अररिया लोकसभा उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर बिहार कांग्रेस में उभरे मतभेद
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अररिया लोकसभा उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर बिहार कांग्रेस में उभरे मतभेद

अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर खेमों में बंटे बिहार कांग्रेस का मतभेद सामने आ गया है. 

अररिया लोकसभा उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर बिहार कांग्रेस में उभरे मतभेद

 पटना: अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर खेमों में बंटे बिहार कांग्रेस का मतभेद सामने आ गया है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के नेतृत्व वाला गुट जहां पार्टी के अररिया लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव लड़ने पर जोर दे रहा है, वहीं पार्टी का मौजूदा प्रदेश नेतृत्व इस तरह की राय को खारिज कर रहा है. उसका कहना है कि लालू प्रसाद से सलाह-मशविरा करने के बाद पार्टी आला कमान इस बारे में फैसला करेगा. राजद सांसद तसलीमुद्दीन की गत सितंबर में मौत के बाद अररिया लोकसभा सीट खाली हुई थी. चुनाव आयोग ने अब तक अररिया संसदीय सीट पर उपचुनाव के तारीख की घोषणा नहीं की है.

  1. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी का गुट चाहता है कांग्रेस लड़े चुनाव
  2. कांग्रेस पार्टी का मौजूदा प्रदेश नेतृत्व इस तरह की राय को खारिज कर रहा है
  3. राजद सांसद तसलीमुद्दीन के निधन के बाद खाली हुई थी सीट

बीपीसीसी के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि हमें अररिया में उपचुनाव लड़ने के लिये प्रस्ताव के साथ आगे आना चाहिये. लोकसभा सीट पर अच्छी खासी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी है और हम वहां जीत के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं.’’ चौधरी ने कहा, ‘‘एक राष्ट्रीय दल के तौर पर हमें अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिये हर अवसर का इस्तेमाल करना चाहिये. उपचुनावों में जीत उद्देश्य की काफी बेहतर तरीके से पूर्ति करते हैं. हमने पंजाब के गुरदासपुर और मध्य प्रदेश के चित्रकूट में वैसा देखा है. अररिया हमारी एक और उपलब्धि हो सकती है.’’ बिहार कांग्रेस के भीतर परस्पर विरोधाभासी विचारों का महत्व प्रतिद्वंद्वी खेमों के अलग-अलग झुकाव रखने के मद्देनजर है.

जहां चौधरी के खेमे का झुकाव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ है, वहीं अंतरिम प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी खेमे का झुकाव साफ तौर पर लालू प्रसाद नीत राजद के पक्ष में है. बिहार में महागठबंधन के विघटन के साथ ही बिहार कांग्रेस के भीतर गुटीय संघर्ष गहरा गया. महागठबंधन में राजद और जद (यू) भी शामिल थे.

चौधरी को कुछ महीने पहले बीपीसीसी अध्यक्ष के पद से हटाया गया था, जब राजद के साथ ज्यादा सहज महसूस करने वाले पार्टी के भीतर के प्रतिद्वंद्वी धड़े ने आरोप लगाया था कि वह प्रदेश इकाई को बांटने और नई सरकार में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद गत जुलाई में भाजपा के समर्थन से राज्य में नई सरकार बनाई थी. कादरी ने चौधरी के सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि यह उनकी निजी राय हो सकती है. हालांकि, यह सुझाव अनावश्यक दिया गया. उन्होंने कहा कि पार्टी आला कमान सीट के खाली होने से भलीभांति अवगत है. इस बारे में राजद प्रमुख लालू प्रसाद से बातचीत कर इस बारे में निर्णय किया जाएगा. कादरी ने कहा, ‘‘जो लोग ऐसे विषयों पर निर्णय लेने को अधिकृत नहीं हैं उन्हें इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए.’’ 

इस बीच, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने भी चौधरी के विचार को ​नकारते हुए कहा कि यह अपनी राजनैतिक किस्मत को फिर से चमकाने के लिये अलग-थलग पड़ गए व्यक्ति का हताशापूर्ण प्रयास है. उन्होंने कहा, ‘‘वह बीपीसीसी के अध्यक्ष नहीं हैं, ऐसे में उन्होंने किस अधिकार से इस तरह का बयान दिया. कांग्रेस नेतृत्व भलीभांति जानता है कि वह सीट राजद की थी. मैं नहीं मानता कि इस तरह की शरारत से दोनों दलों के बीच कोई भ्रम पैदा होगा.’’

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