राजस्थान की इन जगहों पर आज भी मातम मनाने आती हैं रुदाली
Sneha Aggarwal
Mar 28, 2024
रोने का काम
पहले पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर और जोधपुर के राजे-रजवाड़ों और राजपूत, जमींदारों के घरों में पुरुष सदस्य की मौत पर रोने का काम करने के लिए रुदाली आती थी.
फिल्म 'रुदाली'
रुदालियों की नाम जब भी सामने आता है तो लेखिका महाश्वेता देवी के कथानक पर साल 1993 में कल्पना लाजमी निर्देशित फिल्म 'रुदाली' याद आ जाती है.
मातम
'रुदाली' फिल्म के मुताबिक, रुदाली काले कपड़ों में औरतें के बीच बैठकर जोर-जोर से छाती पीटती और मातम मनाती हैं.
12 दिन
यह मातम मौत के 12 दिन तक चलता है.
एक्टिंग
कहा जाता है कि इसमें जितनी एक्टिंग होती है, उतनी ही इस काम की चर्चा भी लोगों के बीच होती है.
शान्तिपूर्वक
लेकिन अब लोग पढ़े-लिखे होने लगे है, जिसके चलते अब शान्तिपूर्वक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना लेगा है.
अहमियत
इसके चलते अब रुदालियों की अहमियत कम होती जा रही है. कुछ लोगों को कहना है कि अब रुदालियां नहीं हैं.
आज भी यहां हैं रुदाली
लेकिन आज भी जोधपुर के शेरगढ़ व पाटोदी, बाड़मेर के छीतर का पार, कोटड़ा, चुली व फतेहगढ़ और जैसलमेर के रामदेवरा व पोकरण जैसे इलाकों में आज भी रुदालियां हैं. हालांकि अब इनका काम और दायरा काफी सिमट गया है.
पहले जैसी बात
इस कारण यह है कि अब राजपूत जमींदारों में भी शांति से मातम मनाया जाने लगा है. अब पहले जैसी बात नहीं रही है.