Sambhal Violence: भाड़े के दंगाइयों ने संभल को सुलगाया! सबूत दे रहे प्री प्लांड हिंसा की गवाही
Sambhal Riots: विष्णु शंकर जैन बताते हैं कि 23 की शाम साढ़े छह बजे इन्फार्म किया गया कि सात से ग्यारह बजे सर्वे किया जाएगा. सर्वे के दौरान मस्जिद कमेटी के तीनों वकील मौजूद थे. पांच नुमाइंदे मौजूद थे. इनकी मौजूदगी में सर्वे किया जा रहा था. बाहर दंगा हो रहा था.
Sambhal News: संभल हिंसा को लेकर लगातार नए-नए खुलासे हो रहे हैं. संभल में जामा-मस्जिद को कैसे बाबरी बनाने की साजिश रची गई? इसको लेकर अब जो सबूत सामने आ रहे हैं, उससे अब साफ होता जा रहा है कि संभल में भड़के दंगे अचानक नहीं हुए, बल्कि प्री प्लांड तरीके से करवाए गए.
संभल में हुई हिंसा पर कई सुलगते सवाल हैं...
सवाल नंबर 1: क्या भाड़े के दंगाइयों ने भड़काई भी संभल में हिंसा ?
सवाल नंबर 2: क्या संभल में दंगों के लिए की गई अवैध हथियारों की सप्लाई ?
सवाल नंबर 3: क्या हिंसा भड़काने के लिए मस्जिद में खुदाई की अफवाह फैलाई गई ?
सवाल नंबर 4: संभल में दंगों के पीछे कितने सफेदपोश ?
ये वो सवाल हैं, जिनके जवाब आज यूपी पुलिस ने दिये हैं, जिनके आधार पर दावा किया जा रहा है कि संभल में दंगा भड़का नहीं बल्कि भड़काया गया.
संभल में हुई हिंसा को लेकर लगातार अलग अलग दावे, अलग-अलग इल्जाम सामने आ रहे हैं. इन बयानों और दावों के साथ हिंसा के कुछ नए वीडियो भी सामने आए जिनमें से एक वीडियो में नज़र आती है उग्र भीड़.
एक वीडियो में गली के अंदर भीड़ नजर आती है. इस छोटे से वीडियो में कम से कम पंद्रह नकाबपोश नजर आएंगे, जिनमें से कुछ वीडियो बनाने वाले शख्स की तरफ अभद्र इशारे भी करते हैं. नकाब से चेहरा छिपाने वाले इन किरदारों की वजह से ही सवाल उठते हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नकाब पहनकर वही लोग आए थे जिन्होंने दंगा किया? क्या यही वो नकाबपोश थे जिन्होंने हिंसा का आगाज किया और फिर भीड़ इनके साथ जुड़ गई? क्या ये लोग तय करके आए थे कि दंगा करना है...और नकाब पहनने के पीछे मकसद अपनी पहचान छिपाना था? और सबसे बड़ा सवाल क्या संभल में हुई हिंसा में बाहर से आए लोग शामिल थे?
संभल की हिंसा में शामिल हथियारों का सबसे बड़ा सबूत खुद संभल पुलिस ने मीडिया के सामने रखा जो था एक दोधारी चाकू. इस किस्म का चाकू आमतौर पर आपको नजर नहीं आएगा. पुलिस का कहना है कि इस किस्म के चाकू लड़ाई-झगड़े और दंगों के लिए ही बनाए जाते हैं.
संभल हिंसा का दूसरा बड़ा हथियार हैं वो पत्थर जो दंगों के बाद भी गलियों में पड़े नजर आए थे. ज़ी न्यूज़ के पास हिंसा का वो एक्सक्लूसिव वीडियो भी है जिसमें नकाबपोश पत्थरों से एक गाड़ी को तोड़ते नजर आ रहे हैं. संभल के एसपी खुद बताते हैं कि जब वो गश्त पर थे तो उनके ऊपर फायरिंग की गई, गाड़ी पर पत्थर मारे गए.
चाकू, पत्थर...ये अचानक किसी बाजार से खरीदे नहीं जा सकते. इसी वजह से ये शक पुख्ता हो जाता है कि संभल का दंगा अचानक नहीं हुआ. कुछ ऐसे काले किरदार हैं, जिन्होंने इस दंगे के तार बुने.
संभल हिंसा पर हो रहे खुलासों से ये साबित होता है कि संभल में हिंसा की सोची-समझी साजिश रची गई थी. दंगा फैलाने के लिए बाहर से लोगों की भीड़ बुलाई गई थी, तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये साजिश किसने रची?
पुलिस ने संभल हिंसा के केस में सात FIR दर्ज की हैं, जिसमें दो बड़े और रसूखदार लोगों को नामजद किया गया है. पहले हैं - संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क. सांसद बर्क पर आरोप है कि उन्होंने भड़काऊ भाषण देकर भीड़ को उकसाया.
दूसरे हैं विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल. उन पर आरोप है कि उन्होंने दंगाइयों को उकसाकर सर्किल ऑफिसर पर गोली चलवाई. लेकिन संभल में हिंसा भड़कने के लिए पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. सर्वे की टाइमिंग को लेकर सवाल किया जा रहा है.
संभल की जामा मस्जिद का पहला सर्वे 19 नवंबर को हो चुका था और 24 नवंबर को दोबारा सर्वे हुआ जिसके बाद हिंसा भड़की. अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि मस्जिद में दूसरी बार सर्वेक्षण की क्या जरूरत थी? बर्क का सवाल था कि लोगों को नमाज पढ़ने से रोका गया. दूसरा सर्वेक्षण क्या जरूरत थी? वहीं सपा नेता रामगोपाल यादव ने भी कहा कि जब एक बार सर्वे हो चुका था तो दूसरी बार क्या ज़रूरत थी?
इस सवाल का जवाब में हिंदू पक्ष के वकील विष्णुशंकर जैन ने कहा कि उस समय परिसर के अंदर रोशनी की कमी थी. आंशिक वीडियोग्राफी हुई. विरोध होने लगा तो मस्जिद कमेटी की तरफ से कहा गया कि नमाज होनी है. इसी के चलते सर्वे की कार्रवाई रोक दी गई. वो अधूरा रह गया क्योंकि भीड़ इकट्ठा हो गई थी. विष्णुशंकर सर्वे के वक्त जामा मस्जिद के अंदर ही मौजूद थे. यानी पहली बार सर्वे पूरा नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से सर्वे दोबारा किया गया था. लेकिन अब आरोप ये भी लगाया जा रहा है कि मस्जिद कमेटी को दूसरे सर्वे की जानकारी नहीं दी गई.
दावा किया जा रहा कि मस्जिद कमेटी को दूसरे सर्वे की जानकारी नहीं दी गई जबकि सच्चाई ये है कि 23 नवंबर की शाम मस्जिद कमेटी को सूचना दे दी गई थी. सर्वे के दौरान मस्जिद कमेटी के 3 वकील मौजूद थे. मस्जिद कमेटी के पांच सदस्य भी सर्वे के वक्त मौजूद थे.
विष्णु शंकर जैन बताते हैं कि मस्जिद से वकील साहब ने लाउडस्पीकर पर कहा कि शांति बनाकर रखिये. यानी मस्जिद कमेटी को दूसरी बार सर्वे की पहले से जानकारी थी और मस्जिद कमेटी के सदस्य भी सर्वे के दौरान मौजूद थे, लेकिन एक आरोप ये भी लगाया जा रहा है कि विष्णु शंकर जैन ने जय श्रीराम के नारे लगवाए.
इसी वीडियो के आधार पर आरोप लगाया जा रहा है कि जब सर्वे टीम मस्जिद में प्रवेश कर रही थी तो जयश्री राम के नारे लग रहे थे और विष्णु शंकर जैन खुद नारे लगा रहे थे लेकिन विष्णु शंकर जैन कुछ और ही कह रहे हैं..
विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि मैंने कोई नारा नहीं लगाया. ये सर्वे पूरा होने के बाद का वीडियो है. स्थानीय लोगों ने जयश्रीराम का नारा लगाया. विष्णु शंकर ने कहा कि ये निकलने का वीडियो है. 11 बजे जब हालात आउट ऑफ कंट्रोल हो रहे थे, एक शब्द भी नहीं निकाला. लोग गलत बयान दे रहे हैं कि ये मस्जिद में जाने का वीडियो है.
अब कुछ चीजें एकदम क्लियर हैं जैसे, मस्जिद प्रशासन को सर्वे के पहले सूचना दी गई थी और मस्जिद में सर्वे के दौरान ही मुस्लिमों की भीड़ जुटना शुरू हो गई थी. ऐसे में सवाल ये है कि सर्वे को लेकर किसने अफवाह उड़ाई और क्या अफवाह का मकसद मुसलमानों को भड़काना था और दंगा करवाना था?
(संभल से राहुल मिश्रा के साथ ब्यूरो रिपोर्ट)