प्रवासी पक्षी कुरजां के पड़ाव स्थल 'खींचन' गांव को मिली कुरजां नगरी की नई पहचान
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प्रवासी पक्षी कुरजां के पड़ाव स्थल 'खींचन' गांव को मिली कुरजां नगरी की नई पहचान

 फलोदी से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, ढिकान ने हर साल साइबेरिया (Siberia) से सर्दियों के प्रवास के लिए आने वाले  कुरजां पक्षियों ( Kurjan Bird) के पड़ाव स्थल के रूप में पूरी दुनिया में एक अलग पहचान बनाई है. 

इतनी संख्या में ये पक्षी कहाँ से आते हैं

Phalodi: फलोदी से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, ढिकान ने हर साल साइबेरिया (Siberia) से सर्दियों के प्रवास के लिए आने वाले  कुरजां पक्षियों ( Kurjan Bird) के पड़ाव स्थल के रूप में पूरी दुनिया में एक अलग पहचान बनाई है. इसलिए पर्यटन मानचित्र पर उभरने के बाद यहां पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है. कुरजां पक्षियों को साइबेरिया में डेमोसाइल क्रेन के रूप में जाना जाता है लेकिन भारत में इन पक्षियों को कुर्जन के रूप में जाना जाता है. इन पक्षियों का मुख्य भोजन है - ज्वार, नमक, चूना पत्थर और खारा पानी.

क्या आप इन पक्षियों के बारे में जानते हैं? ये पक्षी कब आते हैं? इतनी संख्या में ये पक्षी कहाँ से आते हैं? इन पक्षियों ने अपने प्रवास के लिए इस भूमि को क्यों चुना? साइबेरिया से यहां क्यों आए? कितने किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचते है, ये परिन्दे?

सितंबर के पहले सप्ताह में कुरजां साइबेरिया से फलोदी के धिचन गांव पहुंचने लगते हैं और नवंबर में इनकी संख्या 25 हजार तक पहुंच जाती है.

इन पक्षियों का पसंदीदा भोजन यहां भरपूर मात्रा  में मिलता है क्योंकि इस गाँव के पानी में नमक होता है, यहाँ चूना पत्थर पाया जाता है. इस क्षेत्र में नमक उत्पादन भारी मात्रा में होता है, जो ये खाती है और ज्वार गांव के सेठ इनको उपलब्ध करवाते है.

सितंबर से शुरू हो रहे साइबेरिया में बर्फबारी से बचने के लिए यह पक्षी सर्दियों के प्रवास पर भारत, मंगोलिया, पाकिस्तान समेत कई देशों में जाता है.

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ये पक्षी साइबेरिया से करीब 5500 किमी का सफर तय कर यहां पहुंचते हैं.
यहां पंहुचने के बाद ये शर्मीले मिजाज के पक्षी खुद को महफूज समझते है लेकिन इनके दुष्मन यहां भी बहुत है. कभी ये पक्षी ऊंची बिजली की लाइनों से टकराकर अपनी जान गंवा देते हैं तो कभी कुत्ते इन्हें मारकर खा जाते हैं.

इन पक्षियों के लिए न तो सरकार की ओर से कोई विशेष पहल की गई है और न ही इनके संरक्षण के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी एडीएम हाकम खान समय-समय पर प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा को लेकर पूरी संवेदनशीलता बरत रहे हैं. जिसके चलते एक पक्षी एम्बुलेंस भी ग्राम पंचायत को सौंप दी गई है. जिसके बाद पूरा खीचन गांव पक्षियों की रक्षा और उन्हें खिलाने की जिम्मेदारी ले रहा है.
इस गांव का एक ग्रामीण सेवाराम माली इन पक्षियों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहता है. सेवाराम को कई राष्ट्रीय स्तर के वन्यजीव पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है.

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साथ ही पूरा गांव इन पक्षियों की देखभाल करने और सेवा करने से नहीं कतराता है.

पक्षियों ने अपनी सेवा के बदले में ग्रामीणों को खींचन गांव का नाम कुरजां नगरी बना दिया. यहां प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देशी-विदेशी सैलानी यहां कुरजां की अठखेलियों को निहारने यहां पंहुचते हैं. कुरजां सुबह 7 बजे से 10 बजे तक गांव के फिडींग स्टेशन यानी चुग्गाघर पर देखी जा सकती है और दोपहर में गांव के दो तालाबों पर ये पानी के साथ खेलते हुए नजर आती है.

शाम को ये पक्षी पास के नमक उत्पादन क्षेत्र में चले जाते हैं और रात को आराम करने के बाद सुबह गांव में कुर्र-कुर्र की आवाज के साथ यहां पहुंचते हैं.

कुरजां सितम्बर से मार्च तक यहां सर्दियों के प्रवास पर यहां रहकर गर्भ धारण करती है. फिर मार्च में अपने देष को लौट जाती है, जहां ये कुरजां नवजात बच्चों को जन्म देती है.इसी के साथ यह गांव एक बार फिर इन पक्षियों की आवाज के बिना वीरान हो जाता है और आने वाले सर्दी के मौसम का इंतजार करता है. इन तालाबों, इन झोंपड़ियों को इन पक्षियों की आवाज के साथ फिर से आबाद होने का बेसब्री से इंतजार है.

Reporter- Arun Harsh

 

 

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