रूस-यूक्रेन संकट पर किस ओर खड़ा है भारत? कूटनीति के लिए परीक्षा साबित होंगे मौजूदा हालात
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रूस-यूक्रेन संकट पर किस ओर खड़ा है भारत? कूटनीति के लिए परीक्षा साबित होंगे मौजूदा हालात

Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच जारी संकट गहराता जा रहा है. रूसी सेना कीव से कुछ दूरी पर मौजूद है और अब यूक्रेन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के प्रयास तेज हो गए हैं. यह संकट भारत की कूटनीति के लिए एक परीक्षा की तरह है. 

रूस और यूक्रेन की जंग से बड़ी मुश्किल

नई दिल्ली: मौजूदा यूक्रेन संकट के जल्द सुलझने के आसार नहीं दिख रहे हैं. रूस किसी दबाव में आने के लिए तैयार नहीं है और अमेरिका-नाटो देश अगली कार्रवाइयों पर विचार कर रहे हैं. इस पूरे संकट में भारत के सामने बड़ा कूटनीतिक प्रश्न खड़ा हो सकता है कि अगर उसे रूस और अमेरिका में से किसी एक को चुनना पड़ा.

  1. अमेरिका या रूस किसके साथ भारत?
  2. दोनों ही देशों ने भारत को पहुंचाई मदद
  3. भारत के रुख पर चीन-पाक की नजर

रूस और अमेरिका रहे हैं मददगार

भारत द्वारा लड़े गए दो युद्धों में ये चयन अलग-अलग था. 1962 के युद्ध में रूस तटस्थ था लेकिन अमेरिका ने चीन के खिलाफ भारत को हर मदद पहुंचाई थी. 1971 में अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया तो अमेरिकी बेड़े को रोकने के लिए रूस आगे आया था. लेकिन इस बार ये चुनाव भारतीय कूटनीति की परीक्षा होगा.
 
भारत के सोवियत संघ के साथ ऐतिहासिक रणनीतिक संबंध रहे हैं. रूस ने भारत को रक्षा क्षेत्र में तब मदद की थी जब ज्यादातर देशों से उसे मदद नहीं मिल रही थी. 60 के दशक में मिग-21 के समझौते ने भारतीय वायुसेना को पहला सुपर सोनिक जेट दिया था जो आज भी वायुसेना में काम आ रहा है. युद्धक टैंक, तोपें, जंगी जहाज, बड़े मालवाहक एयरक्राफ्ट, न्यूक्लियर सबमरीन जैसे हथियारों ने भारत को मजबूत बनाया. आज भी भारतीय सेना के 60 से 70 प्रतिशत सैनिक साजोसामान मूलरूप से रूसी हैं. लेकिन 2000 के दशक के बाद भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध मजबूत होने का दौर शुरू हुआ.

अमेरिका ने दिए आधुनिक हथियार

भारत ने अमेरिका से पी 8 आई टोही विमान, सी-17 और सी 130 जे सुपर हर्क्युलिस जैसे बड़े मालवाहक विमान, अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, चिनूक मालवाहक हेलीकॉप्टर जैसे बड़े सौदे किए हैं. लेकिन सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब भारत ने अमेरिका के साथ Besic Exchange and Cooperation Aagreement ( BECA), Logistics Exchange Memorandum of Agreement (LEMOA) और Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA)  जैसे महत्वपूर्ण रक्षा समझौते किए.

इनमें से BECA में अमेरिकी सैटेलाइट्स का डाटा भारत को मिला जो चीन के साथ दक्षिण लद्दाख में चल रहे तनाव के दौरान बहुत काम आया. COMCASA में भारत और अमेरिका की सेनाएं एक-दूसरे से सीधे संपर्क में रह सकती हैं जो युद्ध और शांति दोनों स्थितियों में ही बहुत महत्वपूर्ण हैं. सबसे खास LEMOA है जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे की सेना-वायुसेना और नौसेना के बेसों का इस्तेमाल अपनी रसद सप्लाई के लिए, हथियारों की मरम्मत या सुधार के लिए कर सकती हैं. अमेरिका ने लद्दाख में तनाव के दौरान 2020 में भारतीय सैनिकों के लिए 35000 सर्दी में पहनने के खास कपड़े भेजे थे जो -50 डिग्री के तापमान में बहुत कारगर रहे.

आंख मूंदकर कभी नहीं किया भरोसा 

अमेरिका और भारत ने चीन के खिलाफ एक साझा फ्रंट भी खड़ा किया है. अमेरिका जानता है कि उसे चीन के खिलाफ कार्रवाई में भारत की बहुत जरूरत है और भारत जानता है कि चीन के खिलाफ रूस के मदद मिलने की संभावना नहीं है इसलिए दोनों देशों के साझा हितों ने इस फ्रंट को खड़ा किया है. भारत-अमेरिका का साझा नौसैनिक अभ्यास मालाबार इसीलिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और इसमें ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हो गए हैं.

दोनों देश आतंक के खिलाफ लड़ाई में भी साथ है और अमेरिकी इंटेलीजेंस ने भारत की कई बार मदद की है. भारत और अमेरिका के बीच साझा सैनिक अभ्यास भी नए स्तर पर पहुंच रहा है. लेकिन भारत ने कभी विदेशी संबंधों के मामले में अमेरिका के निर्देशों का आंख मूंदकर पालन नहीं किया. 2018 में अमेरिका के सख्त विरोध के बावजूद भारत ने Countering America's Adversaries Through Sanctions Act (CAATSA)  प्रतिबंधों को नकार कर रूस के साथ S-400, फ्रिगेट्स और AK 203 राइफलों के सौदे किए.

घात लगाए बैठे हैं भारत के दुश्मन   

इस बार फैसला करना मुश्किल होगा. अमेरिका के साथ किए गए रक्षा समझौते को बाद भारत उसे मदद करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य है. यानी कल अगर अमेरिका, रूस पर हमले के लिए भारतीय एयरबेसों या नौसैनिक बेसों का इस्तेमाल करना चाहे तो वो कर सकता है. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो भारत साफ तौर पर रूस के विरोधी खेमे में आ जाएगा और ऐसा होने की उम्मीद भारत के दोनों कट्टर दुश्मन चीन और पाकिस्तान ने लगाई हुई है. 

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इमरान खान ने तो रूस का दौरा उसी समय किया जब रूस ने यूक्रेन पर अपनी कार्रवाई की शुरुआत की. चीन ने रूस के लिए गेहूं खरीद के दरवाजे खोलकर पूरी दुनिया को संकेत दे दिया है कि वो खुलकर रूस के साथ है. यानी अगर भारतीय कूटनीति ने अमेरिका का साथ जाने का फैसला किया तो उसके खिलाफ एक नया मोर्चा तैयार हो जाएगा जिसमें रूस-पाकिस्तान-चीन होंगे. ये भारत के लिए बेहद खतरनाक स्थिति होगी और अमेरिका के इतिहास को देखते हुए उसके भरोसे इस मोर्चे का सामना करना आत्महत्या जैसा होगा. 

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