राजाराम को औरंगजेब की अधीनता स्वीकार नहीं थी. वे अपने कुल और रियासत के सरदार गोकुल जाट का बदला लेने के लिए दृढ़ संकल्पित थे, जिन्हें औरंगजेब ने बेहद क्रूर तरीके से मौत के घाट उतारा था. पंद्रह साल बाद, जब वे सीधे औरंगजेब से टकराने में असमर्थ थे और उनके पास पर्याप्त सेना नहीं थी, तब उन्होंने रणनीति बदली. उन्होंने औरंगजेब के कई अधिकारियों को युद्ध में पराजित किया और गुस्से में आकर आगरा के बाहरी क्षेत्र में स्थित अकबर के मकबरे सिकंदरा पर हमला बोला. उन्होंने मकबरे को लूटा और अकबर की हड्डियों को कब्र से निकालकर आग के हवाले कर दिया. इस घटना से स्पष्ट है कि हालांकि वे कमजोर थे, उनके दिल में बदले की प्रचंड ज्वाला धधक रही थी. औरंगजेब के शासन में ऐसी आग लाखों दिलों में सुलग रही थी, लेकिन राजाराम जैसी साहसिक हिम्मत हर किसी में नहीं थी.