Supreme Court News: जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने बच्चे के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका पर नोटिस जारी किया, जो घाना के नागरिक हैं और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के दुबई में रहते हैं.
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Supreme Court on Marriage Dispute: अकसर आपने सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट या फिर निचली अदालतों के आदेशों को पलटते या फिर उस पर नसीहत देते हुए देखा होगा. लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने विदेश की एक अदालत के आदेश की आलोचना की है. दरअसल मामला एक वैवाहिक विवाद से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से बच्चे की यात्रा पर दुबई की एक अदालत ने बैन लगा दिया है. इसे सुप्रीम कोर्ट ने दमनकारी और मानवाधिकारों का हनन बताया है.
कोर्ट ने जारी किया नोटिस
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने बच्चे के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका पर नोटिस जारी किया, जो घाना के नागरिक हैं और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के दुबई में रहते हैं. बेंच ने 17 अप्रैल को आदेश दिया, 'याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब 28 अप्रैल 2025 तक दिया जाए.' सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि वैवाहिक विवाद में अदालत की ओर से ट्रैवल पर बैन लगाना 'घर में नजरबंद' करने के समान होगा.
'आपको दमनकारी आदेश मिला है'
बच्चे के पिता ने आरोप लगाया है कि बेंगलुरु निवासी और उनसे अलग रह रही उनकी पत्नी दुबई की एक अदालत के आदेश के बावजूद उनके बेटे को दुबई से भारत ले गई. तथ्यों पर गौर करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निखिल गोयल से कहा, 'आपको अदालत से एक 'दमनकारी' आदेश मिला है जो मानवाधिकारों का पूरी तरह से हनन करता है. वैवाहिक विवाद में एक अदालत बच्चे पर यात्रा प्रतिबंध कैसे लगा सकती है.'
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक का आदेश पारित करने में दुबई की परिवार अदालत के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और कहा कि पति और पत्नी दोनों ईसाई हैं और शरीयत कानून के दायरे में नहीं आते हैं. गोयल ने कहा कि दोनों पक्षों की शादी दुबई में हुई थी और वे वहीं रह रहे थे. बेंच ने कहा कि वह इस तथ्य पर विचार करेगी कि बच्चे का कल्याण सबसे ऊपर है और उसने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला सही था कि विवाद से संबंधित मुद्दों पर फैसला लेने का काम स्थानीय पारिवार अदालत पर छोड़ दिया जाए.
बच्चे के पिता ने हाईकोर्ट के 10 दिसंबर के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर निर्णय लेने में अदालत ने गलती की है. उन्होंने हाईकोर्ट से अधिकारियों को यह निर्देश देने का आग्रह किया कि वे उनके बच्चे को अदालत में पेश करें और उन्हें सौंप दें. वहीं, महिला ने अदालत के आदेशों से बचने के आरोपों से इनकार किया और कहा कि मस्कट और बाद में भारत की यात्रा उससे अलग रह रहे उसके पति के किए गए शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार के कारण आवश्यक थी, जिसका बच्चे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था. उसने दलील दी कि अलग रह रहे पति ने उनके बेटे पर गैरकानूनी यात्रा प्रतिबंध लगवाया था.
(इनपुट-पीटीआई)