस्वीर बदल चुकी है. अब दिन भर हरे राम हरे कृष्णा की धुन के बीच गायों की सेवा करते हुए सेवक नजर आते है. तो वही पुनर्वास केंद्र में आईसीयू वार्ड में डॉक्टर्स की टीम बीमार गायों का इलाज करती हुई नजर आती है.

सात साल में सबकुछ बदल गया है. गर्मी और बारिश से बचने के लिए बाड़ो में गायों के लिए टीन शेड लगा दिए गए हैं.तो नीचे पक्की फर्श बना दी गई है. कीचड़ में फंसकर भूख-प्यास से तिल-तिल कर मरने वाले गोवंश के लिए अब न केवल चारे-पानी की 24 घंटे व्यवस्था है. बल्कि बीमार पशुओं के लिए इलाज 14 डॉक्टर्स की टीम है. बल्कि उन बीमार पशुओं को गर्मी-सर्दी से बचाने के लिए नेचुरल वातानूकुलित वार्ड भी बनाया है. हिंगोनिया गौ पुनर्वास केन्द्र में इन दिनों 13 हजार 800 से ज्यादा आवारा गोवंश है.

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इस केन्द्र पर जयपुर शहर और उसके आस-पास के आवारा गौवंशों को लाकर रखा जाता है. इन गौवंश के लिए 54 बाड़े बने है और इन बाड़ों में हर समय चारे-पानी की व्यवस्था रहती है. यही नहीं बरसात, धूप से बचने के लिए हर बाड़े में टीनशेड और पक्की छत्त बनी हुई है. साल 2016 यहां गोवंश कीचड़-पानी में फंसकर भूख-प्यास से ही मरने लगी थी. उस समय यहां करीब 8 हजार गोवंश था और हर रोज औसतन 60-70 दम तोड़ रहे थे. गायों के बाड़ों में मिट्‌टी-कीचड़ के बीच गाय 2-3 फीट तक फंस चुकी थी, जिन्हे ना तो कोई निकालने वाला था और न ही उन्हें उस समय चारा-पानी दिया जा रहा था. तब ये मुद्दा पूरे देश में उठा था और इस पर खूब राजनीति हुई थी और जयपुर के तत्कालीन मेयर निर्मल नाहटा को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी

हिंगोनिया गौ-पुनर्वास केन्द्र पर हर समय 200 से अधिक गाय बीमार और गंभीर बीमारी की स्थिति में रहती है. इनके इलाज के लिए यहां एक हॉस्पिटल बना है जहां 14 डॉक्टर्स की टीम तैनात है. ये टीम हर रोज औसतन एक या दो गायों का ऑपरेशन भी करती है, जिनके पेट से पॉलीथिन या दूसरे अपशिष्ठ पदार्थ निकाले जाते है. इन बीमार गोवंश के लिए एक बड़ा वार्ड भी बना रखा है जो नेचुरल तरीके से वातानूकुलित है. यहां ऊंचाई पर टीनशेड के अलावा इसे चारो और से प्लास्टिक का त्रिपाल, जूट की बोरिया लगा रखी है, जिससे सर्दियों में सर्द हवाएं न आए और गर्मियों में अंदर का वातावरण ठण्डा रहे.

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गर्मियों में ज्यादा तापमान होने पर यहां 8-10 बड़े कूलर भी लगाए गए है, जिन्हे चलाकर वार्ड को ठण्डा रखने का प्रयास किया जाता है. इस केन्द्र का संचालन करने वाले ट्रस्ट के प्रबंधक प्रेम आनन्द की माने तो यहां हर छोटे-बड़े गोवंश के लिए हर रोज 24 घंटे चारे-पानी की व्यवस्था कर रखी है. हर रोज औसतन 40 हजार किलो सूखा चारा, 25 हजार किलो सब्जियां-फल (लॉकी, ककड़ी, तरबूज-खरबूजा आदि) और 12 हजार किलो पशु आहार की खपत होती है. इन गोवंश में से कई गाय दूध भी देती है, जिनसे हर रोज औसतन 1800-1900 लीटर दूध मिलता है.

हर साल चारे की किल्लत को देखते हुए केन्द्र में ही हरे चारे का उत्पादन शुरू करवा दिया है. यहां मौजूद 60 बीघा जमीन पर चारे की खेती करवानी शुरू कर दी है. इसके अलावा 200 बीघा जमीन और चिह्नित कर रखी है जहां अभी मिट्‌टी के टीबे और बड़े-बड़े गढ्डे है. जिन्हें लेवल करवाकर यहां भी चारा उगाया जाएगा, ताकि भविष्य में गायों को हरा चारा मिल सके. बहरहाल, इस गौ-पुनर्वास केन्द्र पर साल 2016 में गोवंश के कीचड़ में मरने की घटना से सबक लेते हुए यहां हर बाड़ों में कच्ची ईंटों और इंटरलॉकिंग टाइल्स के फर्श बनवाए गए है. ताकि बरसात में कीचड़ न हो और गायों में कीचड़ से कोई दूसरी बीमारी न हो. कच्ची ईटों का फर्श बनवाने से गायों फिसलती भी नहीं है और आसानी से चल-फिर लेती है.

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