शादियां सुरक्षित रखने के लिए व्यभिचार कानून जरूरी होने के केंद्र के विचार से SC की असहमति
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शादियां सुरक्षित रखने के लिए व्यभिचार कानून जरूरी होने के केंद्र के विचार से SC की असहमति

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली यचिकाओं पर अपना फैसला बुधवार को सुरक्षित रखा.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की इस दलील से बुधवार को सहमति नहीं दिखाई जिसमें कहा गया था कि विवाह की शुचिता बनाए रखने के लिए व्यभिचार के मामलों में दंडात्मक प्रावधानों की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बात हमारी सामान्य समझ से परे है कि एक पत्नी व्यभिचारी संबंधों को लेकर अपने पति के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकती है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली यचिकाओं पर अपना फैसला बुधवार को सुरक्षित रखा.

इस मामले में केंद्र ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि व्यभिचार गलत है जो विवाह की पवित्रता/शुचिता को नुकसान पहुंचाता है और जीवनसाथी, बच्चों तथा परिवार को मानसिक तथा शारीरिक क्षति पहुंचाता है. हालांकि पीठ ने यह कहा कि इस कानून में पतियों को ज्यादा तवज्जो दी गई है.

न्यायालय ने यह भी सवाल किया कि क्या यह सही है कि जब दो लोगों के बीच संबंध बनता है, उन्हें प्रेम होता है और वे सहमति से यौन संबंध बनाते हैं, लेकिन ‘इनमें से एक के खिलाफ मुकदमा चल सकता है लेकिन दूसरे के खिलाफ नहीं.’

दंडात्मक कानून के प्रावधानों में विसंगतियों का हवाला देते हुए पीठ ने सवाल किया, यहां ‘विवाह की पवित्रता/शुचिता क्या है. यदि पति की सहमति ली गई है तो वह व्यभिचार नहीं है...?’’ 

पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यह सहमति क्या है. यदि ऐसे संबंध को पति की सहमति है तो यह अपराध नहीं होगा. यह क्या है? धारा 497 में ऐसी कौन सी जनता की भलाई निहित है जिसके लिये यह (व्याभिचार) अपराध है.’’ 

पीठ ने विभिन्न बिन्दुओं पर इस कानून पर सवाल उठाया. उसने जानना चाहा कि व्याभिचार संबंधी कानूनी प्रावधान से जनता की क्या भलाई है क्योंकि इसमें यह व्यवस्था है कि यदि स्त्री के विवाहेतर संबंधों को उसके पति की सहमति हो तो यह अपराध नहीं होगा. पीठ ने सवाल किया, हम कानून बनाने की कार्यपालिका की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन आईपीसी की धारा 497 में ‘‘क्या भलाई है.’ 

158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 कहती है कि यदि कोई पुरूष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा. यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा. इस अपराध के लिए पुरूष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है पंरतु महिला को इस अपराध के लिए प्रेरित करने के लिए दण्डित नहीं किया जायेगा.

केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालीसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि व्याभिचार अपराध है क्योंकि इससे विवाह और परिवार बर्बाद होते हैं. उन्होंने कहा कि विवाह की एक संस्था के रूप में पवित्रता को ध्यान में रखते हुए ही व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. आनंद ने कहा, व्यभिचार ऐसा काम है जो यह जानते हुए किया जाता है कि इससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार को दुख होगा. इसका विवाह की पवित्रता पर कुप्रभाव पड़ता है.

उन्होंने कहा कि व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले विदेशी फैसले को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए और मौजूदा मुकदमे का फैसला भारतीय सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए. उससे भी बड़ी बात यह है कि व्यभिचार संबंधों को निजता के अधिकार के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है.

पीठ ने कहा कि जिस कानून पर सवाल उठाया जा रहा है वह सिर्फ विवाहित महिलाओं को ‘निशाना’ बना रहा है, उन पुरूषों को नहीं जो अविवाहित और विधवा महिलाओं तथा विवाहित महिला के पति की सहमति से उसके साथ यौन संबंध बना सकते हैं. पीठ ने पूछा, ‘आप विवाहित महिला से वफादार रहने की अपेक्षा करते हैं और आप पुरूषों से वफादारी की उम्मीद नहीं करते हैं.’ 

शीर्ष अदालत ने धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक अप्रवासी भारतीय की याचिका पांच जनवरी को संविधान पीठ को सौंपी थी. याचिकाकर्ता का कहना है कि इस अपराध में महिला की समान भागीदारी होती है, अत: इसके लिये प्रेरित करने के आरोप में उसे भी दंडित किया जाना चाहिए.

इस मामले को संविधान पीठ को सौंपने से पहले प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि पहली नजर में यह प्रावधान पक्षपातपूर्ण लगता है. पीठ का कहना था कि सामान्यतया, दंड विधि लैंगिक तटस्थता पर चलती है परंतु इस प्रावधान में यह अवधारणा नदारद है.

व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने आज सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस मामले में फैसला बाद में सुनाएगा. 

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