चंद्रयान-3

चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 के पहुंचते ही दुनिया में भारत चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन चुका है.

Zee Rajasthan Web Team
Aug 23, 2023

चंद्रयान-3 का मकसद

चंद्रयान-3 का मकसद, चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना है.

भारत कई देशों की बराबरी में

चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद भारत इस मामले में रूस, अमेरिका और चीन जैसे देशों की बराबरी में आ गया है.

चंद्रयान-3 का लॉन्च

चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर 14 जुलाई को हुआ था. इसको चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में 35 दिन लगे हैं.

क्यों गोले आकार का नहीं है चांद

हिन्दू पंचांग के मुताबिक, पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बिलकुल गोल नज़र आता है. लेकिन एक उपग्रह के तौर पर चांद किसी गेंद की तरह गोल आकार का नहीं है. चांद अंडाकार होता है.

कभी पूरा नहीं दिखता है चांद

चांद का 41 प्रतिशत हिस्सा धरती से दूर होने की वजह से नज़र नहीं आता है. अगर आप अंतरिक्ष में जाते हैं और उस 41 प्रतिशत क्षेत्र में खड़े हो जाएं, तो आपको चांद से धरती दिखाई नहीं देगी.

लैंड कराना क्यों है कठिन

चांद के साउथ पोल पर लैंड करना किसी भी लैंडर के लिए बहुत मुश्किल है. इस क्षेत्र में कई बड़े गड्ढे हैं. साथ ही, इस इलाके की ज्यादा जानकारी अबतक नहीं है.

ISRO की अगली योजना

चंद्रयान-3 मिशन के बाद इसरो का अगला बड़ा प्रोजेक्ट आदित्य एल 1 मिशन, है. यह अंतरिक्ष में जाकर सूर्य की स्टडी करेगा. इसमें सूर्य से पैदा किए गए लैगरेंज बिंदु 1 आसपास अंतरिक्ष के मौसम का अध्ययन करेगा.

रहस्यमयी साउथ पोल

वैज्ञानिक अभी तक बेहद रहस्यमयी मानते हैं. नासा के मुताबिक, इस क्षेत्र में ऐसे कई गहरे गड्ढे और पर्वत हैं जिनकी छांव वाली जमीन पर अरबों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है.

ज्वालामुखी विस्फोट का ब्लू मून से संबंध

चंद्रमा से जुड़ा 'ब्लू मून' शब्द साल 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकाटोआ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उपयोग में आया है. इस घटना को पृथ्वी के इतिहास में बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों में गिना जाता है.

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