Special Story: आदिवासी समुदाय में पूर्वजों का अनूठा सम्मान, यहां मरने के बाद भगवान बन जाते हैं इंसान
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Special Story: आदिवासी समुदाय में पूर्वजों का अनूठा सम्मान, यहां मरने के बाद भगवान बन जाते हैं इंसान

आदिवासी समुदाय में पूर्वजों का अनूठा सम्मान होता है. प्रतापगढ़-बांसवाड़ा के आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा 'पेन शक्ति' केंद्र बेणेश्वर को माना गया है. 

 

Special Story: आदिवासी समुदाय में पूर्वजों का अनूठा सम्मान, यहां मरने के बाद भगवान बन जाते हैं इंसान

Pratapgarh: जिले के आदिवासी अंचल में पुरखों की पूजा का प्रचलन सदियों से चला रहा है. आदिवासी समुदाय के लोग अपने कुलदेवता, कुल मताई, अपने पुरखों देवता की पूजा हर खास और आम काम को करने से पहले करते हैं. आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति और पुरखों की पूजा के बाद ही कोई तीज और त्योहार मनाते हैं. देवी देवताओं के साथ माता-पिता और पूर्वजों की पूजा का इस समुदाय में विशेष महत्व है.

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घर में कोई तीज त्योहार हो या शादी का आयोजन या कोई भी सामाजिक कार्यक्रम आदिवासी समुदाय में पुरखों की पूजा किए बिना हर तीज त्योहार अधूरे रहते हैं. पुरखों के साथ प्रकृति की पूजा को भी आदिवासी समुदाय सदियों से करते आ रहे  हैं. इसीलिए आदिवासी समुदाय में जल और जंगल का नारा सबसे अधिक प्रचलित है.

पानी में विसर्जित करने के विधान को कहा जाता है 'पेन शक्ति'

आदिवासी समुदाय में किसी भी व्यक्ति की जब मौत हो जाती है तो समाज के लोग और परिवार के सदस्य उन्हें अपने पूर्वजों में शामिल कर लेते हैं. इस परंपरा के अनुसार आदिवासी समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की आत्मा को ही देवी-देवता मानते और उनकी पूजा करते हैं. आदिवासी समुदाय के अनुसार धरती पर ही स्वर्ग और नर्क दोनों को मान्यता दी जाती है. आदिवासी समुदाय में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसकी अस्थियों को पानी में विसर्जित करने के विधान को 'पेन शक्ति' कहा जाता है.

प्रतापगढ़-बांसवाड़ा के आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा 'पेन शक्ति' केंद्र बेणेश्वर को माना गया है. आदिवासी समुदाय घर के माता-पिता और अन्य पूर्वजों को देवता के रूप में थाना स्थापित कर उनकी पूजा करता है. आज के इस युग में माता-पिता और बुजुर्गों को पीड़ा देने वाले लोगों को यह समुदाय एक बड़ी सीख देता है. पूर्वजों को भगवान बना पूजने का यह अनूठा काम केवल आदिवासी समुदाय ही करता है. बुजुर्गों की जीते जी सेवा के साथ मरने के बाद भी उन्हें भगवान बना पूछने का यह अनूठा काम सिर्फ आदिवासी समुदाय में ही देखा जा सकता है. आदिवासी समुदाय साल में दो बार अपने पितृ देवताओं की विशेष पूजा भी करता है. यह पूजा नवरात्रि में की जाती है. आदिवासी समाज के लोग नौ दिन व्रत रखकर गांव के सामूहिक देवरे पर जा कर पूजा पाठ करते हैं.

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प्रकृति की पूजा का भी खास महत्व 

किसी भी व्यक्ति को उसकी मृत्यु के बाद जो पूर्वजों में शामिल किया जाता है तो उसके लिए भी विशेष प्रकार की प्रतिमाओं का निर्माण कर उन्हें भगवान का रूप दिया जाता है. महिला और पुरुष की पहचान करने के लिए सफेद रंग आदमी का प्रतीक है और लाल रंग महिलाओं का प्रतीक है. हरा रंग प्रकृति का प्रतीक होता है. आदिवासी समुदाय में पूर्वजों के साथ प्रकृति की पूजा का भी इस दौरान खासा महत्व रहता है. इनमें पेड़ पौधे, चांद, तारे, सूर्य, हवा, पानी नदियों, पर्वत आदि की पूजा उपासना आदिवासी समुदाय में की जाती है.

Report- Vivek Upadhyay

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