वृंदावन की विधवाओं ने मनाया रक्षाबंधन का त्यौहार
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वृंदावन की विधवाओं ने मनाया रक्षाबंधन का त्यौहार

समाज की रूढ़ियों की जंजीरों को तोड़ते हुए वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं और राजस्थान के अलवर और टोंक जिलों में मैला ढोने की लानत से मुक्त कराई गई महिलाओं ने संस्कृत के विद्वानों को राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्यौहार बनाया।

नई दिल्ली : समाज की रूढ़ियों की जंजीरों को तोड़ते हुए वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं और राजस्थान के अलवर और टोंक जिलों में मैला ढोने की लानत से मुक्त कराई गई महिलाओं ने संस्कृत के विद्वानों को राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्यौहार बनाया।

समारोह में शामिल कई महिलाओं ने तो एक दशक या उससे भी अधिक समय बाद यह त्यौहार मनाया है। इस दौरान सामाजिक मुख्यधारा की खुशियों को साझा करने का आह्लाद उनके हावभाव से साफ झलक रहा था।

वाराणसी की एक विधवा देवांती ने कहा, ‘‘ मैं वाराणसी में पिछले 11 वर्षों से रह रही हूं और इस दौरान समाज के रूढ़िवादी बंधनों के कारण मुझे त्यौहार मनाने का मौका नहीं मिला। आज मैं यहां आकर इतनी खुश हूं कि बयान नहीं कर सकती हूं।’’ समारोह की शुरूआत महिलाओं द्वारा संस्कृत विद्वानों की कलाइयों पर राखी बांध कर की गई जो वाराणसी से यहां विधवाओं और मैला ढोने से मुक्त कराई गईं महिलाओं के साथ यह त्यौहार मनाने आए थे।

मैला ढोने की प्रथा की पृष्ठभूमि वाली पांच महिलाओं का एक समूह कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी बांधेगा।

मैला ढोने की लानत से मुक्त कराई गई महिलाओं की प्रतिनिधि उषा चौमाल ने कहा, ‘‘ यह पहली बार है जब हमें इस तरह के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है। जब मैं सात साल की थी तो मैंने मैला ढोने के काम में अपनी मां की मदद करना शुरू किया और शादी होने के बाद भी मैं यह काम करती रही। हालांकि मुझे यह कभी पसंद नहीं था।’’ सुलभ इंटरनेशनल द्वारा यहां कंस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित कार्यक्रम में करीब 250 महिलाओं ने शिरकत की। इसका मकसद सदियों पुरानी ‘‘छुआछूत’’ को खत्म करना है।

सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने कहा, ‘‘ हमारा विचार यह है कि हम कैसे भारत की विधावाओं के प्रति लोगों की सोच, व्यवहार, रवैया बदलें, जो किसी की मां, बहन, बेटी, चाची-मौसी आदि हैं। इसी उद्देश्य से हमने यह कार्यक्रम आयोजित किया।’’ 

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