इस बार रविदास जयंती इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो गई? मंदिरों में दर्शन करते दिखे नेता
बुधवार को देशभर के संत रविदास मंदिरों पर श्रद्धालुओं के साथ ही नेताओं की भी भीड़ रही. इनमें पीएम मोदी से लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस नेता राहुल गांधी व उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई लोग शामिल रहे.
नई दिल्ली: बुधवार को पूरे देश ने जोर-शोर के साथ संत रविदास (Sant Ravidas) की जयंती (Sant Ravidas Jayanti) मनाई. आप सोचेंगे कि इसमें खास क्या है? रविदास जयंती तो हर साल आती है. लेकिन इस बार रविदास जयंती की चर्चा चारों तरफ़ रही.
बुधवार को हर बड़ा नेता रविदास मन्दिर में पूजा अर्चना करते हुए नज़र आया. सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली में रविदास मन्दिर पहुंचे और उनकी तस्वीरें पूरे देश में वायरल हो गईं. फिर धीरे धीरे, पंजाब और उत्तर प्रदेश के तमाम बड़े नेता रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) मनाने लगे. दरअसल पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनावों में संत रविदास (Sant Ravidas) का आशीर्वाद, जिस भी पार्टी को मिल जाएगा, उस पार्टी के जीतने की सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी.
बुधवार को संत रविदास मंदिरों पर दिखी भीड़
वैसे तो हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास की जयंती (Sant Ravidas Jayanti) मनाई जाती है. लेकिन इस बार अचानक से रविदास जयंती इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि सभी पार्टियों के बड़े नेता रविदास मन्दिर में दर्शन करते नज़र आए. यानी बुधवार को सारे रास्ते, संत रविदास के मन्दिरों की तरफ़ ही जा रहे थे.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आज बनारस में स्थित रविदास मन्दिर में लंगर का वितरण किया और बाद में ज़मीन पर बैठकर लंगर भी खाया. ऐसा माना जाता है कि बनारस में जिस जगह पर वह मन्दिर है, वहीं संत रविदास (Sant Ravidas) का वर्ष 1450 में जन्म हुआ था.
कांग्रेस नेताओं ने बनारस में किए दर्शन
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी बनारस के उसी रविदास मन्दिर में दर्शन किए. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बुधवार को बनारस के इसी मन्दिर में पूजा अर्चना की.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भगवंत मान भी बुधवार को जालंधर में संत रविदास (Sant Ravidas) के मन्दिर गए, जहां उन्होंने लोगों के साथ चुनावों पर भी बात की. यानी बुधवार को दिनभर रविदास जयंती की चर्चा होती रही.
पंजाब में 20 फरवरी को है वोटिंग
अब सवाल है कि अचानक से सभी पार्टियों के लिए रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो गई? दरअसल, पंजाब की 117 विधान सभा सीटों पर 20 फरवरी को वोटिंग होनी है. यानी वोटिंग में अब केवल चार दिन बचे हैं.
पंजाब भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां की कुल आबादी में सबसे ज्यादा दलित हैं. इनकी संख्या वहां 32 प्रतिशत है. उससे भी बड़ी बात ये है कि, दलितों की कुल आबादी में 61 प्रतिशत अकेले रविदासिया समुदाय से आते हैं. यानी वो समुदाय, जो संत रविदास को अपना गुरु मानता है. इसीलिए हर पार्टी इस समुदाय को अपने साथ लाने के लिए रविदास जयंती मनाती दिखी.
दोआबा में सबसे ज्यादा रविदासी
रविदासिया समुदाय (Ravidasi Samaj) का सबसे ज़्यादा असर पंजाब के दोआबा क्षेत्र में है. दोआबा का अर्थ होता है, दो नदियों के बीच बसा क्षेत्र. ये दो नदियां हैं, सतलुज और ब्यास नदी. इस क्षेत्र में कुल चार ज़िले आते हैं. यहां की कुल आबादी 52 लाख है, जिनमें रविदासिया समुदाय (Ravidasi Samaj) के 12 लाख लोग हैं. ये 12 लाख लोग, यहां की 23 सीटों पर हार और जीत में निर्णायक साबित होते हैं.
2017 के चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया था. तब कांग्रेस ने 15, अकाली दल ने 5, आम आदमी पार्टी ने दो और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी. इस बार यहां कांटे की टक्कर दिख रही है. इसकी दो वजह हैं.
कांग्रेस को समुदाय का साथ मिलने की उम्मीद
ऐसा माना जाता है कि रविदासिया समुदाय (Ravidasi Samaj) का वोट तीन पार्टियों में बंटता है. कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी. आम आदमी पार्टी इस रेस में 2017 से ही शामिल हुई है. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, खुद दलित हैं इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर वो रविदासिया समुदाय को अपने साथ एकजुट रखने में कामयाब रही तो उसे इस क्षेत्र में उतनी ही सीटें मिल सकती हैं, जितनी पिछली बार मिली थी.
बीजेपी को भी रविदासिया समुदाय (Ravidasi Samaj) से काफी उम्मीदें हैं. दरअसल, रविदासिया समुदाय चाहता है कि जब देश में दोबारा से जनगणना शुरू हो, तब इस समुदाय को सिख और हिन्दू धर्म का हिस्सा ना मानकर, एक अलग धर्म का दर्जा दिया जाए. इसके लिए इस समुदाय की तरफ़ से प्रधानमंत्री मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी गई है. बीजेपी जानती है कि वो अगर इस समुदाय का विश्वास जीतने में सफल रहती है तो उसे दोआबा क्षेत्र में कुछ सीटों पर जीत मिल सकती है.
भक्ति आंदोलन के अगुवा थे संत रविदास
आपको ये भी जानना चाहिए कि संत रविदास (Sant Ravidas) कौन थे? इसके लिए सबसे पहले आपको भक्ति आन्दोलन के बारे में समझना होगा. 12वीं और 13वीं शताब्दी में जब उत्तर भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों का नियंत्रण हो गया था और हिन्दुओं का दमन किया जा रहा था, उस समय भक्ति आन्दोलन के नाम से एक सामाजिक मुहिम शुरू की गई थी.
इस आन्दोलन में संत कबीर दास, सिखों के पहले गुरु.. गुरु नानक देव जी, मीरा बाई, सूरदास और तुलसीदास जैसे कवि और महान दार्शनिक शामिल थे. इस भक्ति आन्दोलन का मकसद था, हिन्दू धर्म में मौजूद रूढ़िवादी मान्यताओं और बुराइयों को दूर करना.
संत रविदास भी इसी आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे. माना जाता है कि उनका जन्म वर्ष 1450 में उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था. कुछ पुस्तकों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि संत कबीर दास और संत रविदास (Sant Ravidas) एक दूसरे के समकालीन थे. यानी दोनों एक ही समय में बनारस के महान कवि और विचारक थे.
आदि ग्रंथ में संत रविदास की रचनाएं शामिल
संत रविदास की वाणी अपने समय में इतनी लोकप्रिय हुईं कि उनकी वाणी को अलग अलग समूह और धर्म के लोग स्मरण करने लगे. बाद में सिखों के पवित्र धार्मिक ग्रंथ, जिसे आदि-ग्रन्थ कहते हैं, उसमें संत रविदास की 40 कविताओं को शामिल किया गया. इसके बाद से पंजाब में उनको एक गुरु का भी दर्जा दिया जाने लगा.
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सिख धर्म में भी दलितों को नहीं मिला न्याय
अगर हम सिख धर्म के इतिहास की बात करें तो सिख धर्म में जाति व्यवस्था नहीं है. फिर भी इतिहास में पंजाब के दलितों को सिख धर्म अपनाने पर बराबरी का दर्जा नहीं मिला, जिसकी वजह से अलग अलग समय पर दलित सिखों द्वारा अपने अलग गुरुद्वारे और डेरों की स्थापना की गई. इन्हीं में से एक प्रमुख डेरा, संत रविदास का है, जो पंजाब के जलंधर में मौजूद है.
इस डेरे की स्थापना 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी. आज ये डेरा, पंजाब में सभी पार्टियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पार्टियां जानती हैं कि रविदासिया समुदाय (Ravidasi Samaj) के समर्थन का मतलब है, दोआबा की 23 सीटों पर सीधा फायदा. इसीलिए बुधवार को हर नेता रविदास जयंती मनाने में जुटा रहा.
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