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नई दिल्ली: रेलवे (Indian Railways) में भर्ती को लेकर, छात्रों की नाराज़गी और उनका विरोध प्रदर्शन. छात्रों का ये ग़ुस्सा, विपक्षी दलों के लिए एक नया टूल किट बन गया है. अब इस आन्दोलन को राजनीतिक पार्टियों ने Take-Over कर लिया है और वे अपनी राजनीति के लिए इन युवाओं का इस्तेमाल कर रही हैं. इसी फॉर्मुले के तहत शुक्रवार को बिहार में बन्द बुलाया गया था. अब आप सोचिए, छात्रों का बन्द से क्या लेना देना?
वर्ष 2019 में Railway Recruitment Board ने कुल 35 हज़ार 277 पदों के लिए भर्तियां निकाली थीं. ये सभी नौकरियां, Non Technical Popular Categories में आती हैं. यानी ये वो नौकरियां हैं, जिनमें तकनीकी रूप से योग्य होना ज़रूरी नहीं है. इनमें ग्रेजुएट और अंडर-ग्रेजुएट दोनों पोस्ट शामिल हैं.
यानी लगभग साढ़े 10 हज़ार नौकरियों के लिए 12वीं पास छात्र आवेदन कर सकते थे. वहीं लगभग 25 हज़ार पदों के लिए न्यूनतम योग्यता ग्रेजुएशन थी. इन्हें लेवल 2 से लेवल 6 में बांटा गया था. सरल शब्दों में कहें तो Junior Clerk, Train Assistant, Guard, Senior Time Keeper और स्टेशन मास्टर तक के पदों पर ये नौकरियां निकाली गई थीं.
इन नौकरियों में अधिकतम वेतन 35 हज़ार रुपये महीना होता है. ये पूरा विवाद, तीन बातों के इर्द गिर्द घूमता है.
पहला, इन 35 हज़ार नौकरियों के लिए, रेलवे भर्ती बोर्ड को एक करोड़ 25 लाख से ज्यादा आवेदन मिले थे. यानी इस हिसाब से हर एक नौकरी पर 355 छात्रों के आवेदन, रेलवे भर्ती बोर्ड को मिले. अब इन नौकरियों के लिए जो नोटिफिकेशन जारी किया गया था. उसमें ये कहा गया था कि जितने पदों पर नौकरियां निकाली गई हैं, उनसे 20 गुना ज्यादा छात्रों को परीक्षा में पास किया जाएगा. ताकि दूसरे चरण की परीक्षा में ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को मौक़ा मिल सके.
यहां तक कोई विवाद नहीं था. रेलवे ने इस वादे को पूरा करते हुए 14 और 15 जनवरी को पहले चरण का रिज़ल्ट घोषित किया. उसमें जितना नौकरियां हैं, उससे 20 गुना ज्यादा छात्र पास हुए. लेकिन विवाद, इसकी प्रक्रिया को लेकर हुआ.
दरअसल हुआ ये कि बहुत सारे छात्र ऐसे थे, जिन्होंने एक से ज्यादा नौकरी के लिए आवेदन दिया था. जब पहले चरण की परीक्षा हुई तो इनमें से बहुत सारे छात्रों ने अलग अलग नौकरियों के लिए परीक्षा पास कर ली. लेकिन रेलवे ने ऐसे छात्रों को एक अभ्यार्थी नहीं माना.
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— Zee News (@ZeeNews) January 28, 2022
सरल शब्दों में कहें तो जैसे कोई छात्र, चार पदों के लिए Qualify हुआ है तो चार छात्र पास माने गए. इसी वजह से छात्रों में परीक्षा के नतीजों को लेकर नाराज़गी बढ़ गई. छात्रों का आरोप है कि इस प्रक्रिया की वजह से संख्या में तो ज्यादा छात्र पास हुए, लेकिन वास्तिवकता में ये छात्र 10 प्रतिशत ही हैं. यानी भारतीय रेल अगर 100 छात्रों को पास बता रहा है तो वास्तिवकता में वो 100 छात्र नहीं, बल्कि 10 ही छात्र हैं. उनके मुताबिक इनमें एक छात्र को अलग- अलग पदों पर अलग अलग अभ्यार्थी के रूप में जोड़ा गया है.
नाराज़गी की दूसरी वजह परीक्षा में हुई देरी है. इन नौकरियों के लिए 2019 में आवेदन मांगे गए थे और परीक्षा भी उसी वर्ष सितंबर महीने में होनी थी. इसे कुछ कारणों से टाल दिया गया. बाद में दिसंबर 2020 से जुलाई 2021 के बीच देशभर में इस भर्ती के लिए पहले चरण की परीक्षा हुई. उसी परीक्षा के नतीजे 14 जनवरी 2022 को घोषित किए गए.
अब इसके दूसरे चरण की परीक्षा 15 फरवरी को होनी थी. लेकिन छात्रों के प्रदर्शनों के कारण इस परीक्षा को भी आगे बढ़ा दिया गया है. रेलवे भर्ती बोर्ड का कहना है कि परीक्षा में देरी की वजह है, इन नौकरियों के लिए करोड़ों की संख्या आए आवेदन.
एक और बात, रेलवे बोर्ड ने 24 जनवरी को कहा था कि ग्रुप C की लेवल वन की परीक्षा दो चरणों में होगी. जबकि छात्रों का कहना है कि सरकार दूसरी परीक्षा उन पर थोप रही है क्योंकि नौकरियां निकालते समय इसका ज़िक्र ही नहीं किया गया था. जबकि भारतीय रेल का कहना है कि छात्रों ने नोटिफिकेशन को सही से पढ़ा नहीं, क्योंकि उसमें इस बात का ज़िक्र किया गया था.
नाराज़गी की तीसरी वजह ये है कि, ग्रेजुएट छात्रों ने भी Junior Clerk और टाइम कीपर की नौकरी के लिए आवेदन दिया है. उसकी वजह से 12वीं पास छात्रों को लगता है कि इससे उनको नौकरी मिलने की संभावनाएं कम हो जाएंगी. वो चाहते हैं कि केन्द्र सरकार, ग्रेजुएट छात्रों को ऐसा करने से रोके और अलग अलग श्रेणी बना दी जाएं.
कुल मिला कर कहें तो इस समस्या की जड़ में ये भर्ती नहीं है बल्कि इन नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया है. एक एक नौकरी के लिए लाइन लगा कर खड़े सैकड़ों छात्र हैं. इसी वजह से हाल ही में उत्तर प्रदेश और बिहार में छात्रों ने प्रदर्शन किया था. इस दौरान प्रयागराज में उन पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था और पटना ने उन पर Water कैनन का इस्तेमाल किया था.
हमें लगता है कि देश के छात्रों पर ये बलपूर्वक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. ये छात्र राजनीति के लिए सड़कों पर नहीं थे. ये तो सरकार से नौकरी मांग रहे थे. हालांकि गया में जिस तरह कुछ छात्रों ने ट्रेनों में आग लगाई, वो भी सही नहीं है. हम इन छात्रों से कहना चाहते हैं कि उन्हें ऐसा करने से बचना चाहिए. लेकिन इन छात्रों की बातें और इनकी आवाज़ पूरे देश को सुननी चाहिए.
इस मामले में अब रेलवे ने पांच सदस्यीय कमेटी बना दी है, जो NTPC और लेवल वन की परीक्षा में पास हुए और फ़ेल हुए छात्रों से बात कर, अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी. हालांकि भारतीय रेल ने कहा है कि इस परीक्षा में पास छात्रों की लिस्ट में कोई बदलाव नहीं होगा. इसके अलावा लेवल वन की परीक्षा में पहले चरण के नतीजों के बाद दूसरे चरण की परीक्षा पर भी कमेटी अपना सुझाव देगी. कमेटी की रिपोर्ट आने तक 15 फरवरी 2022 को होने वाली दूसरे चरण की परीक्षा और 23 फरवरी को होने वाली परीक्षा की तारीख़ आगे बढ़ा दी गई है.
अब यहां एक बड़ा सवाल ये है कि भारतीय रेल का मकसद क्या है? ये एक Service Provider है या ये एक Job Provider है?
भारतीय रेल में 12 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. इस लिहाज से ये दुनिया की सातवीं सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाली कंपनी है और भारत की पहली. यानी एक तरह से हमने इसे रोज़गार देने वाली एक विशाल फैक्ट्री में तब्दील कर दिया है. जबकि भारतीय रेल का काम नौकरियां देना नहीं है, बल्कि यात्रियों को परिवहन की अच्छी सुविधा उपलब्ध कराना है. इसका मकसद, देश को मजबूत Rail Connectivity देना है, ताकि व्यापार के लिए भी ये उपयोगी साबित हो. लेकिन अभी ये Job Provider बन कर रह गया है.
अक्सर हमारे देश के लोग देरी से चलने वाली ट्रेनों की शिकायत करते हैं, ट्रेनों में गन्दगी को लेकर नाराज़गी जताते हैं. ये कहते हैं कि भारतीय रेल का कुछ नहीं हो सकता. लेकिन सोचिए, अगर हम भारतीय रेल को केवल रोज़गार देने का माध्यम मान लेंगे तो वो अपने यात्रियों को अच्छी सुविधा कैसे देगी? भारतीय रेल में 12 लाख कर्मचारी तब काम करते हैं, जब Rail Network के मामले में अमेरिका, चीन और Russia जैसे देश हमसे आगे हैं.
पूरी दुनिया में सबसे बड़ा ढाई लाख किलोमीटर लम्बा रेल नेटवर्क अमेरिका के पास है. इसके बाद चीन में एक लाख किलोमीटर, Russia में 85 हज़ार 500 किलोमीटर और भारत में 67 हज़ार 956 किलोमीटर लम्बा रेल नेटवर्क है. इसके बावजूद इन देशों के रेलवे में भारत से काफ़ी कम कर्मचारी काम करते हैं. अमेरिका में एक लाख 43 हज़ार, चीन में 2 लाख 88 हज़ार, Russia में 7 लाख और भारत में 12 लाख रेलवे कर्मचारी हैं.
यानी कम कर्मचारी होने पर भी इन देशों के पास भारत से आधुनिक और ज्यादा विकसित रेल नेटवर्क है. इन देशों में High-Speed Rails से लेकर Bullet Trains तक चलती हैं, जिनकी न्यूनतम स्पीड 300 किलोमीटर प्रति घंटा तक है. जबकि भारत को अब तक उसकी पहली Bullet Train भी नहीं मिली है. इस रफ्तार से ट्रेन चलाने का सपना तो बहुत दूर है.
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आपने वो कहावत ज़रूर सुनी होगी.. सोने का अंडा देने वाली मुर्गी. ठीक इसी तरह हमारे देश में भारतीय रेल को नौकरियां देने वाली वाली मुर्गी बना दिया गया है. और इसी वजह से जब भी रेलवे में नई भर्तियां निकाली जाती हैं तो करोड़ों आवेदन आते हैं और बाद में इसी तरह विवाद होता है.
उदाहरण के लिए, 2018 में भारतीय रेल ने अलग अलग पदों पर 90 हज़ार नौकरियां निकाली थीं, जिनके लिए दो करोड़ 30 लाख लोगों ने आवेदन दिया था. यानी तब एक नौकरी के लिए 255 छात्र लाइन लगा कर खड़े हुए थे. आज भारतीय रेल की एक नौकरी के लिए 355 छात्र लाइन लगा कर खड़े हुए हैं. यानी पिछले चार वर्षों में नौकरियां तो नहीं बढ़ीं, लेकिन जितनी नौकरियां पहले से हैं, उनमें हर एक पर 100 छात्रों की संख्या बढ़ गई. तो सवाल है कि इतने लोगों को भारतीय रेल में नौकरी क्यों चाहिए?