आशीष चौहान,जययपुर : कहते हैं गली मुहल्ले के चौकीदार अगर अपना काम ईमानदारी से करें तो, मंदिर की सीढ़ियों से एक चप्पल कोई गायब नहीं कर सकता फिर राजनितिक इच्छा शक्ति तो बहुत बड़ी चीज़ है , देश में हर साल दिव्यांगों के लिए कई बड़े बड़े ऐलान किये जाते है , उम्मीदें दिखाई और जगाई जाती है लेकिन जमीनी हक़ीक़त कुछ और ही कहती है शायद इसीलिए कोर्ट ने सरकारों को एक बार फिर नींद से जगाने की कोशिस की है. अदालत के एक आदेश में राजस्थान और सूबे के सारे जिलों में दिव्यांगजनों के लिए सभी धार्मिक स्थलों और सिनेमाघरों और विधानसभा में रैंप बनवाने का फैसला सुनाया है. इस संबंध में न्यायालय ने देवस्थान सचिव,गृह विभाग सचिव से रिपोर्ट मांगी है.
आपको बता दें ,की प्रदेश में दिव्यांगों की संख्या 16 लाख है,लेकिन अभी भी अधिकतर सिनेमाघरों और धार्मिक स्थलों पर रैंप की कोई व्यवस्था नहीं है. जबकि नियमों के अनुसार सभी सिनेमाघरों और धार्मिक स्थलों पर रैंप होने चाहिए थे
कोर्ट ने यह फैसला दिव्यांग अधिकार महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत भाई गोयल की याचिका पर लिया है इस याचिका में सुगम्य भारत अभियान का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस अभियान के तहत जयपुर के 100 प्रमुख सरकारी भवनों को दिव्यांगजनों के लिए फ्रैडंली बनाने का काम किया जाना था इसके अलावा राज्य सरकार ने सभी पंचायतों और आगंनबाडी केंद्रों पर रैंप बनाने का फैसला लिया था लेकिन फैसला जमीन पर नहीं उतर पाया. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 45 में धार्मिक स्थलों, सिनेमा हॉल को दिव्यांग फ्रैंडली बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया था लेकिन हालात इसके बिलकुल विपरीत और उलट थी.
याचिकाकर्ता हेमंतभाई गोयल का कहना है कि अधिकतर सिनेमाघरों और धार्मिक स्थलों पर रैंप की कोई व्यवस्था नहीं है.ऐसे में दिव्यांगों को हर रोज़ परेशानी का सामना करना पड़ता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग और विशेषयोग्यजन आयुक्त की तरफ से अब तक इस संबंध में क्या-क्या कार्रवाई की गयी है उसकी रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने के निर्देश दिए हैं इसके साथ ही दिव्यांगों को किसी तरह की बाधा और परेशानी न हो इसके भी निर्देश दिए है बहरहाल , नीतियां , पॉलिसी, हर साल दर साल केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से बनाई जाती रही है लेकिन वो सिर्फ,कागजों के पन्नों तक सिमट कर रह जाते हैं, और हर बार की तरह नेताओं की बाट जोहते दिखते है ऐसे में हर बार की तरह इसबार भी कोर्ट दिव्यांगों के लिए लाठी बनकर सामने आयी .ऐसे में अब देखना यह होगा कि सरकार कोर्ट के आदेश के बाद कितनी तेज गति से कार्रवाई करती है.