52 शक्तिपीठ में से एक है दधिमती मंदिर, जानिए चार कुंडों की अलौकिक कहानी
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52 शक्तिपीठ में से एक है दधिमती मंदिर, जानिए चार कुंडों की अलौकिक कहानी

राजस्थान को भक्ति और शक्ति की धरती कहा जाता है यहां एक से बढ़कर एक कई ऐसे चमत्कारी स्थान है. नागौर जिले के जायल कस्बे के गोठ मांगलोद गांव में दधिमती माता मंदिर स्थित है, इसकी गिनती उतरी भारत के पुराने मंदिर में होती है.

52 शक्तिपीठ में से एक है दधिमती मंदिर

Jayal: राजस्थान को भक्ति और शक्ति की धरती कहा जाता है यहां एक से बढ़कर एक कई ऐसे चमत्कारी स्थान है. नागौर जिले के जायल कस्बे के गोठ मांगलोद गांव में दधिमती माता मंदिर स्थित है, इसकी गिनती उतरी भारत के पुराने मंदिर में होती है.

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दधिमती माता मंदिर 52 शक्तिपीठ में से से एक है. चैत्र माह के नवरात्रि में लगने वाले मेले में यहां सम्पूर्ण भारत से श्रद्धालू पहुचते हैं. भारत का एक मात्र दधिमती माता मंदिर जहां भक्तो द्वारा प्रतिदिन माता के दूध से अभिषेक होता है. जायल उपखण्ड से करीब 13 किलोमीटर दूर गोठ मांगलोद गांव स्तिथ दधिमती माता मंदिर में चैत्र माह के नवरात्रि और अश्विन माह के नवरात्रि में दो बार विशाल मेला लगता है. माता के विशेष चमत्कार के चलते दधिमती मंदिर देशभर के लोगों की प्रमुख आस्था का केंद्र है.
मंदिर का इतिहास 2000 साल से भी पुराना बताया जाता है.

दधिमती मंदिर से जुड़ी कई ऐसी मान्यताएं हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है. मंदिर परिसर में खंभे और गुंबद छीतर के पत्थरों से बने हैं, जिनपर बारीक कारीगरी की गई है. मंदिर परिसर के गुंबद की एक 11 और खास बात यह है कि इस पर रामायण से जुड़े प्रसंगों को पत्थर पर बारीक कारीगरी के माध्यम से उकेरा गया है. 

नवरात्रि मेले में सप्तमी को माता की सवारी निकलती है, जिसमें सम्पूर्ण प्रदेश से लाखों की तादाद में भीड़ जुटती है. मंदिर परिसर के पास बने कपाल कुण्ड की एक अलग ही विशेषता है, जो कभी ना सूखने वाला कपाल कुंड है. मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार कपाल कुंड में सात बावड़ियां है, जिनमें भूगर्भ का पानी लगातार चलता रहता है. यहीं कारण है कि यहां कभी पानी सूखता नहीं है.

नवरात्रि में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है. इस पौराणिक स्थल को राजा मांधाता और उनकी तपस्या से भी जोड़ते हैं और बताते हैं कि राजा मांधाता ने ही यहां कपालकुंड बनवाया था. यज्ञ के लिए इसी का जल इस्तेमाल किया था. कपाल कुंड का महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं है और यहां स्नान करने का भी अपना अलग ही महत्व यहां अयोध्या के राजा मान्धाता ने यज्ञ किया था.

इसके लिए चार हवन कुंड बनाए गए थे. राजा ने आह्वान करके चारों कुंडों में चार नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा का जल उत्पन्न किया था. सरोवर के कुडों के पानी का स्वाद अलग-अलग बताया जाता है. मंदिर परिसर में भक्तो के ठहरने के लिए मंदिर में ही व्यवस्था की जाती है. परिसर में करीब 250 कमरे बनाए गए, जहां बाहर से आए श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था की जाती है. राज्य सरकार द्वारा वर्तमान बजट सत्र में इस मंदिर को पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है.

Reporter- Damodar Inaniya

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