बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर दूर एक मंदिर स्थित है, जो चूहों वाली माता, चूहों का मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर में लगभग 25 हजार चूहें रहते हैं.
जगदंबा माता का अवतार
यह मंदिर माता करणी का है, जो जगदंबा माता का अवतार कही जाती हैं. कहते हैं कि मां करणी का जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था.
शादी
इनका बचपन का नाम रिघुबाई था, जिनकी शादी साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी.
छोटी बहन गुलाब
इसके बाद रिघुबाई ने सांसरिक जीवन छोड़ दिया और उसके बाद उन्होंने अपनी छोटी बहन गुलाब से अपने पति किपोजी चारण की शादी करवा दी.
चमत्कारिक शक्ति
वहीं, खुद माता रानी की भक्ति में लीन हो गई और लोगों की सेवा करने लग गई. इसके बाद चमत्कारिक शक्तियों की वजह से उन्हें करणी माता के नाम से पूजा जाने लगा.
इष्ट देवी की पूजा
कहते हैं कि अभी जिस जगह मंदिर है वहां एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा करती थी. माना जाता है कि माता रानी 151 साल तक जिंदा रहीं.
काले और सफेद चूहें
वहीं, माता रानी के ज्योतिर्लिन होने के बाद उनके भक्तों ने यहां मूर्ति की स्थापना की और पूजा करने लगे. करणी माता के मंदिर में काले और सफेद चूहे हैं, जिनका काफी शुभ माना जाता है.
लक्ष्मण कपिल
कहा जाता है कि एक बार करणी माता की संतान, उनके पति और उनकी बहन का बेटा लक्ष्मण कपिल सरोवर में डूब गए, जिससे उनकी मौत हो गई.
चूहे का रूप
इसके बाद माता रानी ने मृत्यु के देवता यम से लक्ष्मण को जीवित करने की प्रार्थना की. ऐसे में यमराज ने उसे चूहे के रूप में जिंदा किया.
बीस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी
इसके अलावा चूहों को लेकर एक कहानी यह भी बताई जाती है कि एक बार बीस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी देशनोक पर हमला करने आई थी, जिनको माता ने चूहा बना दिया था.
मंगला और संध्या आरती
ये चूहें सुबह पांच बजे मंदिर में होने वाली मंगला आरती और शाम सात बजे संध्या आरती के वक्त अपने बिलों से खुद बाहर आ जाते हैं.
डिस्क्लेमर- ये लेख सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित है जिसकी ज़ी मीडिया पुष्टि नहीं करता है.