शंकराचार्य ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी आनन्द स्वरूप के अनुसार, कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था को समाज में लागू करने के लिए सनातन धर्म के मूल स्वरूप को वापस लाने की जरूरत है. इसी जरूरत को पूरा करने के लिए शंकराचार्य परिषद का आयोजन कुंभ में किया जा रहा है.
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नई दिल्ली: शंकराचार्य ट्रस्ट आगामी 2 फरवरी से 4 फरवरी के बीच शंकराचार्य परिषद का आयोजन करने जा रही है. यह आयोजन प्रयागराज के बजरंगदास मार्ग में स्थित पश्चिम शिविर में किया जा रहा है. इस बार शंकराचार्य परिषद का उद्देश्य अद्भुत सनातन परंपरा को समृद्ध करने में संत समुदाय की भूमिका को तय करना है. इसके अलावा, समाज को जातिगत जहर से मुक्त करने के लिए संत समाज की अगुवाई में भविष्य के कार्यक्रमों को निर्धारित करना है.
शंकराचार्य ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी आनन्द स्वरूप के अनुसार, वर्तमान के जातीय और साम्प्रदायिक संघर्ष के युग मे आदिशंकराचार्य का अद्वैतवाद का दर्शन प्रासंगिक हो गया है. उन्होंने बताया कि जन्म से हर व्यक्ति शुद्र होता है.
सनातन धर्म में कहीं भी जन्म से जाति या वर्ण की बात नहीं कही गयी है. सनातन की वास्तविक परंपरा में कर्म के आधार पर वर्ण निर्धारण करने की व्यवस्था है. यानी, शुद्र भी संस्कार और वेद पढ़ कर ब्राम्हण बन सकता है और ब्राम्हण भी संस्कारहीन होने पर शुद्र हो सकता है.
शंकराचार्य परिषद के संयोजक प्रो. एलके जोशी के अनुसार, हमारे धर्म में आईं विकृति कैसे दूर होगी, इस बाबत चिंतन करने का समय आ गया है. हमें विचार करना होगा कि सनातन धर्म के मूल स्वरूप को किस तरह वापस लाया जाए.