छात्रवृत्ति के पैसों से 300 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे कोटा के कलश और देवेश
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छात्रवृत्ति के पैसों से 300 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे कोटा के कलश और देवेश

 कोचिंग कैपिटल कोटा  न केवल छात्रों का करियर (Students Career) बना रही है बल्कि उन्हें बेहतर इंसान बनाने की कोशिश भी कर रही है. इस प्रयास का असर समाज में भी दिखाई दे रहा है, यहां पढ़ने वाले छात्र ढाणी के सुदूर गांव में संस्कारों से सीख लेकर सामाजिक कार्य कर रहे हैं.

फन लर्निंग यूथ ऑर्गनाइजेशन (फ्लाई)

Kota: कोचिंग कैपिटल कोटा न केवल छात्रों का करियर (Students Career) बना रही है बल्कि उन्हें बेहतर इंसान बनाने की कोशिश भी कर रही है. इस प्रयास का असर समाज में भी दिखाई दे रहा है, यहां पढ़ने वाले छात्र ढाणी के सुदूर गांव में संस्कारों से सीख लेकर सामाजिक कार्य कर रहे हैं. ऐसे सेवा संस्कारों का एक उदाहरण फन लर्निंग यूथ ऑर्गनाइजेशन (फ्लाई) (Fun Learning Youth Organization) है, जिसे कोटा में पढ़ने वाले दो भाइयों और बहनों ने शुरू किया है. बहन कलश 11वीं कक्षा में पढ़कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही है, जबकि भाई देवेश भी एलन के पीएनसीएफ में कक्षा 9 में पढ़ रहा है. दोनों पिछले तीन साल से कोटा में पढ़ रहे हैं.

अहम बात यह है कि आपके संगठन से करीब 15 लोग जुड़े हैं और करीब 300 गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा मुहैया करा रहे हैं. कलश और देवेश अपनी छात्रवृत्ति के पैसे से इन बच्चों के लिए स्टेशनरी और किताबों की व्यवस्था करते हैं. 16 साल के कलश और 14 साल के देवेश ने अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परीक्षाओं में 150 गोल्ड मेडल और 200 से ज्यादा सर्टिफिकेट हासिल किए हैं.इसके अलावा रजत और कांस्य पदक भी हैं.  हाल ही में देवेश ने आईजेएसओ (IJSO) में गोल्ड मेडल (Gold Medal) हासिल कर देश का मान बढ़ाया है.

उन्हें प्रधानमंत्री के बाल शक्ति पुरस्कार (Bal Shakti Puraskar) से भी सम्मानित किया गया था. पिता पंकज भैया सिविल इंजीनियर हैं और मां पल्लवी भैया आर्किटेक्ट हैं. मां कोटा में रहकर ही बच्चों के साथ ऑनलाइन काम करती हैं.कोटा में पढ़ने वाले कलश और देवेश ने कहा कि कोटा के एलन में प्रार्थना और समर्पण की संस्कृति है.यहां बच्चों को अच्छा डॉक्टर और इंजीनियर बनने के साथ-साथ अच्छा इंसान बनना सिखाया जाता है. कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान यह देखने को भी मिला. यहां जब परेशान छात्रों की मदद की गई तो सभी ने एक दूसरे का साथ दिया.

कोविड के दौरान ही ऐसे कई ऐसे बच्चे भी थे, जिनके माता-पिता का कोरोना से निधन हो गया. घर में आजीविका का संकट खड़ा होने से पढ़ाई तक छूट गई या कुछ परिवार ऐसे थे, जिनके बच्चों की पढ़ाई बाधित हो गई. यह देखकर ही हमने बच्चों का दर्द समझा और अपनी क्षमतानुसार बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. अगस्त 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान यह शुरुआत की गई. घर की पार्किंग में, बगीचे में क्लास लेते थे. काम जारी रखते हुए देवेश और कलश विदेश में भी सेवा देने लगे हैं. क्रिएटिंग फ्लाई वेबसाइट रवांडा, अफ्रीका में छात्रों को पढ़ा रही है.

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ऐसे हुई शुरुआत
कलश ने कहा कि लॉकडाउन के बाद हम महाराष्ट्र के जलगांव में अपने घर लौट आए. वहां हमने देखा कि हमारी मेहनती बाई के भाई राहुल और उनकी बेटी पूजा को स्कूल बंद होने के कारण पढ़ने में परेशानी हो रही थी. घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और उसके भाई राहुल ने स्कूल छोड़ दिया था और मामूली मजदूरी के लिए कहीं काम करना शुरू कर दिया था. मैंने उन्हें पढ़ना शुरू किया. कुछ ही दिनों में वे अन्य बच्चों को भी लाने लगे. लॉकडाउन था लेकिन हम सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग ग्रुप में बच्चों को पढ़ाते थे.

छात्रवृत्ति के पैसे से खर्च चलाया
कलश और देवेश की मां पल्लवी भैया ने बताया कि जो बच्चे पढ़ने आते थे वे गरीब परिवार से थे. ऐसे में उनकी स्टेशनरी की व्यवस्था भी इन दोनों ने की. कलश-देवेश दोनों ही पढ़ाई में होशियार हैं, दोनों ने कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीते हैं और 8 लाख रुपये तक की स्कॉलरशिप हासिल की है. कलश और देवकी को एलन टैलेंटेक्स में भी स्कॉलरशिप मिल चुकी है. इन पैसों का उपयोग उन्होंने स्टेशनरी लाने में किया. वे बच्चों को किताबें, कॉपी और पेन समेत अन्य जरूरी सामग्री मुहैया कराते थे.

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अब तक लगभग 300 छात्र
कलश और दिनेश ने बताया कि पहले लॉकडाउन के समय बच्चों को पढ़ाना शुरु किया था. एक बच्चे के साथ जो शुरू हुआ वह अब एक एनजीओ का रूप ले चुका है, जिसका नाम 'फन एंड लर्निंग फॉर यंग पीपल' है. जिसके माध्यम से अब तक 300 से अधिक बच्चों को पढ़ाया जा चुका है. दोस्त भी हमारे साथ जुड़ गए हैं, 10 स्थायी और 4 स्वयंसेवक हैं. अभी हम दोनों कोटा आए हैं इसलिए पीछे से एनजीओ को दोस्त ही चलाते हैं.

ये कोटा की ताकत
यही कोटा की असली ताकत है कि छात्रों में शिक्षा के साथ-साथ मूल्यों का भी विकास होना चाहिए ताकि वे अच्छे डॉक्टर और इंजीनियर बनकर समाज और देश के लिए अपना योगदान दे सकें. कमी से जूझ रहे लोगों की मदद करना. एलन इसके लिए हमेशा तैयार रहते हैं और कोटा में हेल्पिंग कल्चर है जो बच्चों को बहुत कुछ सिखाता है.

Reporter: Himanshu Mittal

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