शिव पुराण के अनुसार उज्जयिनी में चंद्रसेन राजा शासन करता था, जो शिव भक्त था और भगवान शिव के गणों में से एक मणिभद्र से उसकी दोस्ती थी.
एक दिन मणिभद्र ने राजा को एक अमूल्य चिंतामणि दी जिसको पहनते ही, चंद्रसेन का प्रभुत्व बढ़ने लगा और यश और कीर्ति दूर दूर तक फैल गयी
दूसरे राजाओं ने चंद्रसेन पर उस मणि को पाने के लिए हमला कर दिया, भागकर महाकाल की शरण में चंद्रसेन आ गया.
चंद्रसेन में महाकाल की तपस्या करनी शुरू कर दी. उसी इलाके में एक विधवा अपने बच्चे के साथ पहुंची.
विधवा के बच्चा भी राजा के साथी ही शिवलिंग की पूजा करने लगा. विधवा ने जब अपने बेटे को खाने के लिए पुकारा तो वो नहीं आया.
गुस्से में महिला ने शिव पूजा की सारी सामग्री को फेंक दिया. जहां पूजा सामग्री गिरी वहीं एक सुंदर मंदिर बन गया.
ये महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग था. राजा चंद्रसेन ने भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए.
जो भी चंद्रसेन के दुश्मन राजा थे सभी युद्ध छोड़कर महाकाल की शरण में आ गये.
तभी से उज्जयिनी में महाकाल निवास करते हैं.
जैसे काशी में बाबा विश्वनाथ हैं वैसे ही उज्जैन में राजा भगवान महाकाल विराजते हैं.
सावन में महाकालेश्वर में भगवान भोलेनाथ का सुंदर श्रृंगार होता है.
जिसके दर्शन करने लोग दूर दूर से उज्जैन पहुंचते हैं और लंबी लाइन में लगने के बाद दर्शन कर पाते हैं.