भगत सिंह जयंती: 'ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा'
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भगत सिंह जयंती: 'ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा'

आजादी के दीवाने भारत के लिए अपनी जान को क़ुर्बान करने वाले भगत सिंह को आज उनकी 111 वीं जयंती पर पूरा देश याद कर रहा है. 

अविभाजित भारत के पंजाब में जन्मे भगत सिंह को उनकी जयंती पर पूरा भारतीय उपमहाद्वीप याद कर रहा है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : 'मैं रहूं ना रहूं पर ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा' .. इन चंद पंक्तियों के सहारे भारत के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान करने वाले भगत सिंह को भरोसा था कि उनके जाने के बाद भी देश के लिए लोग मर मिटने को तैयार रहेंगे. आजादी के दीवाने भारत के लिए अपनी जान को क़ुर्बान करने वाले भगत सिंह को आज उनकी 111 वीं जयंती पर पूरा देश याद कर रहा है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी जयंती पर ट्वीट किया है. ट्वीट में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 'भगत सिंह को उनकी जयंती पर नमन, वो करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा के स्रोत रहे हैं.'fallback 

आज के दिन 28 सितंबर 1907 में भगत सिंह का अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर के बंगा गांव में जन्म हुआ था. उनके पिता सरदार किशन सिंह और माता सदावती कौर थीं . क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत रहे भगत सिंह ने पूरे भारत को अपने विचारों से उस समय आजादी के दीवानों को प्रभावित किया. उस समय आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी का आगमन हो चुका था. लेकिन देश के कुछ युवा भारत में चल रहे आजादी के शांतिपूर्ण तरीकों के महात्मा गांधी के विचारों से सहमत नहीं थें. उन्होंने अपनी एक अलग हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई, जो क्रांति का बिगुल फुंकने के लिए देश भर में समान विचारों वाले युवाओं से मिल रही थी.

इस टोली में भगत सिंह के अलावा, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु सरीखे आजादी के दीवाने शामिल थे. लाला लाजपत राय की 30 नवंबर 1928 को पुलिस की लाठीचार्ज में आई चोट का बदला लेने के लिए उन्होंने अंग्रेज अधिकारी सैंडर्स की हत्या कर दी. उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में सबके सामने बम फेंक ब्रिटिश साम्राज्य को खुलेआम चुनौती दी. ब्रितानी हुकूमत ने इन्हें इस अपराध के लिए उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया. 23 मार्च 1931 के दिन भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के साथ हंसते-हंसते वतन के लिए अपनी जान को क़ुर्बान कर दिया.

'मैं नास्तिक क्यों हूं'
भगत सिंह अपने केस की सुनवाई के दौरान लगभग 2 साल लाहौर जेल में रहे. इस दौरान लगातार वो लेख और चिट्ठियां लिखते रहे और अपने क्रांतिकारी विचार दुनिया को बता रहे थे. भगत सिंह यूरोपीय विचारकों में मार्क्स से काफी हद तक प्रभावित थे. इस दौरान भगत सिंह का किताबों का अध्ययन भी जारी रहा. आज भी पूरी दुनिया में भगत सिंह की लिखी चिट्ठियों को उनके विचारों का दर्पण माना जाता है. उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था की काफी आलोचना भी की थी और मजदूरों का शोषण करने वाले किसी भी भारतीय को अपना शत्रु बताया था. भगत सिंह की चिट्ठियों का संकलन 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में संकलित है.

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