Samraat Mihir Bhoj : उत्तर प्रदेश के दादारी में हुए विवाद के बाद अब राजस्थान के जोधपुर में सम्राट मिहिर भोज के नाम के आगे से गुर्जर हटाने को लेकर विवाद शुरू हो गया है. दरअसल गुर्जर समाज,सम्राट मिहिर भोज को गुर्जरों के वंशज बताता है तो वहीं राजपूत समाज अपना. 


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हालांकि जानकारों का मानना है कि छत्रिय वंश, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, अग्निवंशी, ऋषिवंशी, भौमवंशी और नागवंशी, समेत कुछ और वंशों में बंटा हुआ है. और गुर्जर समुदाय भी सूर्यवंशी हैं. भारत में गुर्जर, जाट, पटेल, पाटिदार, मीणा, राजपूत, चौहान, प्रतिहार, सोलंकी, पाल, चंदेल, मराठा, चालुक्य, तोमर सभी का संबंध छत्रिय वंश से हैं.


कौन थे सम्राट मिहिर भोज
सम्राट मिहिर भोज कन्नौज के सम्राट थे. उन्होंने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक यानि की 49 साल तक शासन किया था और अपने साम्राज्य को मुल्तान से पश्चिम बंगाल में गुर्जरपुर तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैलाया.  ये वो समय था, जब अरब के इस्लामी कट्टरपंथियों ने साम्राज्य विस्तार करना शुरू कर दिया था. और सिंधु के पार भारतवर्ष पर इन लोगों की नजर थी. 


कहां तक फैला था साम्राज्य
अपने वीरता के लिए प्रसिद्ध सम्राट मिहिर भोज के राज्य का विस्तार वर्तमान मुल्तान से लेकर बंगाल तक और कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक कर लिया था. उनके राज्य की सीमाओं को आज के परिपेक्ष्य में देखें तो वर्तमान भारत के हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और ओडिशा तक इसका विस्तार था. 


भगवान महाकाल के भक्त
भगवान महाकाल के परम भक्त सम्राट मिहिर भोज के शासन काल में सोने चांदी के सिक्के चला करते थे. सम्राट को आदिवराह की उपाधि भी मिली थी. कहा जाता है कि उस समय सिर्फ कन्नौज में ही 7 किले और 10 हजार मंदिर थे. इस समय जनता सुखी थी और सम्राट के न्याय की आभारी थी.


गुर्जर और राजपूतों के बीच विवाद
गुर्जर और राजपूत दोनों समाज सम्राट मिहिर भोज को अपने वंश का बताते हैं. इस विवाद पर इतिहासकारों के मत अलग अलग हैं. एक थ्योरी ये हैं कि पृथ्वीराज रासो में अग्निकुंड में चार राजपूत कुलों के बारें में बताया गया हैं. जिसमें परमार, प्रतिहार, चौहान और चालुक्य शामिल है.


इतिहासकार आरजी भंडारकर इन चारों की उत्पत्ति गुर्जर कुल से बताते हैं. तो  केसी श्रीवास्तव लिखते हैं कि राजपूत न पूरी तरह से विदेशी थे और न पूरी तरह से भारतीय ही थे. इनका मानना है कि ये दोनों ही मत अतिवादी माने जा सकते हैं. भारतीय वर्ण व्यवस्था में विदेशी जातियों को स्थान भी दिया गया था. 


इतिहासकारों का तर्क हैं कि कई विदेशियों ने भारतीय राजवंशों में विवाह किया.  इससे उनमें विदेशी खून का मिश्रण मिलता भी है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर रह चुके हरबंस मुखिया कहते हैं कि आज के जो गूजर या गुज्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा होगा और  गुर्जर प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था.


राजस्थान के जोधपुर में सम्राट मिहिर भोज के नाम से हटाया गुर्जर, गुर्जर समाज में गुस्सा