आशीष चौहान/टोंक: बीसलपुर बांध में पानी के घटते जलस्तर को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि जयपुर समेत चार जिलों में जलसंकट मंडरा सकता है. बांध में 20 फीसदी पानी ही बचा है. बचे हुए पानी में से भी रोजाना 1 सेमी जलस्तर रोजाना वाष्पीकरण के कारण उड रहा है. लेकिन जलदाय विभाग बांध के वाष्पीकरण को रोकने के लिए तकनीक का सहारा लेगी. जल संरक्षण के लिए राजस्थान के जलदाय विभाग ने एक पहल शुरू कर सकती है. बांध में केमिकल की परत बिछाकर या फिर हल्की गेंद डालकर वाष्पीकरण को कम किया जाएगा. हालांकि इस पर दो से पांच करोड़ तक खर्च होने की संभावना जताई है. जलदाय विभाग को दिए गए प्रजटेंशन में कपंनियों ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया से 35 से 45 फीसदी पानी की बचत हो सकती है.
बीसलपुर बांध से जयपुर, अजमेर, टोंक व नागौर के 21 शहर और करीब 2800 से ज्यादा गांव की 88 लाख आबादी को पेयजल सप्लाई हो रही है. चीफ इंजीनियर आईडी खान ने का कहना है कि बांध को अगले मानसून तक सप्लाई से जोड़े रखने के लिए पानी की बचत की जाएगी. पानी का वाष्पीकरण कम करने के विकल्प पर मंथन हो रहा है. कैमिकल छिड़काव का प्रजेंटेशन हो चुका है. पानी की सतह पर गेंदों का जाल बिछाने की संभावना भी देखी जा रही है. नए ट्यूबवेल जोड़ने के साथ ही बांध से पानी कम लेंगे.चीफ इंजीनियर का कहना है कि कैमिकल के छिड़काव के बाद पानी बिल्कुल शुद्ध रहेगा.
बांध के पूरे भराव होने पर हर साल करीब 8 टीएमसी पानी का वाष्पीकरण हो जाता है. लेकिन इस बार बांध का जल स्तर 310.23 आरएल मीटर ही पहुंचा है. ऐसे में इस साल करीब 6 टीएमसी पानी वाष्प से उड़ जाएगा. ऐसे में बांध पर एक विशेष कैमिकल का छिड़काव कर एक परत बनाई जाएगी ताकि सूरज की तेज किरणों की ऊर्जा से पानी भाप बन कम नहीं हो. इसके लिए पुणे की एक कंपनी ने जलदाय विभाग को प्रजेंटेशन भी दिया है. इस पर तीन से पांच करोड़ का खर्चा होने की संभावना है. यह कंपनी एक विशेष कैमिकल बांध पर छिड़ककर पानी बचाने का दावा कर रही है.
ये तकनीक बांधों में भरे पानी के ज्यादा वाष्पीकरण पर अपनाई जाती है. विभाग के इंजीनियर बांध के जलस्तर पर हल्के वजन की गेंद छोड़ कर एक जाल बनाने के विकल्प पर भी विचार कर रहे है. इसके लिए दुनिया भर के बांधों में हुए काम की स्टडी करवाई जा रही है. इसके साथ ही गेंद का जाल बिछाने वाली कंपनियों से कोटेशन भी मांगे जा रहे है. इसके बाद प्रजेंटेशन लेकर फैसला होगा.
ये तकनीक सबसे सस्ती और आसान मानी जाती है. इसके बेहद आसान तरीके से पानी को बाहर निकाला जा सकता है. बीसलपुर बांध का जल स्तर 309 आरएल मीटर से भी कम हो गया है. बांध में अब केवल 7.916 टीएमसी यानि 20.50 फीसदी पानी बचा है. ऐसे में चार जिलों में पानी का संकट खत्म करने के लिए जलदाय विभाग लगातार इसी प्रयास में जुटा है कि किसी ना किसी तरीके से पानी का सरंक्षण हो सके.
राजस्थान में सरकारी स्तर पर पहली बार इस तरह की तकनीक इस्तेमाल होगी. जल संरक्षण के लिए पहले निजी कंपनियों की ओर से चितौडगढ के घोसुंधा और उदयपुर के टीडी बांध में इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा अन्य राज्यों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया. मुंबई के तुलसी बांध में इस प्रोजेक्ट के जरिए 45 फीसदी पानी के सरंक्षण का दावा किया गया. वहीं महाराष्ट्र के बिन्दुसरा,मुर्बाद और निलोमा बांध में इस तकनीक के जरिए जल सरंक्षण किया गया.
लेकिन प्रकृति के खिलाफ जाकर पानी के सरंक्षण से सवाल उठने लगे है. पर्यावरणविद सूरज सोनी का कहना है यह प्रकृति के साथ खिलवाड़ है. इस प्रकिया के बजाय यदि भूजल स्तर बढ़ाया जाए तो पानी का जलस्तर बढाकर पानी का संरक्षण किया जा सकता है. जिससे पानी भी शुद्ध रहेगा और प्रकृति के साथ खिलवाड भी नहीं होगा.