पर्यटन विभाग और प्रशासन की लापरवाही, जैसलमेर किला रो रहा अपनी बदहाली के आंसू
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पर्यटन विभाग और प्रशासन की लापरवाही, जैसलमेर किला रो रहा अपनी बदहाली के आंसू

जोधपुर रियासत के दौरान पहाड़ी पर इस भव्य किले का निर्माण हुआ था. कहा जाता है कि इस किले का निर्माण जोधपुर (Jodhpur) रियासत में उस वक्त होने वाले युद्धों के दौरान एक विकल्प के तौर पर करवाया गया था. 

जिले के कोटड़ा गांव का किला आज भी उपेक्षा का शिकार है

Jaisalmer: राजस्थान के जैसलमेर (Jaisalmer news) का किला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है लेकिन उसकी कलाकृति के रूप में बनाया गया बाड़मेर जिले के कोटड़ा गांव का किला आज भी उपेक्षा का शिकार है. इस ऐतिहासिक किले की न तो पर्यटन विभाग (Tourism Department) सुध ले रहा है और ना ही स्थानीय प्रशासन को इसकी चिंता है. नतीजतन ये किला अपनी बदहाली पर रो रहा है. 

जोधपुर रियासत के दौरान पहाड़ी पर इस भव्य किले का निर्माण हुआ था. कहा जाता है कि इस किले का निर्माण जोधपुर (Jodhpur) रियासत में उस वक्त होने वाले युद्धों के दौरान एक विकल्प के तौर पर करवाया गया था. यह किला शिव उपखंड क्षेत्र का एकमात्र किला है, जहां कई शासकों ने अपनी शासन व्यवस्था को चलाया. करीब आठवीं सदी का यह किला बाड़मेर से लगभग 53 किलोमीटर दूर शिव तहसील के कोटड़ा की पहाड़ी पर स्थित है. 

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रेतीले भूभाग में एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से अलंकृत ये ऐतिहासिक किला बना हुआ है. यहां भी जैसलमेर के किले की तरह बुर्ज का निर्माण करवाया गया था. कोटड़े का किला मारवाड़ के सर्वश्रेण्ठ नव कोटो यानि की दुर्ग में से एक है.  कोटड़ा की गिनती मण्डोर, आबू, जालोर, बाड़मेर, परकारां, जैसलमेर, अजमेर और मारु के किलो के साथ की जाती है. 

बाड़मेर जिले की ऐतिहासिक धरा पर जहां किराडू, खेड़ जूना गोहणा भाखर जैसे पुरात्तव स्थल है. वहीं एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से अंलकृत ये कोटड़ा किला है. इस किले के चारो ओर बड़ी बड़ी आठ बुर्जे बनी हुई है. इन बुर्जो के बीच बीच में ऊंची दीवारो के बीच कई महल और मकान है. बुर्जो व मध्य स्थित दीवारो में दुमनो से मुकाबले हेतु मोर्चे बने हुए है. कोटड़े के किले में एक कलात्मक झरोखा है जिसे स्थानिय भाषा में मेडी कहते है. मेडी भी जीणा शीर्ण अवस्था में है. राठौड़ो का आधिपत्य होने के कारण आज भी यहां राठौड़ों की कोटड़िया विख्यात है. 

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इस किले को बनाने की प्रेरणा जैसलमेर के सोनार किले से मिली है. इस किले को भारी चट्टानों को काट कर सोनार किले कि तरह बनाने का अद्भुत प्रयास किया गया है. किले के स्वामित्व के सम्बन्ध में एक शिलालेख मिलता है, जिसमें विक्रम सम्वत 123 विद्यमान है, जबकि अन्तिम अक्षर लुप्त है. इससे आभास होता है कि किला विक्रम संवत 1230 से 1239 तक अविध में आसलदेव ने कराया था. जाहिर है इसे एतिहासिक धरोहर के तौर पर सरंक्षित होना चाहिए था. राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन बदहाली के आंसू रो रहे कोटड़ा के इस किले को पर्यटन विभाग के मानचित्र में शामिल करवाकर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करता है तो आने वाले दिनों में यहां विदेशी सैलानी भी देखने को मिल सकते हैं जो कि विरासत को सहेजने के साथ-साथ पर्यटन से होने वाली कमाई का अच्छा जरिया बन सकता है.

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